अपना ही आदेश दुहराकर Officers ने याची को न्याय से वंचित क्यों किया, 22 को तलब
निदेशक बेसिक शिक्षा आजमगढ़ व सचिव बेसिक शिक्षा उप्र 22 सितंबर को तलब

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सहायक निदेशक (Officers) बेसिक शिक्षा आजमगढ़ व सचिव बेसिक शिक्षा (Officers) उप्र लखनऊ को व्यक्तिगत हलफनामे के साथ 22 सितंबर को कोर्ट में हाजिर होने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने पूछा है कि याचिकाओं पर याची को वेतन भुगतान पर निर्णय लेने का दो बार पारित आदेश पर विचार किए बगैर Officers ने मनमाने आदेश किस आधार पर दिये. कोर्ट ने अपने आदेश में सहायक निदेशक के प्रत्यावेदन निरस्त करने के दो आधारों कि याची मूल नियुक्ति के समय 19 जुलाई 85 को नाबालिग था और पद विज्ञापित नहीं किया गया था को अस्वीकार कर फिर से निर्णय लेने का आदेश दिया था.
कोर्ट ने कहा याची की नियुक्ति को कोर्ट ने दोनों आदेशों में अवैध नहीं माना इसके बावजूद अपना ही आदेश दुहराकर अधिकारियों (Officers) ने याची को न्याय से वंचित क्यों किया. कोर्ट आदेश समझने में विफल रहना समझ से परे है. कोर्ट आदेश पर कुछ नहीं कहा और मनमाने ढंग से आदेश दिया. कोर्ट ने दोनों अधिकारियों (Officers) से सफाई मांगी है. यह आदेश जस्टिस मंजू रानी चौहान ने गणेश चौहान की याचिका पर दिया है.
याची का कहना है कि उसकी नियुक्ति श्री ठाकुर जी जूनियर हाईस्कूल बालकुंडा आजमगढ़ में 1985 में चपरासी के पद पर की गई थी. 2 दिसंबर 06 को विद्यालय को राजकीय वित्तीय सहायता स्वीकृत की गई. 11 जून 07 को Officers सहायक निदेशक ने कुछ कर्मचारियों की नियुक्ति का अनुमोदन किया और वेतन भुगतान का आदेश दिया किंतु याची को छोड़ दिया गया.
कोर्ट ने Officers को दिया था निर्देश
जिस पर दाखिल याचिका निस्तारित करते हुए कोर्ट ने सहायक निदेशक को सुनकर आदेश पारित करने का निर्देश दिया. 1 नवंबर 07 को याची का प्रत्यावेदन निरस्त कर दिया गया. कहा नियुक्ति के समय याची नाबालिग था और नियुक्ति का विज्ञापन नहीं निकाला गया था. कोर्ट ने आदेश रद कर आदेश देने के लिए प्रकरण वापस कर दिया.
कोर्ट आदेश की उपेक्षा कर पिछले दो आधारों सहित कि याची जून 2009 तक चार साल गैर हाजिर है, मांग अस्वीकार कर दी. कहा याची वेतन पाने का हकदार नहीं. फिर याचिका दायर की गई.कोर्ट ने 13 जुलाई 17 को सचिव बेसिक शिक्षा को विचार कर आदेश जारी करने का निर्देश दिया.
26 फरवरी 20 को सचिव ने भी कहा नियुक्ति अवैध याची वेतन पाने का हकदार नहीं हैं. कोर्ट ने अधिकारियों द्वारा कोर्ट के 4 जनवरी 13 व 13 जुलाई 17 को पारित आदेश की उपेक्षा कर निर्णय लेने को गंभीरता से लिया और दोनों अधिकारियों से सफाई मांगी है.
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