RBI के 6 जून के सर्कुलर के अनुसार, Unauthorized electronic banking मामले में Customer’s Liability साबित करने का भार बैंक पर
हाईकोर्ट ने बैंक आफ बड़ौदा के पक्ष को दी राहत

भारतीय रिजर्व बैंक के 6 जून, 2017 को “ग्राहक संरक्षण-अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग (electronic banking) लेनदेन में ग्राहकों की जिम्मेदारी सीमित करना” शीर्षक से जारी परिपत्र के तहत अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग (electronic banking) के मामले में Customer’s Liability साबित करने का भार बैंक पर है.
सुरेश चन्द्र सिंह नेगी और अन्य बनाम बैंक आफ बड़ौदा केस की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर बी सराफ और जस्टिस प्रवीण कुमार गिरी ने रिजर्ब बैंक के उपरोक्त परिपत्र के खंड 12 का हवाला देते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर बी. सराफ और जस्टिस प्रवीण कुमार गिरि की बेंच ने कहा, “उपरोक्त परिपत्र का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने पर पता चलता है कि अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग (electronic banking) के मामले में Customer’s Liability साबित करने का भार बैंक पर ही है.”
हाईकोर्ट में दाखिल की गयी याचिका के अनुसार पिता-पुत्र की अपनी अलग-अलग स्वामित्व वाली फर्में थीं. पिता ने बेटे के खाते में 37,85,000 रुपये हस्तांतरित किए. यह राशि आगे एक तीसरे पक्ष के खाते में स्थानांतरित कर दी गई, जिसके खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने गबन का दावा करते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई. इसकी शिकायत उन्होंने बैंक से भी की लेकिन अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई. राहत के लिए याचिकाकर्ताओं ने इलाहबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और बैंक ऑफ बड़ौदा और भारतीय रिजर्व बैंक को दंडात्मक ब्याज के साथ गबन की गई राशि वापस दिलाने का निर्देश देने की मांग की.

याचिकाकर्ताओं के डेबिट/क्रेडिट और आईपी पते के विवरण को देखते हुए, कोर्ट ने पाया कि बैंकिंग ट्रांजैक्शन (electronic banking) पूरी सावधानी के साथ किया गया था. याचिकाकर्ता साइबर फ्राड का शिकार नहीं बने थे. इसने पाया कि हालाँकि याचिकाकर्ताओं को खाते से की गई कटौती के बारे में पता था, उन्होंने बैंक को 2 दिन बाद सूचित किया, जिससे पता चलता है कि उन्होंने कहानी गढ़ी थी.
6 जून, 2017 के आरबीआई परिपत्र, जिसका शीर्षक “ग्राहक संरक्षण-अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग (electronic banking) लेनदेन में ग्राहकों की देयता को सीमित करना” है, में कहा गया है कि जब ग्राहक किसी भी अधिकृत लेनदेन के बारे में 3 कार्यदिवसों के भीतर बैंक को सूचित करता है, तो ग्राहक की देयता शून्य हो जाती है.
“Customer’s Liability सिद्ध करने का भार बैंक पर है और बैंक ने अपने प्रति-हलफनामे में पासबुक, याचिकाकर्ता संख्या 2 द्वारा लाभार्थी को जोड़ने संबंधी दस्तावेज, याचिकाकर्ता संख्या 2 के आईपी पते का विवरण, याचिकाकर्ता संख्या 2 के इंटरनेट बैंक खाते से समय और डेबिट हस्तांतरण का विवरण, और अपने दायित्व के निर्वहन हेतु याचिकाकर्ता संख्या 2 द्वारा पासवर्ड में संशोधन दर्शाने वाला एक दस्तावेज प्रस्तुत किया.”
इलाहाबाद हाईकोर्ट
कोर्ट ने कहा कि आरबीआई का परिपत्र ग्राहक सुरक्षा के पहलुओं को शामिल करता है, जिसमें अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन (electronic banking) के विशिष्ट परिदृश्यों में उत्पन्न होने वाले जोखिमों और जिम्मेदारियों, और ग्राहक दायित्व के बारे में ग्राहकों को जागरूक करने की व्यवस्था शामिल है. इस परिपत्र का उद्देश्य ग्राहकों के लिए धोखाधड़ी वाले लेनदेन से सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करना है, न कि व्यक्तिगत लेनदेन की आड़ में तलवार के रूप में. न्यायालय ने माना कि धन का कोई गबन नहीं हुआ था और याचिकाकर्ताओं को अपने खातों में प्रत्येक लेनदेन की जानकारी थी.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि जयप्रकाश कुलकर्णी (सुप्रा) मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय का निर्णय भी वर्तमान मामले पर लागू नहीं होगा क्योंकि उस मामले में याचिकाकर्ता को अपने खाते में जोड़े गए लाभार्थियों के संबंध में एसएमएस या ईमेल के माध्यम से कोई सूचना नहीं मिली थी, इसलिए यह माना गया कि उस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से कोई लापरवाही नहीं हुई थी. उपरोक्त निर्णय याचिकाकर्ताओं की किसी भी तरह से मदद नहीं करते हैं.
दूसरी ओर, आरबीआई परिपत्र भी याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत लेनदेन (electronic banking) को साइबर धोखाधड़ी के रूप में प्रस्तुत करने का कोई अवसर प्रदान नहीं करता है. आरबीआई परिपत्र ग्राहक सुरक्षा के पहलुओं को शामिल करता है, जिसमें अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन (electronic banking) के विशिष्ट परिदृश्यों में उत्पन्न होने वाले जोखिमों और जिम्मेदारियों, और ग्राहक देयता के बारे में ग्राहक जागरूकता पैदा करने की व्यवस्था शामिल है.

उपरोक्त परिपत्र का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने पर पता चलता है कि अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग (electronic banking) के मामले में ग्राहक की देयता साबित करने का भार बैंक पर है. याचिकाकर्ताओं ने खंड 6(ii) का हवाला दिया, लेकिन फिर
कोर्ट ने कहा कि यह समझना होगा कि क्या नुकसान ग्राहक की लापरवाही के कारण हुआ था. रिकॉर्ड से पता चलता है कि लेनदेन जानबूझकर किया गया था और याचिकाकर्ताओं द्वारा स्वयं किया गया था. बैंक ने अपने प्रति-हलफनामे में पासबुक, याचिकाकर्ता संख्या 2 द्वारा लाभार्थी जोड़ने को दर्शाने वाले दस्तावेज़, याचिकाकर्ता संख्या 2 के आईपी पते का विवरण, याचिकाकर्ता संख्या 2 के इंटरनेट बैंक खाते से समय और डेबिट हस्तांतरण का विवरण, याचिकाकर्ता संख्या 2 द्वारा पासवर्ड संशोधन को दर्शाने वाला एक दस्तावेज, अपना भार वहन करने के लिए प्रस्तुत किया है.
कोर्ट ने कहा कि उपरोक्त अभिलेख के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि धन का कोई गबन नहीं हुआ है क्योंकि प्रत्येक लेनदेन याचिकाकर्ताओं की जानकारी में था, इसलिए, याचिकाकर्ताओं द्वारा किया गया बचाव कानून की दृष्टि में समझ से परे है.
Case: WRIT-C NO. 24192 OF 2022