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प्रथम चरण में दिया गया statement बाद में प्रस्तुत व्याख्या से अधिक महत्वपूर्ण, GST विभाग की धारा 129 की कार्रवाई वैध

प्रथम चरण में दिया गया statement बाद में प्रस्तुत व्याख्या से अधिक महत्वपूर्ण, GST विभाग की धारा 129 की कार्रवाई वैध

प्रथम चरण में वाहन ड्राइवर का statement बाद में दी गयी सफाई अधिक महत्वपूर्ण है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेसर्स आसर स्क्रैप ट्रेडर्स की याचिका खारिज कर दी है और जीएसटी विभाग की धारा 129 की कार्रवाई को वैध माना है. यह आदेश जस्टिस पीयूष अग्रवाल ने दिया है. याची का कहना है कि अगस्त 2022 में अलीगढ़ स्थित फर्म से खरीद करते हुए मुजफ्फरनगर स्थित फर्म को बेच दिया. उस समय सभी वैध प्रपत्र मौजूद थे.

सचल दल ने गलत तरीके के कर और अर्थदंड आरोपित किया है. उल्लेखनीय है कि जब वाहन मेरठ रोड पर पहुँचा तो मोबाइल स्क्वॉड ने उसे रोका और चालक का statement दर्ज किया. चालक ने स्पष्ट रूप से कहा कि माल सीधे अलीगढ़ से लोड हुआ और बीच में इगलास गोदाम पर कोई लोडिंग नहीं हुई.

इस statement के आधार पर सहायक आयुक्त, मोबाइल स्क्वॉड ने जीएसटी एक्ट की धारा 129 टैक्स में कार्रवाई करते हुए कर व अर्थदंड आरोपित किया.  बाद में याचिकाकर्ता द्वारा दाखिल अपील को एडिशनल कमिश्नर अपील मेरठ ने खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रांजल शुक्ला ने हाईकोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी कि सभी दस्तावेज मौजूद थे और कर एवं अर्थदंड का आरोपण  मनमाने तरीके से किया  गया है.

प्रथम statement सबसे अधिक प्रमाणिक

राज्य सरकार की ओर से अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रवि शंकर पाण्डेय ने दलील दी कि प्रस्तुत मामले में चालक का प्रथम statement सबसे अधिक प्रामाणिक है और उसे किसी भी स्तर पर चुनौती नहीं दी गई. अतः उस आधार पर की गई विभागीय कार्रवाई पूरी तरह से न्यायोचित है और याचिका खारिज होने योग्य है.

कोर्ट ने कहा कि चालक का बयान दबाव में नहीं लिया गया और न ही उसका खंडन किया गया है. एक बार जब ड्राइवर के statement का कोई खंडन नहीं किया गया तो उस आधार पर हुई कार्रवाई को मनमाना नहीं कहा जा सकता. ड्राइवर द्वारा प्रथम चरण में दिया गया statement बाद के चरण में प्रस्तुत किए गये स्पष्टीकरण की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण और विश्वसनीय होता है. अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए विभागीय आदेशों को बरकरार रखा.

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बाध्यकारी उपबंधो का पालन किए बगैर पुलिस charge sheet पर की गई पूरी कोर्ट कार्यवाही रद

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनियंत्रित जमा योजना प्रतिबंध कानून की धारा 29 व 30 के बाध्यकारी उपबंधो का पालन किए बगैर पुलिस charge sheet पर की गई पूरी कोर्ट कार्यवाही को रद कर दिया है और सक्षम प्राधिकारी को कानून की धारा 29 व 30 के अनुसार नये सिरे से कार्यवाही की छूट दी है. यह आदेश जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव ने परीक्षित पारस की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है. याचिका पर अधिवक्ता अश्वनी कुमार ओझा ने बहस की.

इनका कहना था कि पुलिस ने भी एनएस की विभिन्न धाराओं सहित अनियंत्रित जमा योजना प्रतिबंध कानून की धारा 3/21के तहत ललितपुर के तालबेहट थाने में एफआईआर दर्ज कर विवेचना शुरू की और charge sheet दाखिल की. स्पेशल कोर्ट ने charge sheet संज्ञान लेते हुए सम्मन जारी किया तो याची ने पूरी केस कार्रवाई की वैधता को चुनौती दी. कहा कि धारा 29 में सक्षम प्राधिकारी को सूचना मिलने पर संतुष्ट होने पर सीबीआई को जांच के लिए भेजने का अधिकार है.

पुलिस को एफआईआर दर्ज कर विवेचना करने का अधिकार नहीं है. कानून के विपरीत बिना बाध्यकारी उपबंधो का पालन किए की गई आपराधिक कार्यवाही कानून की नजर में अवैध है. अदालत ने भी उपबंधो पर विचार किए बगैर आदेश जारी किया. कोर्ट ने पूरी आपराधिक केस कार्यवाही रद कर दी.

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