दस्तावेज सत्यापन में विफल अधिकारी नहीं लगा सकते तथ्य छिपाकर नौकरी लेने का आरोप
सेवा समाप्ति आदेश रद, बकाया वेतन सहित बहाली का निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मृतक आश्रित की नियुक्ति में तथ्यों के सत्यापन की जिम्मेदारी प्राधिकारी की है. यदि मां सरकारी नौकरी में हैं और कोई फार्मेट नहीं है जिसमें कालम हो, परिवार रजिस्टर पेश किया गया हो तो यह नहीं कहा जा सकता कि आश्रित ने तथ्य छिपाकर नौकरी हासिल की है. अधिकारी अपनी विफलता का ठीकरा कर्मचारी पर नहीं थोपा सकते. धोखा कल्पना का विषय नहीं साबित करने की जिम्मेदारी सरकार की है.
विभागीय जांच प्रक्रिया के बगैर सेवा समाप्ति नहीं
कोर्ट ने यह भी कहा आश्रित नियुक्ति स्थाई प्रकृति की है, सेवा समाप्ति विभागीय जांच प्रक्रिया बगैर नहीं की जा सकती. कोर्ट ने जिला पंचायत राज अधिकारी बस्ती के याची की सेवा समाप्ति आदेश को रद कर दिया है और बकाया वेतन सहित सेवा बहाली का निर्देश दिया है. यह आदेश जस्टिस अजित कुमार की एकलपीठ ने राहुल की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है. याचिका पर अधिवक्ता आदर्श सिंह व इंद्राज सिंह ने बहस की.
फॉर्मेट नहीं था जिसमें मां की नौकरी का उल्लेख करते
याची के पिता की सेवाकाल में 2008मे मृत्यु हो गई. याची ने परिवार रजिस्टर की प्रति, परिवार की अनापत्ति व अन्य दस्तावेजों के साथ अर्जी दी. जिस पर उसकी नियुक्ति की गई. दसकों बाद किसी ने शिकायत की कि याची की मां भी सरकारी नौकरी कर रही थी. इस तथ्य को छिपाकर उसने नौकरी हासिल की है. संक्षिप्त जांच के बाद याची को कदाचार का दोषी मान सेवा से हटा दिया गया जिसे चुनौती दी गई थी. याची ने कहा ऐसा कोई फार्मेट नहीं था जिसमें मां की नौकरी का उल्लेख किया जाता. परिवार रजिस्टर में लिखा था कि वह सरकारी नौकरी करती है.उसने कोई तथ्य नहीं छिपाया.
अचानक हुए नुकसान से उबरना मुश्किल
कोर्ट ने कहा अचानक परिवार के कमाऊ की मौत से परिवार मानसिक आघात में होता है. वह तकनीकी बारीकी पर ध्यान नहीं दे पाता. अर्जी के दस्तावेज के सत्यापन की जिम्मेदारी अधिकारियों की है. तथ्य के खुलासे के बावजूद वे तथ्य पता करने में विफल रहे.इसे याची का कदाचार नहीं कहा जा सकता. दसकों बाद याची की नियुक्ति निरस्त करना उचित नहीं है.