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43 साल बाद भूमि पट्टा विवाद में याचियों को राहत, राजस्व अभिलेखों में नाम दर्ज करने का निर्देश

हाई कोर्ट ने राजस्व बोर्ड और अपर जिलाधिकारी का आदेश अवैध घोषित करते हुए रद किया

43 साल बाद भूमि पट्टा विवाद

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ललितपुर जिले में 43 साल बाद भूमि पट्टा विवाद में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद याचियो को बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने भूमि पट्टा विवाद में याचियो का नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज करने का निर्देश दिया है. जस्टिस चंद्र कुमार राय की सिंगल बेंच ने राजस्व बोर्ड द्वारा 12 नवम्बर 1992 तथा अपर जिलाधिकारी द्वारा 16 अक्टूबर 1982 को पारित आदेशों को अवैध करार देते हुए रद कर दिया. कोर्ट ने कहा कि पट्टा निरस्त करने की कार्रवाई 20 वर्षों बाद की गई, जो विधि के अनुसार मियाद सीमा से बाहर थी.

20 साल तक पट्टे पर कोई आपत्ति नहीं
कोर्ट ने  कहा कि पिता की भूमि को पुत्र के स्वामित्व में नहीं जोड़ा जा सकता. याची सुमेर सिंह व अन्य को वर्ष 1959 में ग्राम खिरिया छतारा, जिला ललितपुर की 34.95 एकड़ जमीन कृषि प्रयोजन हेतु पट्टे पर दी गई थी. लगभग 20 वर्षों तक किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई. लेकिन 1979 में राज्य सरकार ने स्वत: संज्ञान लेकर पट्टा निरस्त करने की प्रक्रिया शुरू की. तर्क दिया गया कि याचियों के पास पहले से ही पर्याप्त भूमि थी. इसलिए उन्हें भूमि पट्टा पाने का अधिकार नहीं था और पट्टा निरस्त कर दिया. भूमि पट्टा विवाद को हाइकोर्ट में चुनौती दी.

पट्टा पाने का अधिकार नहीं था
राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि याचीगण भूमिहीन कृषक मजदूर नहीं थे, इसलिए उन्हें भूमि का पट्टा पाने का अधिकार नहीं था. उनके पिता के पास जमीन थी., याचियों का कहना था कि की उन्हें सीएलआरडी योजना के तहत वैध रूप से जमीन का पट्टा मिला था और वे 1959 से ही निरंतर काबिज हैं. उनके पिता की जमीन से उनका कोई सरोकार नहीं था. 43 साल बाद भूमि पट्टा विवाद में कोर्ट ने याचियो का नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज करने का निर्देश दिया है.

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