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जस्टिस प्रशांत कुमार पर comment करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच 8 को फिर सुनेगी सेम केस

जस्टिस पर रोस्टर प्रतिबंधों से संबंधित मामले की सुप्रीम कोर्ट में आज फिर सुनवाई

जस्टिस प्रशांत कुमार पर comment करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच 8 को फिर सुनेगी सेम केस

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस प्रशांत कुमार के फैसले पर कमेंट (comment) करते हुए उनकी सेवानिवृत्ति तक किसी भी आपराधिक क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से रोकने का आदेश देने वाले 4 अगस्त के सुप्रीम कोर्ट के फैसले वाले केस की सुनवाई फिर से 8 अगस्त को सेम कोर्ट में होगी. 4 अगस्त को जस्टिस प्रशांत कुमार के लिए तमाम डायरेक्शन देने के साथ निस्तारित मान लिये गये इस केस का स्टेटस अब फिर से पेंडिंग हो गया है. शुक्रवार को इस पर आने वाला फैसला दिलचस्प होगा. इलाहाबाद हाई कोर्ट के एडवोकेट्स की इससे भी ज्यादा दिलचस्पी इस बात में है कि कोर्ट जस्टिस प्रशांत कुमार पर क्या फैसला (comment) देती है.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने सुनवाई बाद के बाद हाईकोर्ट के जस्टिस के तर्क (comment) की कड़ी आलोचना की थी. विवादित आदेश के पैराग्राफ 12 का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए, दो जजों की बेंच ने कहा था कि “न्यायाधीश ने यहाँ तक कहा है कि शिकायतकर्ता को दीवानी उपाय अपनाने के लिए कहना. बहुत अनुचित होगा. पैराग्राफ 12 में दर्ज निष्कर्ष चौंकाने वाले हैं.”

जस्टिस प्रशांत कुमार पर comment करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच 8 को फिर सुनेगी सेम केस

दो जजों की बेंच ने कहा था कि इस तरह की टिप्पणियाँ (comment) आपराधिक कानून के दायरे को विकृत करती हैं और न्यायिक प्रक्रिया की घोर गलतफहमी को दर्शाती हैं. संबंधित न्यायाधीश ने न केवल खुद को एक दयनीय स्थिति में पहुँचाया है, बल्कि comment से न्याय का भी मज़ाक उड़ाया है. हम यह समझने में असमर्थ हैं कि उच्च न्यायालय के स्तर पर भारतीय न्यायपालिका में क्या गड़बड़ है.

संभावित बाहरी प्रभाव या कानून की अज्ञानता पर चिंता व्यक्त करते हुए, न्यायालय ने इस तरह के तर्क को “अक्षम्य” करार दिया था. दो दिन के भीतर न्यायिक तर्क (comment) पर गंभीर चिंताओं का हवाला देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस को आपराधिक मामलों की सुनवाई से रोकने वाले सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही अभूतपूर्व निर्देश पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है.

बता दें कि पहले इस निर्णय को निपटाया हुआ मान लिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने अब इसे बहाल कर दिया है और निर्देश दिया है कि इसे उसी पीठ के समक्ष “निर्देश मामलों” की श्रेणी में शुक्रवार को लिस्ट किया जाय. सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त के अपने आदेश में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को संबंधित न्यायाधीश की न्यायिक सूची में तत्काल संशोधन करने का निर्देश दिया था. कोर्ट ने आदेश दिया था कि न्यायाधीश को केवल वरिष्ठ न्यायाधीश के साथ बेंच में ही नियुक्त किया जाए, जिससे उनके स्वतंत्र न्यायिक कार्य सीमित हो जाएँ.

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जस्टिस प्रशांत कुमार पर comment करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच 8 को फिर सुनेगी सेम केस

बेसिकली यह मामला ललिता टेक्सटाइल्स द्वारा अपीलकर्ता के खिलाफ बकाया राशि का कथित रूप से भुगतान न करने की शिकायत से उत्पन्न हुआ था. मजिस्ट्रेट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 406 के तहत समन जारी किया. अभियुक्त ने कार्यवाही रद्द करने की मांग करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

प्रकरण की सुनवाई करने वाले जस्टिस प्रशांत कुमार ने शिकायत को रद्द करने से इनकार कर दिया, यह तर्क (comment)  देते हुए कि मामले को दीवानी कार्यवाही में स्थानांतरित करने से शिकायतकर्ता, जो एक छोटी व्यावसायिक संस्था प्रतीत होती है, पर वित्तीय और प्रक्रियात्मक दोनों रूप से बोझ पड़ेगा.

जस्टिस कुमार ने 5 मई को दिये गये अपने फैसले में (comment) कहा था कि शिकायतकर्ता को दीवानी उपचार अपनाने के लिए मजबूर करना अन्याय होगा. दीवानी मुकदमेबाजी से जुड़ी देरी और लागत को देखते हुए इसे “न्याय का उपहास” बताया था.

जस्टिस प्रशांत कुमार पर comment करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच 8 को फिर सुनेगी सेम केस

अपीलकर्ता ने एक विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इसमें तर्क दिया गया था कि मामला विशुद्ध रूप से दीवानी प्रकृति का है और शिकायतकर्ता की वित्तीय स्थिति इस विवाद को आपराधिक मानने का औचित्य नहीं ठहरा सकती. यह तर्क दिया गया कि ऐसा तर्क दीवानी अपराधों को आपराधिक अपराधों से अलग करने वाले स्थापित सिद्धांतों के विपरीत है.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के जजों की बेंच के कमेंट के बाद हाईकोर्ट के 13 न्यायाधीशों द्वारा पहली बार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अधिकारिता पर प्रत्यक्ष आपत्ति दर्ज की गई थी. उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत का संविधान सुप्रीम कोर्ट को हाईकोर्ट के जजों पर कोई प्रशासनिक सुपरविजन अथवा अधीक्षण का अधिकार नहीं देता. पत्र में इस आदेश की भाषा को न केवल ‘आलोचनात्मक’ बल्कि ‘अफसोसनाक’ बताया गया. यह घटनाक्रम भारत की न्यायिक व्यवस्था में एक ऐतिहासिक मोड़ दर्शाता है, जहां हाईकोर्ट के न्यायाधीशों ने न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप का सार्वजनिक रूप से विरोध किया है.

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