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पाकिस्तान निर्मित वीडियो Post करने वाले को UAPA के तहत जमानत, 10 मई से है जेल में

पाकिस्तान निर्मित वीडियो Post करने वाले को UAPA के तहत जमानत

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पाकिस्तान निर्मित वीडियो Post करने वाले को यूएपीए और बीएनएस के तहत गंभीर अपराधों के तहत दर्ज एक आरोपी को जमानत मंजूर कर ली. इस व्यक्ति पर कथित तौर पर अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियों वाला एक पाकिस्तान निर्मित वीडियो पोस्ट (Post) करने का आरोप है. यह फैसला जस्टिस संतोष राय की बेंच ने सुनाया है.

बता दें कि आरोपित सावेज पर ‘भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने’ और ‘भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्यों’ सहित गंभीर अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया था. वह 10 मई 2025 से जेल में है. बेंच ने मुकदमे के निष्कर्ष को लेकर अनिश्चितता, जेलों में भीड़भाड़ और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई के मौलिक अधिकार जैसे कारकों को ध्यान में रखा.

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि आरोपित ने अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर पाकिस्तान में तैयार एक वीडियो पोस्ट (Post) किया. इस वीडियो में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को और पुलवामा और पहलगाम आतंकवादी हमलों को दोषी ठहराया गया था. प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि Post वीडियो में सांप्रदायिक शांति भंग करने, राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने और सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित करने की क्षमता थी.

सिर्फ अपने स्टेटस पर Post किया था

कोर्ट में बहस के दौरान यह तथ्य रखा गया कि आरोपित सावेज ने वीडियो खुद नहीं बनाया था. उसने इसे सिर्फ अपने स्टेटस पर पोस्ट (Post) किया था. इसे भी सिर्फ वही लोग देख सकते थे उनका कांटैक्ट नंबर उसके मोबाइल में सेव होगा. जमानत की मांग करते हुए, उनके वकील ने हाईकोर्ट में दलील दी कि मोबाइल फोन की बरामदगी पूरी तरह से झूठी थी और जांच अधिकारी ने जांच के दौरान किसी भी स्वतंत्र गवाह से पूछताछ नहीं की थी.

यह भी कहा गया कि धारा 353 (2), 147, 152, 196, 197 (1) (डी) बीएनएस और धारा 13 (ए) यूएपीए के तहत दंडनीय अपराध के तहत आवेदक के खिलाफ आरोप नहीं बनाए गए थे. स्टेट की तरफ से जमानत याचिका का विरोध करते हुए तर्क तर्क दिया गया कि अपराध (Post) गंभीर प्रकृति का था और इस तरह की सामग्री का प्रसार संप्रभुता और एकता के लिए पूर्वाग्रहपूर्ण आचरण था.

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यह भी तर्क दिया कि अभियुक्त को रिहा करने से ऐसे कृत्यों की पुनरावृत्ति का खतरा होगा. दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने बचाव पक्ष की दलीलों में बल पाया और इस बात पर जोर दिया कि जहां मुकदमे का निष्कर्ष अनिश्चित है वहां परीक्षण-पूर्व कारावास को लंबा नहीं किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने आरोपित को व्यक्तिगत बांड और दो भारी जमानतें प्रस्तुत करने की शर्त पर जमानत प्रदान की. जमानत के साथ यह शर्त भी जोड़ी गयी है कि जेल से बाहर आने के बाद वह साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा. गवाहों को धमकाने का प्रयास नहीं करेगा और न ही अनावश्यक स्थगन की मांग करेंगे.

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