Advocate पर है दोहरी जिम्मेदारी निभाने का दायित्व
हाई कोर्ट ने आदेश लिखे जाने के बाद Advocate द्वारा बहस करने की निंदा की

एक मुकदमे की पैरवी में इनवाल्व होने वाला अधिवक्ता (Advocate ) दोहरी जिम्मेदारी निभाता है. पहला वह अपने मुवक्किल के प्रति जवाबदेह है. दूसरा वह कोर्ट के प्रति भी जिम्मेदार होता है. कोर्ट में उसकी जिम्मेदारी कार्यवाही में कोई व्यवधान न हो यह सुनिश्चित करना होता है. यह कमेंट इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस कृष्ण पहल ने एक जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान किया. कोर्ट ने इस बात की निंदा की कि जज आदेश लिखवा चुके थे और अधिवक्ता (Advocate )बहस जारी रखे हुए थे.
प्रकरण हमीरपुर जिले के मझगवां थाने का है. आरोपित का नाम नरेन्द्र है. उसके खिलाफ मुकदमा अपराध संख्या 09/2025 दर्ज कराया गया है. इस केस में उसका चालान बीएनएस की धारा 74, 64(1) में किया गया था. उसने जमानत के लिए दूसरी बार अर्जी लगायी थी. आवेदक की तरफ से अधिवक्ता मनीष कुमार सिंह और राज्य की तरफ से एजीए सुनील कुमार ने पक्ष रखा. पहली जमानत अर्जी को इस कोर्ट ने 28.5.2025 द्वारा खारिज कर दिया था.
अभियोजन पक्ष की कहानी के अनुसार, आवेदक ने 13.01.2025 को शाम लगभग 4:30 बजे पीड़िता की शील भंग की. आवेदक के अधिवक्ता (Advocate ) ने कहा है कि घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने में नौ दिन की देरी हुई है और उक्त देरी का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है.

एफआईआर में लगाए गए आरोपों को पीड़िता ने धारा 180 बीएनएसएस के तहत दर्ज अपने बयान में दोहराया था.लेकिन बाद में धारा 183 बीएनएसएस के तहत दर्ज अपने बयान में, उसने आरोपों को बलात्कार तक बढ़ा दिया है. तर्क दिया गया कि इसका मतलब यह हुआ कि आवेदक द्वारा उसे उंगली से छूकर गंभीर यौन उत्पीड़न किया गया है, वह भी कानूनी परामर्श के बाद. आवेदक के वकील (Advocate ) ने कहा कि पीड़िता लगभग 47 वर्ष की है और घटना की कोई चिकित्सकीय पुष्टि नहीं है.
प्रकरण में आवेदक ने जमानत के लिए दूसरी बार उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. चूँकि पहली जमानत खारिज कर दी गई थी और जमानत देने का कोई नया आधार नहीं दिखाया गया था, इसलिए न्यायालय ने अर्जी खारिज कर दी. अस्वीकृति के बावजूद वकील (Advocate ) ने बहस जारी रखी.
न्याय, न्यायालय में अधिवक्ता (Advocate ) की दोहरी जिम्मेदारियों को रेखांकित करता है. जहां उन्हें अपने मुवक्किलों के हितों का परिश्रमपूर्वक प्रतिनिधित्व और देखभाल करनी चाहिए, वहीं उनका यह भी भारी कर्तव्य है कि वे न्यायालय कक्ष में एक सम्मानजनक और अनुकूल वातावरण बनाए रखें. अधिवक्ता (Advocate ) को व्यवधान उत्पन्न करने के बजाय न्यायालय की सहायता करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कार्यवाही व्यवस्थित और सम्मानजनक हो, जिससे अंततः न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा बनी रहे.
जस्टिस कृष्ण पहल
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कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा कि, यह स्पष्ट किया जाता है कि यहां की गई टिप्पणियां जमानत आवेदन के निपटारे से संबंधित पक्षों द्वारा लाए गए तथ्यों तक सीमित हैं और उक्त टिप्पणियों का मुकदमे के दौरान मामले के गुण-दोष पर कोई असर नहीं होगा.
आवेदक के वकील (Advocate ) ने खुली अदालत में आदेश पारित होने के बाद न केवल मामले पर बहस जारी रखी, बल्कि हंगामा भी किया और कार्यवाही को बाधित भी किया. इस व्यवहार को न्यायालय की आपराधिक अवमानना माना जाता है, क्योंकि यह न्यायिक प्रक्रिया के अधिकार और मर्यादा को कमजोर करता है, लेकिन यह न्यायालय अवमानना कार्यवाही शुरू करने से परहेज करता है. आदेश पारित होने के बाद किसी भी वादी को न्यायालय की कार्यवाही में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. आवेदक के वकील का उक्त रवैया निंदनीय है.
Case :- CRIMINAL MISC. BAIL APPLICATION No. – 28391 of 2025
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