बिहार में SIR: मतदाता सूची प्रकाशन पर रोक नहीं, 1 को जारी होगी मसौदा सूची
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मसौदा सूची में अवैधता मिली तो पूरी प्रक्रिया निरस्त होगी

बिहार में चल रहे SIR (Special Intensive Revision) के तहत तैयार किये गये मसौदा ड्राफ्ट पर रोक लगाने से सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया. तय प्रक्रिया के अनुसार भारत निर्वाचन आयोग इसका प्रकाशन 1 अगस्त को करेगा. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की ने संक्षिप्त सुनवाई के दौरान कहा कि यह एक मसौदा सूची है. अगर कोई अवैधता पाई जाती है तो न्यायालय अंततः पूरी प्रक्रिया को रद्द कर सकता है.
सोमवार को दो जजों की बेंच ने इस मुद्दे (SIR) पर विस्तार से सुनवाई के लिए समय नहीं दिया. लंच से ठीक पहले इस मुद्दे (SIR) पर संक्षिप्त सुनवाई हुई क्योंकि जस्टिस सूर्यकांत को एडमिनिस्ट्रेटिव मिटिंग में शामिल होने के लिए जाना था. उन्होंने याचिकाकर्ताओं को आश्वासन देते हुए कहा कि SIR मामले की जल्द से जल्द सुनवाई की जाएगी. जस्टिस सूर्यकांत ने वकीलों से SIR पर मंगलवार को बहस के लिए आवश्यक अनुमानित समय प्रस्तुत करने को कहा.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकर नारायणन ने बेंच से SIR के बाद मसौदा सूची की अधिसूचना रोकने का आग्रह करते हुए कहा कि SIR की प्रक्रिया से बिहार के करीब 4.5 करोड़ मतदाताओं को असुविधा हो सकती है. उन्होंने कहा कि मसौदा सूची प्रकाशित होने के बाद, बाहर किए गए लोगों को आपत्तियां दर्ज करने और नाम शामिल करने के लिए कदम उठाने होंगे.
उन्होंने कोर्ट में कहा कि 10 जून को सुनवाई के दौरान SIR के बाद तैयार मसौदा सूची के प्रकाशन पर रोक लगाने की प्रार्थना नहीं की गई क्योंकि न्यायालय मसौदा प्रकाशन की तिथि से पहले सुनवाई के लिए सहमत हो गया था.
याचिकाकर्ताओं ने बेंच को बताया कि भारत निर्वाचन आयोग पिछली हियरिंग के दौरान कोर्ट की तरफ से SIR को लेकर दिये गये सुझावों को लागू करने में कोई रुचि नहीं दिखा रहा है. आयोग ने अब तक SIR में आधार कार्ड, मतदाता फोटो पहचान पत्र और राशन कार्ड को मान्यता प्रदान नहीं की है. यह सुप्रीम कोर्ट की सलाह का उल्लंघन है. अपने जवाबी हलफनामे में चुनाव आयोग ने इन दस्तावेजों के बारे में अपनी आपत्तियाँ उठाई हैं.
पीठ ने मौखिक रूप से चुनाव आयोग से कहा कि वह कम से कम आधार और ईपीआईसी जैसे वैधानिक दस्तावेजों पर विचार करे. जस्टिस सूर्यकांत ने चुनाव आयोग के वकील से मौखिक रूप से कहा, आधिकारिक दस्तावेजों के साथ शुद्धता की धारणा होती है, आप इन दोनों दस्तावेजों के साथ आगे बढ़ें. आप इन दोनों दस्तावेजों (आधार और ईपीआईसी) को शामिल करेंगे. जहाँ भी आपको जालसाजी मिले, वह मामला-दर-मामला आधार पर होगा. दुनिया का कोई भी दस्तावेज जाली हो सकता है. आपको सामूहिक बहिष्कार के बजाय सामूहिक समावेश पर काम करना चाहिए.
बता दें कि 24 जून, 2025 के एक आदेश के तहत, भारत के निर्वाचन आयोग ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए बिहार में मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) शुरू किया था. निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाएँ 10 जुलाई को जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की एक आंशिक कार्यदिवस पीठ के समक्ष तत्काल उल्लेख के बाद सूचीबद्ध की गईं. उक्त तिथि पर, कोर्ट ने पाया कि याचिकाओं में एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया गया है जो मतदान के अधिकार से जुड़ा है.

इसके बाद, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा दायर किया. जिसमें कहा गया कि बिहार में चल रही SIR के दौरान मतदाता सूची में शामिल होने के लिए आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड विश्वसनीय दस्तावेज नहीं हैं, क्योंकि यह प्रक्रिया मतदाता सूची का एक नया संशोधन है. चुनाव आयोग ने नागरिकता का प्रमाण मांगने के अपने अधिकार का भी बचाव करते हुए कहा कि यह वैधानिक रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि केवल भारत के नागरिक ही मतदाता के रूप में पंजीकृत हों.
निर्वाचन आयोग के हलफनामे के जवाब में, एडीआर ने एक प्रतिवाद दायर किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले मतदाता गणना प्रपत्र, चुनाव पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) द्वारा मतदाताओं की सहमति के बिना, चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित अवास्तविक समय-सीमा को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर अपलोड किए जा रहे हैं.
कुछ याचिकाओं में कहा गया है कि SIR जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 22 और निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 21-ए का उल्लंघन करता है, दोनों में पर्याप्त प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होती है. प्रेयर में अंतरिम उपाय के रूप में, याचिकाकर्ताओं ने SIR अभ्यास पर तत्काल रोक लगाने की मांग की थी.