lawful: ‘CRPC (यूपी संशोधन) ACT 2018 BNSS 2023 के अधिनियमन के बाद निहित रूप से निरस्त’
Truth: राज्य ने अग्रिम जमानत के संबंध में राज्य संशोधन के साथ कार्यवाही की है

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि राज्य विधानमंडल द्वारा पारित सीआरपीसी (CRPC) (यूपी संशोधन) अधिनियम 2018 (यूपी अधिनियम संख्या 4, 2019) भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के पुनः अधिनियमन के बाद निहित रूप से निरस्त हो जाएगा. हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि संसद द्वारा बनाया गया बाद का कानून, हालांकि, राज्य के कानून को स्पष्ट रूप से निरस्त नहीं करता है, फिर भी, राज्य का कानून निहित रूप से निरस्त हो जाएगा. आवेदक की ओर से हाईकोर्ट के समक्ष आवेदन यूपी गैंगस्टर एक्ट की धारा 2 और 3 के तहत दर्ज मामले में उसे अग्रिम जमानत देने की प्रार्थना के साथ दायर किया गया था.
जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की बेंच ने कहा, राज्य विधायिका द्वारा पारित दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) (यूपी संशोधन) अधिनियम 2018 (यूपी अधिनियम संख्या 4, 2019) निहित रूप से निरस्त माना जाएगा.” इसमें कहा गया है, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि राज्य विधायिका के लिए नव अधिनियमित संहिता 2023 में राज्य संशोधन लाना हमेशा खुला है”. इसके साथ ही कोर्ट ने पहले दी गयी अंतरिम राहत को बरकरार रखने का आदेश दिया है. प्रकरण उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले से जुड़ा हुआ है. याची एंटीसेपेट्री बेल के लिए सीधे हाईकोर्ट पहुंचा था.
क्यों उठा CRPC (यूपी संशोधन) अधिनियम 2018 विवाद
अधिवक्ता सुशील कुमार सिंह और आयुष सिंह ने याचिकाकर्ता रमन साहनी का और सरकारी वकील ने प्रतिवादी का पक्ष रखा. आवेदक की दलील थी कि प्रतिद्वंद्वी और ट्रांसपोर्ट के व्यवसाय में शामिल उनके परिवार ने एफआईआर दर्ज कराई थी. आवेदक के बहनोई ने भी दुश्मनी में उसके खिलाफ कई एफआईआर दर्ज करायी. आवेदक का प्रतिद्वंद्वी, आर्थिक और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली होने के कारण, पुलिस अधिकारियों पर दबाव बना रहा था. अग्रिम जमानत के लिए सीधे अदालत का दरवाजा खटखटाने का अगला आधार यह था कि आवेदक को जान का खतरा था क्योंकि पक्षों के बीच गहरी दुश्मनी थी.
अंकित भारती बनाम उत्तर प्रदेश राज्य केस का हवाला
बेंच ने अंकित भारती बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2020) के फैसले का हवाला दिया जिसमें यह माना गया है कि हाईकोर्ट द्वारा सीधे आवेदन पर विचार करना उस न्यायाधीश के विचार के लिए है जिसके समक्ष याचिका रखी गई है. “इसका अर्थ यह है कि इस बात पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है कि गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति सीधे उच्च न्यायालय का दरवाजा नहीं खटखटा सकते हैं, बल्कि यह मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा, जिसके आधार पर माननीय न्यायाधीश अपने विवेक का प्रयोग करेंगे और इस तरह की अग्रिम जमानत अर्जी की स्थिरता के बारे में निर्णय लेंगे”. यह कमेंट कोर्ट ने सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के आधार पर अग्रिम जमानत अर्जी की स्थिरता के बारे में आपत्ति को खारिज करते हुए किया.
पाठ और प्रावधान के आशय को भी बदल दिया गया
आपत्तियों में से एक यह भी थी कि क्या अधिनियम 2018-(यूपी अधिनियम संख्या 4, 2019) की धारा 6(ए)(बी) के नियम सीआरपीसी (CRPC) 1973 के निरस्त होने और ‘संहिता 2023’ के पुन: अधिनियमित होने के बाद भी लागू/लागू है? बेंच ने कहा कि धारा 482 के तहत अग्रिम जमानत देने के लिए सिर्फ धारा संख्या ही नहीं बल्कि पाठ और प्रावधान के आशय को भी बदल दिया गया है.
1973, तथा पूर्ववर्ती सीआरपीसी (CRPC) 1973 में किए गए राज्य संशोधनों को नए अधिनियमित संहिता 2023 के बचत खंड में स्थान नहीं मिला. जवाबी हलफनामे में राज्य सरकार के रुख का संदर्भ दिया गया कि यूपी राज्य ने संहिता 2023 में अग्रिम जमानत के संबंध में राज्य संशोधन के साथ कार्यवाही की है. संशोधन का मसौदा भी तैयार है. इससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि राज्य सरकार को यह भी पता था कि पहले की सीआरपीसी (CRPC) 1973 के निरस्त होने के बाद, 2019 के अधिनियम संख्या 4 के माध्यम से संशोधन लागू करने योग्य नहीं था.
“उपर्युक्त प्रस्तुतिकरण और चर्चाओं के मद्देनजर, मेरी यह राय है कि संसद द्वारा बनाया गया बाद का कानून, हालांकि, राज्य के कानून को स्पष्ट रूप से निरस्त नहीं करता है, फिर भी, राज्य कानून निहित रूप से निरस्त हो जाएगा और यह “समान मामले” के संबंध में किसी भी बाद के संसद कानून के लिए रास्ता देगा जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 254 के प्रावधान के संचालन के आधार पर राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून को जोड़ता है, संशोधित करता है, बदलता है या निरस्त करता है”.
जस्टिस श्री प्रकाश सिंह, इलाहाबाद हाईकोर्ट लखनउ बेंच
Case: No 2495/2016 Matter under sec 227