रुटीन नहीं हो सकता है DNA test: High Court
अपरिहार्य परिस्थितियों में ही करायी जा सकती है DNA Test

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म पीड़िता के बच्चे के पितृत्व का पता लगाने के लिए DNA रूटीन तरीके से नहीं कराई जा सकती क्योंकि पीड़िता और उसके बच्चे के डीएनए परीक्षण (DNA test) के गंभीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि बाध्यकारी और अपरिहार्य परिस्थितियां हों और ठोस आधार होने पर ही कोर्ट जांच (DNA test) करा सकती है. जस्टिस राजीव मिश्र की बेंच ने गाजीपुर निवासी रामचंद्र राम की याचिका खारिज करते हुए यह आदेश दिया है.
रेप की घटना 29 मार्च 2021 को गाजीपुर जिले के जमनिया थाना क्षेत्र में हुई थी. इस मामले में रिपोर्ट दर्ज करायी गयी और बताया गया कि रेप पीड़िता माइनर है. इसके चलते आरोपित के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार), 452 (घर में जबरन प्रवेश), 342 (गलत तरीके से बंधक बनाना), 506 (आपराधिक धमकी) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5/6 के तहत मामला दर्ज किया गया था.
प्रकरण की गहन छानबीन के बाद पुलिस ने अभियुक्त के खिलाफ आईपीसी की धारा 376, 452, 342, 506 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5/6 के तहत आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल किया. इसके बाद मामला सुनवाई के लिए आगे बढ़ा.

5 गवाहों की जाँच के बाद आवेदक ने अभियोजन दाखिल करने वाले और उसके बच्चे के डीएनए परीक्षण (DNA test) के लिए आवेदन दायर किया. इसमें कहा गया था कि बच्चा समय से पहले पैदा हुआ था इसके बाद भी वह पूरी तरह से विकसित था. वह बच्चा आवेदक का नहीं हो सकता. आरोपित की तरफ से दाखिल किये गये इस DNA test आवेदन को ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया.
इसके बाद आरोपित ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. दलील दी गई कि अभियुक्त के अपराध/निर्दोषता को साबित करने के लिए DNA test आवश्यक है. याची की तरफ से कहा गया कि पीड़िता व उसके बच्चे का डीएनए टेस्ट कराया जाए ताकि कोर्ट के सामने सही तथ्य उपलब्ध हो सकें. यह मांग इस आधार पर की गई कि बच्चे का जन्म समय से पहले हुआ था.
इसके बाद भी वह पूरी तरह से स्वस्थ और विकसित था. कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार यह टिप्पणी की है कि न्यायालयों को पीड़िता और उसके बच्चे के डीएनए परीक्षण के लिए प्रार्थना वाले आवेदन पर विचार करते समय सतर्कता और सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि इसके गंभीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं.
“आईपीसी की धारा 376 के तहत अपराध में, बच्चे के पितृत्व की जांच करना आवश्यक नहीं है. अभियोक्ता और उसके बच्चे के डीएनए परीक्षण के गंभीर सामाजिक परिणाम हो सकते हैं. केवल तभी जब रिकॉर्ड में बाध्यकारी और अपरिहार्य परिस्थितियाँ सामने आई हों जो अभियोक्ता और उसके बच्चे के DNA का निर्देश देने के लिए एक ठोस मामला बनाती हैं, तभी कोर्ट ऐसे परीक्षण का निर्देश दे सकती है.”
न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत के लिए तय किए गए आरोपों पर विचार करना जरूरी है क्योंकि वह मुकदमे की सुनवाई में देरी नहीं कर सकती. कोर्ट ने यह भी माना कि बलात्कार के मामलों में नियमित रूप से डीएनए परीक्षण (DNA test) न किए जाने के निचली अदालत के निष्कर्षों का आवेदक ने स्पष्ट रूप से खंडन नहीं किया था. कोर्ट ने तथ्यों को परखने के बाद डीएनए टेस्ट की मांग में दाखिल याचिका को खारिज कर दिया है.
Case :- APPLICATION U/S 482 No. – 24302 of 2024
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