SRMU के लॉ Students पर पुलिस बर्बरता की न्यायिक जाँच से इंकार
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज की जनहित याचिका

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बाराबंकी स्थित श्री रामस्वरूप स्मारक विश्वविद्यालय में प्रदर्शन करने वाले लॉ Students पर पुलिस लाठी चार्ज की न्यायिक जांच की मांग दाखिल जनहित याचिका को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने यूनिवर्सिटी के खिलाफ न्यायिक जांच का आदेश देने से इंकार करते हुए यह भी स्पष्ट किया कि उसके आदेश को अधिकारियों या प्राइवेट यूनिवर्सिटी द्वारा किसी अवैध कृत्य का समर्थन करने के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए. जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस मंजीव शुक्ला की बेंच अधिवक्ता आशीष कुमार सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर विचार कर रही थी.
याचिका में एसआरएम यूनिवर्सिटी में कथित घटना की जाँच के लिए एक रिटायर्ड जस्टिस की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग के गठन की माँग की गई थी. जनहित याचिका में उन पुलिसकर्मियों, जिनमें पुरुष अधिकारी भी शामिल हैं के खिलाफ मुकदमा चलाने और अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की भी माँग की गई थी. पुलिस अफसरों पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने छात्राओं (Students) के साथ दुर्व्यवहार किया था.
Students ने खुद अदालत का रुख नहीं किया
याचिका में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) की मान्यता के बिना लॉ कॉलेजों के संचालन पर रोक लगाने की मांग भी उठायी गयी थी. शुरुआत में जजों की बेंच ने कहा कि जिन लॉ छात्रों (Students) के बारे में कहा गया था कि उन्हें पीटा गया था उन्होंने खुद अदालत का रुख नहीं किया था. न्यायिक जाँच और पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग वाली राहत के संबंध में, पीठ ने कहा कि पीड़ित व्यक्ति अदालत का रुख कर सकते हैं या कानून के तहत अनुमत उपायों का लाभ उठा सकते हैं.
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यूनिवर्सिटी को बीसीआई की मंजूरी के बिना लॉ कोर्स चलाने से रोकने की याचिका के संबंध में कोर्ट ने बताया कि यह मुद्दा पहले से ही उच्च न्यायालय में एक अन्य जनहित याचिका में लंबित है. इसलिए उसे “उसी कारण से एक और जनहित याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं दिखता”.
पीड़ित Students के उपचार, मुआवजे और पुनर्वास की मांग वाली याचिका के संबंध में, कोर्ट ने नोटिस लिया कि घायल Students को पहले ही लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में भर्ती कराया जा चुका है. कोर्ट ने कहा कि चिकित्सालय में उन्हें उचित चिकित्सा और सुविधा मिल रही होगी.
बेंच ने कहा कि याचिका में केजीएमयू को पक्षकार भी नहीं बनाया गया था. यूनिवर्सिटी पक्षकार होती तो कोई निर्देश देने में आसानी होती. बेंच को यह भी बताया गया कि राज्य सरकार द्वारा निजी विश्वविद्यालय के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसे चुनौती दी गई थी और अन्य कार्यवाही के तहत न्यायालय में लंबित है.
न्यायालय ने जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि उसके आदेश को किसी भी विरोधी पक्ष या निजी विश्वविद्यालय के किसी भी अवैध कार्य को क्षमा करने के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए. बता दें कि Students प्रशासन द्वारा नियमों का उल्लंघन करके और उचित नवीनीकरण/अनुमोदन के बिना लॉ कोर्स चलाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे जब कथित तौर पर उनकी पिटाई की गई.