Income Tax Return आय का निर्णायक प्रमाण नहीं, 127 के तहत पारित आदेश को चुनौती पर कोर्ट की टिप्पणी
कोलकाता HC ने भरण पोषण मामले पर सुनवाई के दौरान स्पष्ट की स्थिति

किसी व्यक्ति की वास्तविक आय Income Tax Return में दर्शाए गए आंकड़ों से बहुत भिन्न होगी और यही कारण है कि न्यायालय अक्सर किसी व्यक्ति की आय का निर्धारण करते समय, विशेष रूप से भरण-पोषण के मामलों जैसी कार्यवाहियों में, Income Tax Return से परे भी देखते हैं. यह टिप्पणी कोलकाता हाईकोर्ट ने भरण-पोषण की राशि कम करने के एक आदेश के विरुद्ध एक पुनरीक्षण आवेदन पर सुनवाई के दौरान की. जस्टिस बिभास रंजन डे ने पत्नी को अधिक भरण-पोषण राशि देने का निर्देश देते हुए यह टिप्पणी की.
हाईकोर्ट याचिकाकर्ता पत्नी द्वारा सीआरपीसी की धारा 127 के तहत पारित आदेश को चुनौती देते हुए दायर पुनरीक्षण आवेदन पर विचार कर रहा था. याचिका में मेंटेंनेंस राशि 30,000 रुपये प्रति माह से घटाकर 20,000 रुपये प्रति माह कर दिये जाने को चुनौती दी गयी थी. पति द्वारा भी इसी आदेश को चुनौती देते हुए एक और आवेदन दायर किया गया था, जिसमें भरण-पोषण की राशि को 20,000 रुपये प्रति माह से और कम करने की मांग की गई थी.
हाईकोर्ट ने बीएनएसएस की धारा 223 के तहत प्रक्रिया की व्याख्या की. यह देखते हुए कि पति ने आकलन वर्ष 2024-2025 के Income Tax Return पर स्पष्ट रूप से भरोसा किया था, जस्टिस बिभास रंजन डे की बेंच ने कहा, “कानून के सभी स्थापित प्रस्ताव को याद दिलाना स्वयंसिद्ध होगा कि किसी व्यक्ति के Income Tax Return को उसकी आय का निर्णायक प्रमाण नहीं माना जा सकता क्योंकि मुख्य रूप से Income Tax Return स्वयं करदाता द्वारा प्रदान की गई जानकारी पर आधारित होता है. इसलिए, किसी व्यक्ति की वास्तविक आय वास्तव में Income Tax Return में दिखाए गए आंकड़ों से बहुत अलग होगी

दंपति का विवाह हुआ और विवाहेतर संबंधों से एक पुत्र का जन्म हुआ. वैवाहिक जीवन में हुए इस कष्टदायक कलह के बाद, याचिकाकर्ता ने धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण के लिए कार्यवाही शुरू की, जिसका निपटारा याचिकाकर्ता/पत्नी के पक्ष में 30,000 रुपये प्रति माह के भरण-पोषण के आदेश द्वारा किया गया. सेवानिवृत्ति को ध्यान में रखते हुए, पति द्वारा धारा 127 सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण में कमी हेतु एक आवेदन दायर किया गया, जिसका भी निपटारा एक आदेश द्वारा किया गया, जिससे भरण-पोषण में 20,000 रुपये प्रति माह की कमी हो गई.
बेंच ने कहा कि अलग हुए पति का मुख्य तर्क उनकी सेवानिवृत्ति के कारण आर्थिक तंगी, उनके अपने चिकित्सा खर्च और इस तथ्य के इर्द-गिर्द घूमता था कि उनका 25 वर्षीय बेटा अब आश्रित नहीं है. बेंच ने स्पष्ट किया कि भरण-पोषण की राशि निर्धारित करते समय अदालतों को आवासीय सुविधा, स्वास्थ्य देखभाल के मानक, दोनों पक्षों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति, योग्यता और रोजगार, आय और संपत्ति के स्रोत, वैवाहिक जीवन स्तर और मुद्रास्फीति जैसे कुछ कारकों पर विचार करना होता है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल के निर्णयों में इस तथ्य के महत्व को रेखांकित किया है कि अलगाव के बाद का भरण-पोषण पत्नी की विवाहित जीवन की जीवनशैली के अनुरूप होना चाहिए.

याचिकाकर्ता ने स्वयं स्वीकार किया था कि उसे अपने ड्राइवर के वेतन पर 15,000 रुपये खर्च करने पड़े. लेकिन, विडंबना यह है कि वह उस महिला को भी 20,000 रुपये का भरण-पोषण देने के लिए तैयार नहीं था जिसने अपने जीवन का एक लंबा समय उसके साथ बिताया है और जिससे उसका एक बेटा भी है.
बेंच ने सीआरपीसी की धारा 127 का आकलन किया और कहा कि ऐसा कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं है जो इस तरह की कटौती के निर्धारण की प्रभावी तिथि पर प्रकाश डालता हो. “इसलिए, बहुत ही वैधानिक प्रावधान का उद्देश्य न्यायालय को प्रभावी तिथि तय करने का विवेकाधिकार देता है”, इसने नोट किया. कोर्ट ने याचिकाकर्ता पति (Income Tax Return) आय का निर्णायक प्रमाण नहींको हर दो साल में 5% की वृद्धि के साथ 25,000/- रुपये प्रति माह भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश दिया. इसने आगे निर्देश दिया कि वर्तमान आदेश, विवादित आदेश के पारित होने की तारीख अर्थात 30 दिसंबर, 2023 से प्रभावी होना चाहिए.
Cause Title: A v. B (Case No.: C.R.R. 770 of 2024)