HC ने खारिज की Rahul Gandhi की याचिका, कहा, MP-MLA कोर्ट के 21 जुलाई के आदेश में दोष नहीं
सिखों को लेकर अमेरिका में दिये गये Rahul Gandhi के बयान के आधार वाराणसी की कोर्ट तय करेगी कि अपराध संज्ञेय है या नहीं

वाराणसी की एमपी एमएलए स्पेशल कोर्ट ने Rahul Gandhi को लेकर जो आदेश दिया है, उसमें कोई दोष नहीं है. वाराणसी की कोर्ट के 21 जुलाई के आक्षेपित आदेश को रद करने के बाद कोर्ट अपने आप कोई निष्कर्ष दर्ज नहीं कर सकता है कि धारा 173(4) बीएनएसएस के तहत दायर आवेदन से कोई संज्ञेय अपराध बनता है या नहीं. इस कमेंट के साथ इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रायबरेली से कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष Rahul Gandhi की वाराणसी की एमपी/एमएलए विशेष अदालत के आदेश की चुनौती में दाखिल आपराधिक पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी है.
यह आदेश शुक्रवार को जस्टिस समीर जैन की बेंच ने सुनाया. इस मामले की सुनवाई दो सप्ताह पहले ही पूरी हो चुकी थी. कोर्ट ने अपना फैसला शुक्रवार को दशहरे का अवकाश शुरू होने से पहले ही सुना दिया. यह भी नोट करने वाला फैक्ट है कि दशहरे के बाद बेंच चेंज हो जाएगी. इसी के चलते यह फैसला अवकाश शुरू होने से पहले ही सुना दिया गया.
शुक्रवार को अपना फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा 28 नवंबर 2024 को दिये गये आदेश की सत्यता और वैधानिकता की जांच करना निचली पुनरीक्षण अदालत का कर्तव्य था. चूंकि पुनरीक्षण अदालत के अनुसार विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया निष्कर्ष गलत था, इसलिए पुनरीक्षण अदालत ने 28.11.2024 के आदेश को रद्द कर दिया और मामले को मजिस्ट्रेट के पास वापस भेज दिया. इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि 21.7.2025 को विवादित आदेश पारित करते समय पुनरीक्षण अदालत ने कोई अवैधता की.
Rahul Gandhi के बयान से कोई संज्ञेय अपराध बनता है?

जस्टिस समीर जैन ने अपने फैसले में यह भी मेंशन किया कि लोअर कोर्ट के मजिस्ट्रेट के आदेश से यह प्रतिबिंबित होता है कि विपक्षी पार्टी संख्या द्वारा पेश किए गए आवेदन को खारिज करते समय 173 (4) बीएनएसएस के तहत कोई निष्कर्ष दर्ज नहीं किया गया था. क्या यूएसए में दिए गए Rahul Gandhi के बयान से कोई संज्ञेय अपराध बनता है? उनके आवेदन को मुख्य रूप से मंजूरी की आवश्यकता के आधार पर खारिज कर दिया गया था.
उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि इस न्यायालय के दृष्टिकोण से निचली पुनरीक्षण अदालत के लिए 21.7.2025 के आक्षेपित आदेश को पारित करते समय योग्यता के आधार पर तथ्यों का ऐसा निष्कर्ष देना आवश्यक नहीं था. आक्षेपित आदेश में कोई अवैधता नहीं है और इसलिए इसे रद्द नहीं किया जा सकता है.
कोर्ट ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध धारा 173(4) बीएनएसएस के अंतर्गत कोई आवेदन प्रस्तुत किया जाता है तो मामला दर्ज करने और मामले की जांच करने का निर्देश देने से पहले संबंधित मजिस्ट्रेट के लिए जरूरी है कि वह यह निष्कर्ष दर्ज करे कि उक्त व्यक्ति के विरुद्ध कोई संज्ञेय अपराध बनता है या नहीं? क्योंकि, एफआईआर दर्ज करने और मामले की जांच करने के लिए, यह आवश्यक है कि संज्ञेय अपराध बनता है.
बता दें कि सितंबर 2024 में Rahul Gandhi ने अमेरिका में एक कार्यक्रम के दौरान कथित तौर पर कहा था कि भारत में सिखों के लिए माहौल अच्छा नहीं है, क्या सिख पगड़ी पहन सकते हैं, कड़ा रख सकते हैं और गुरुद्वारे जा सकते हैं? उनके इस बयान को भड़काऊ और समाज में विभाजनकारी बताते हुए नागेश्वर मिश्र ने सारनाथ थाने में Rahul Gandhi के सिखों पर भड़काऊ बयान को लेकर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग में शिकायत की. एफआईआर दर्ज न होने पर न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी दी.
न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वितीय वाराणसी ने यह कहते हुए अर्जी खारिज कर दी कि केंद्र सरकार की अनुमति लिए बगैर दाखिल अर्जी पोषणीय नहीं है. जिसके खिलाफ विशेष अदालत में पुनरीक्षण अर्जी दी गई. विशेष अपर सत्र अदालत ने अर्जी आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए मजिस्ट्रेट का आदेश रद कर नये सिरे से विचार कर आदेश पारित करने के लिए प्रकरण वापस कर दिया.
इस आदेश को Rahul Gandhi ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. Rahul Gandhi के वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल स्वरूप चतुर्वेदी का कहना था कि आरोप निराधार है. खबरों के आधार पर अर्जी दी गई है. उनके खिलाफ अपराध का कोई केस नहीं बनता. कानूनी प्रक्रिया और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर विचार किए बगैर आदेश दिया गया है. इसलिए विशेष अदालत का आदेश निरस्त किया जाय.
प्रदेश सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने तर्क दिया कि विशेष अदालत ने मजिस्ट्रेट को अर्जी को गुण-दोष के आधार पर तय करने के लिए प्रकरण वापस कर दिया है. अपराध बनता है या नहीं, यह पुलिस विवेचना से स्पष्ट होगा. अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं है. इसलिए याचिका समय पूर्व दाखिल की गई है. सत्र अदालत को पत्रावली तलब कर आदेश की वैधता पर विचार करने का अधिकार है.
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