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सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को Criminal jurisdiction से हटाने का 4 जून का आदेश वापस लिया

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को उनकी सेवानिवृत्ति तक आपराधिक क्षेत्राधिकार (Criminal jurisdiction ) से हटाये जाने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार 8 अगस्त को वापस ले लिया. 4 अगस्त को दिये गये फैसले में दो जजों की बेंच ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को निर्देश दिया था कि जस्टिस प्रशांत कुमार का आपराधिक क्षेत्राधिकार (Criminal jurisdiction) वापस लेकर उन्हें एक अनुभवी वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ बैठाया जाना चाहिए. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने 4 अगस्त को हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार द्वारा पारित एक आदेश पर आपत्ति जताते हुए यह असामान्य (Criminal jurisdiction) आदेश पारित किया था.

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को Criminal jurisdiction से हटाने का निर्देश वापस लिया

4 अगस्त को दिये गये Criminal jurisdiction वापस लेने वाले आदेश की व्यापक आलोचना हो रही थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के 13 न्यायाधीशों के हस्ताक्षर से चीफ जस्टिस आफ इंडिया को पत्र लिखकर Criminal jurisdiction वापस लेने वाले आदेश पर आपत्ति दर्ज करायी थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन को पत्र लिखकर अनुरोध किया था.

शुक्रवार को अपने फैसले में बेंच ने इसका जिक्र भी किया. कोर्ट ने कहा कि अपने आदेश से अनुच्छेद 25 और 26 को हटाते हैं. आदेश में तदनुसार सुधार किया जाए. हम इन अनुच्छेदों को हटाते हुए, अब इस मामले को देखने का कार्य इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पर छोड़ते हैं.

कोर्ट ने कहा, हम पूरी तरह से स्वीकार करते हैं कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ही रोस्टर के स्वामी होते हैं. ये निर्देश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की प्रशासनिक शक्ति में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करते हैं. साथ ही य​ह भी जोड़ा कि देश के 90% वादियों के लिए, हाईकोर्ट अंतिम न्याय न्यायालय है. बता दें कि चीफ जस्टिस के आग्रह कि बाद निपटाए गए मामले को शुक्रवार को नए निर्देशों के लिए पुनः सूचीबद्ध किया गया था.

“हमें भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश का एक अदिनांकित पत्र मिला है जिसमें अनुच्छेदों में की गई टिप्पणियों पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया है. ऐसी परिस्थितियों में, हमने रजिस्ट्री को भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा किए गए अनुरोध पर विचार करने के लिए मुख्य मामले को पुनः अधिसूचित करने का निर्देश दिया है.”
जस्टिस पारदीवाला ने पुनः सूचीबद्ध करने के कारणों की व्याख्या करते हुए कहा

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को Criminal jurisdiction से हटाने का निर्देश वापस लिया

जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश को किसी भी तरह की शर्मिंदगी का कारण बनाने का हमारा कोई इरादा नहीं था. उनका एकमात्र उद्देश्य एक स्पष्ट रूप से विकृत आदेश को सही करना था. जब मामले एक सीमा पार कर जाते हैं और संस्था की गरिमा खतरे में पड़ जाती है, तो संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अपने अपीलीय क्षेत्राधिकार के तहत कार्य करते हुए भी हस्तक्षेप करना इस न्यायालय की संवैधानिक जिम्मेदारी बन जाती है.

“हाई कोर्ट अलग द्वीप नहीं हैं जिन्हें इस संस्था से अलग किया जा सके. हम दोहराते हैं कि हमने अपने आदेश में जो कुछ भी कहा, वह यह सुनिश्चित करने के लिए था कि न्यायपालिका की गरिमा और अधिकार इस देश के लोगों के मन में सर्वोच्च स्थान पर बना रहे. यह केवल संबंधित न्यायाधीश द्वारा कानूनी बिंदुओं या तथ्यों को समझने में हुई भूल या भूल का मामला नहीं है. हम न्याय के हित में और संस्था के सम्मान और गरिमा की रक्षा के लिए उचित निर्देश जारी करने के बारे में चिंतित थे.”
जस्टिस पारदीवाला

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को Criminal jurisdiction से हटाने का निर्देश वापस लिया

केस के अनुसार ललिता टेक्सटाइल्स (उच्च न्यायालय के समक्ष प्रतिवादी) ने अपीलकर्ता के विरुद्ध एक आपराधिक शिकायत दर्ज की. जिसमें आरोप लगाया गया कि उसने अपीलकर्ता को विनिर्माण में प्रयुक्त धागा आपूर्ति किया था और 7,23,711/- रुपये की बकाया राशि बकाया थी. अपीलकर्ता के विरुद्ध सम्मन जारी किया गया.

जब अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, तो न्यायमूर्ति कुमार ने सुझाव दिया कि चूँकि शिकायतकर्ता एक “छोटी व्यावसायिक फर्म” है और इसमें शामिल राशि बड़ी है, इसलिए इस मामले को पक्षों के बीच दीवानी विवाद के रूप में संदर्भित करना न्याय का उपहास होगा. सिविल वाद दायर करने पर शिकायतकर्ता को उम्मीद की किरण दिखने में सालों लग जाएँगे और दूसरा, उसे मुकदमा चलाने के लिए और भी पैसा लगाना पड़ेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार को Criminal jurisdiction से हटाने का निर्देश वापस लिया

यह ऐसा लगेगा जैसे अच्छा पैसा बुरे पैसे के पीछे भाग रहा हो. जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उठाया गया, तो जस्टिस पारदीवाला ने जस्टिस प्रशांत कुमार के विरुद्ध कुछ कठोर टिप्पणियाँ कीं और मामले को सुनवाई के वापस हाईकोर्ट भेज दिया. इसमें हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से अनुरोध किया गया था कि वे इस मामले को हाईकोर्ट के किसी अन्य न्यायाधीश को सौंप दें.

आदेश में यह भी एड किया गया था कि, संबंधित न्यायाधीश को उच्च न्यायालय के एक अनुभवी वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ खंडपीठ में बैठाया जाना चाहिए. संबंधित न्यायाधीश को उनके पद छोड़ने तक कोई भी आपराधिक निर्णय नहीं सौंपा जाना चाहिए. यदि उन्हें एकल न्यायाधीश के रूप में बैठना ही है, तो उन्हें कोई भी आपराधिक निर्णय (Criminal jurisdiction ) नहीं सौंपा जाना चाहिए.

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