दाखिल खारिज के लिए HC में इतनी याचिकाएं क्यों हो रही हैं?
हाईकोर्ट ने कहा, समय के भीतर नहीं हुआ दाखिल खारिज तो तहसीलदार होंगे अवमानना के दोषी

रजिस्ट्री के बाद दाखिल खारिज की प्रक्रिया पूरी करने के लिए तहसीलदार कोर्ट में दाखिल होने वाले केसेज को समय पर निस्तारित न किये जाने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट (HC) के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने गंभीर सवाल खड़ा किया है. प्रयागराज जिले के सोरांव तहसील के मनोज गिरी बनाम सुषमा केस की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने तहसीलदार सोरांव का निर्देश दिया है कि वह तीन महीने के भीतर केस का निर्धारण करें.
हाईकोर्ट (HC) में दाखिल रिट याचिका में मांग की गयी थी कि तहसीलदार सोरांव को आदेश या निर्देश जारी किया जाए, जिसमें उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 35 के अंतर्गत वाद संख्या 8654/2023, कम्प्यूटरीकृत वाद संख्या T202302030308654 (मनोज गिरि बनाम सुषमा) को निर्धारित अवधि के भीतर निस्तारित करने का आदेश दिया जाए. जो कि न्यायालय तहसीलदार, तहसील सोरांव, के समक्ष 2023 से लंबित है.
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि दाखिल खारिज वाद संख्या 8654/2023 उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 35 के अंतर्गत विचाराधीन है. कोर्ट ने 02.07.2025 को अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल को राज्य सरकार से निर्देश प्राप्त करने के लिए कहा था कि दाखिल खारिज की कार्यवाही में तेजी लाने के लिए इस न्यायालय (HC) में इतनी बड़ी संख्या में याचिकाएं क्यों दायर की जा रही हैं.
कोर्ट द्वारा पूछे गए प्रश्न के अनुसरण में अपर महाधिवक्ता ने न्यायालय (HC) के समक्ष राज्य सरकार द्वारा 09.07.2025 को जारी परिपत्र प्रस्तुत किया. जिसमें राज्य सरकार द्वारा राज्य के सभी कलेक्टरों को निर्देश जारी किया गया था कि वे तहसील और संभाग के तहसीलदारों और उप-विभागीय अधिकारियों को संहिता के तहत निर्धारित समयावधि के भीतर दाखिल खारिज की कार्यवाही पूरी करने के लिए कहें.

इसके बाद जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने कहा कि न्यायालय (HC) यह अपेक्षा करता है कि राज्य के प्रत्येक तहसीलदार और उप-विभागीय अधिकारी को राज्य सरकार द्वारा जारी निर्देशों का तुरंत पालन करना चाहिए और यदि दाखिल खारिज के आवेदनों को लंबित रखा जाता है और परिपत्र दिनांक 09.07.2025 के तहत या संहिता, 2006 के तहत या इस न्यायालय (HC) द्वारा निर्देशित समय सीमा के भीतर निर्णय नहीं लिया जाता है, तो यह न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2(ई) के तहत सिविल अवमानना होगी.
किसी भी अतिरिक्त निर्देश के बिना, अधिकारी को इस न्यायालय (HC) के आदेश की अवज्ञा करने वाला माना जाएगा और वह अवमानना का दोषी होगा. उक्त तथ्य के मद्देनजर कोर्ट ने तहसीलदार सोरांव, प्रयागराज को निर्देश दिया कि वह उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 35 के अंतर्गत दाखिल खारिज वाद संख्या 8654/2023 की कार्यवाही इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करने की तिथि से तीन माह की अवधि के भीतर, सभी प्रभावित पक्षों को सुनने के बाद, विधि के अनुसार पूर्णतः समाप्त करें. इसके साथ ही कोर्ट ने रिट याचिका निस्तारित कर दी है.
इसी कोर्ट (HC) ने एक अन्य रिट याचिका (उत्तर प्रदेश भू-राजस्व संहिता, 2006 की धारा 34 के अंतर्गत दाखिल-खारिज वाद संख्या 435/2024, कम्प्यूटरीकृत वाद संख्या T202405200100435 (प्रेमशीला बनाम रमाकांत गुप्ता) की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने देवरिया सदर के तहसीलदार को निर्देशित किया है कि वे उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 34 के अंतर्गत दाखिल खारिज वाद संख्या 435/2024 (कम्प्यूटरीकृत वाद संख्या T202405200100435) की कार्यवाही आदेश की तिथि से तीन माह के भीतर, विधि के अनुसार, सभी प्रभावित पक्षों को सुनने के पश्चात्, पूर्णतः समाप्त करें.
यह मामला ग्राम बरियारपुर, टोला पोतरिहवा, पोस्ट बड़ाहरा बाबू, टप्पा कछुआर, तहसील व जिला देवरिया में स्थित आराजी संख्या 2771 क्षेत्रफल 0.112 हेक्टेयर भूमि पर राजस्व अभिलेख में याचिकाकर्ता का नाम दाखिल-खारिज करने का था. याचिका में तहसीलदार को निर्देश देने की मांग की गयी थी कि वह तहसीलदार जिला देवरिया के न्यायालय में लंबित केस में जल्द फैसला सुनाने के लिए आदेश दें.