पाकिस्तान का समर्थन करने वाली पोस्ट पर ‘India की संप्रभुता को खतरे में डालने’ का अपराध नहीं चलेगा: HC

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी अन्य देश के समर्थन में पोस्ट करने मात्र से भारत (India) के नागरिकों में गुस्सा या वैमनस्य पैदा हो सकता है और यह धारा 196 बीएनएस (शत्रुता को बढ़ावा देना) के तहत दंडनीय भी हो सकता है. यह कृत्य धारा 152 बीएनएस (भारत (India) की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य) के कड़े प्रावधानों के अंतर्गत नहीं आएगा. इस कमेंट के साथ जस्टिस संतोष राय की बेंच ने साजिद चौधरी नामक व्यक्ति की जमानत मंजूर कर ली है.
बता दें कि साजिद चौधरी पर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ वाली पोस्ट अपने सोशल मीडिया फेसबुक एकाउंट से फारवर्ड करने का आरोप है. कोर्ट में बताया गया कि आवेदक ने एक पाकिस्तानी व्यक्ति की पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा था “कामरान भट्टी, हमें आप पर गर्व है, पाकिस्तान जिंदाबाद”.
इस पर कोर्ट ने कहा कि ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का उल्लेख करने वाले सोशल मीडिया पोस्ट की एक प्रति संलग्न तो की गई थी, लेकिन अभियोजन पक्ष ने ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया जिससे पता चले कि आवेदक ने भारत (India) की संप्रभुता और अखंडता के सीधे खिलाफ कोई बयान दिया था.
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बेंच के समक्ष उसके वकील ने तर्क दिया कि उसने कहीं भी कोई वीडियो पोस्ट वायरल नहीं किया है. उसका पास्ट में कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं रहा है. उसे जमानत दी जाती है तो उसके न्याय से भागने या सबूतों से छेड़छाड़ करने की कोई संभावना नहीं है. अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि आवेदक एक अलगाववादी है और पहले भी इसी तरह के अपराध कर चुका है. यह जरूर स्वीकार किया गया कि उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं था.

कोर्ट ने कहा कि धारा 152 बीएनएस एक नया प्रावधान है जिसमें कठोर दंड का प्रावधान है और आईपीसी में इसके अनुरूप कोई धारा नहीं है इसलिए इसे उचित सावधानी के साथ लागू किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा सोशल मीडिया पर बोले गए शब्द या पोस्ट भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आते हैं. जिसकी संकीर्ण व्याख्या तब तक नहीं की जानी चाहिए जब तक कि वह ऐसी प्रकृति का न हो जो किसी देश (India) की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित करे या अलगाववाद को बढ़ावा दे.
धारा 152 बीएनएस के दायरे की व्याख्या करते हुए जस्टिस संतोष राय ने कहा कि बोले गए या लिखे गए शब्दों, संकेतों, दृश्य चित्रणों, इलेक्ट्रॉनिक संचार का उद्देश्य अलगाववाद, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों को बढ़ावा देना या अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देना या भारत (India) की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालना होना चाहिए.
कोर्ट ने कहा कि किसी विदेशी देश का समर्थन करने वाला मात्र सोशल मीडिया संदेश धारा 196 बीएनएस के अंतर्गत आ सकता है, जिसके लिए सात साल तक की कैद की सजा हो सकती है, लेकिन यह निश्चित रूप से धारा 152 बीएनएस के प्रावधानों को लागू नहीं करेगा.
भारत (India) की संप्रभुता, एकता और अखंडता पर इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य 2025 में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का भी हवाला
कोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य 2025 में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें यह दोहराया गया था कि विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान की आधारशिला है और सोशल मीडिया पोस्ट का मूल्यांकन कमज़ोर और अस्थिर मानसिकता वाले व्यक्तियों के बजाय “विवेकशील, दृढ़-चित्त, दृढ़ और साहसी व्यक्ति” के नजरिए से किया जाना चाहिए. इस पृष्ठभूमि में मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना कोर्ट ने साजिद चौधरी को कड़ी शर्तों के अधीन जमानत मंजूर कर ली.
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