प्राइवेट हॉस्पिटल Patient को ATM की तरह ट्रीट करते हैं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने की निजी अस्पतालों पर गंभीर टिप्पणी

प्राइवेट हॉस्पिटल भर्ती होने वाले मरीज (Patient) को एटीएम मशीन की तरह देखते और ट्रीट करते हैं. अस्पतालों के लिए मरीजों (Patient) को लुभाना और बाद में संबंधित डॉक्टर को बुलाना आम बात हो गई है, जिससे इलाज में देरी होती है और अस्पताल मरीजों (Patient) से एटीएम की तरह बिल बनाते हुए वसूली करते रहे हैं. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार को डॉ. अशोक कुमार राय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य प्रकरण में सुनवाई के दौरान यह गंभीर टिप्पणी की. तथ्यों को परखने के बाद जस्टिस प्रशांत कुमार ने डॉ अशोक कुमार राय के खिलाफ चिकित्सा लापरवाही के मामले में आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि कोई राहत नहीं दी जा सकती है.
इस प्रकरण में डॉक्टर की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता आईके चतुर्वेदी और शैलेन्द्र कुमार राय ने, स्टेट की तरफ से अधिवक्ता एसपी पांडेय और शिकायतकर्ता की तरफ से अधिवक्ता एसके मिश्रा ने कोर्ट में पक्ष रखा. पूरा प्रकरण उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले से जुड़ा हुआ है. इस प्रकरण में एफआईआर 29.07.2007 को दर्ज करायी गयी थी. मृतका के जेठ ने आरोप लगाया था कि उसके छोटे भाई की पत्नी (Patient) को सावित्री नर्सिंग होम, देवरिया में भर्ती कराया गया था. जिसका संचालन डॉ अशोक कुमार राय द्वारा किया जाता है.
आरोप लगाया गया है कि मरीज (Patient) को प्रसव के लिए 28.07.2007 को सुबह 10.30 बजे अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 29.07.2007 को लगभग 11 बजे डॉक्टर ने उसके रिश्तेदारों से कहा कि मरीज (Patient) के लिए सर्जरी आवश्यक है और उनकी सहमति मांगी. इसे तुरंत दे दिया गया इस बीच, मरीज (Patient) की हालत लगातार बिगड़ती गई और शाम करीब साढ़े पांच बजे मरीज (Patient) को ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया.

ऑपरेशन के बाद बताया गया कि भ्रूण की मृत्यु हो गई है. जब मरीज (Patient) के परिवार वालों ने इस पर आपत्ति जताई तो डॉक्टर के कर्मचारियों और उनके (Patient) सहयोगियों ने उनके साथ मारपीट की. डॉक्टर ने सर्जरी के लिए निर्धारित ₹8700/- के बदले सूचना देने वाले से ₹8700/- भी ले लिए और 10,000 और जमा करने को कहा.
एफआईआर दर्ज होने के बाद, पुलिस ने संबंधित मुख्य चिकित्सा अधिकारी को पत्र लिखकर मामले में उनकी राय मांगी. मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर, जांच अधिकारी द्वारा 30.11.2007 को अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई. इस अंतिम रिपोर्ट से व्यथित होकर, शिकायतकर्ता ने 15.03.2008 को विरोध याचिका दायर की, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सर्जरी के लिए सहमति 29.07.2007 को सुबह 11 बजे दी गई थी. शाम 5.30 बजे ही मरीज (Patient) को ऑपरेशन रूम ले जाया गया. इसके बाद, मरीज (Patient) के पति से कुछ कागजों पर हस्ताक्षर करवाए गए और इसके तुरंत बाद, आवेदक के कर्मचारियों ने भ्रूण को मृत घोषित कर दिया.
इसे चुनौती दी गई, तो आवेदक के कर्मचारियों ने सूचनादाता और उसके परिवार के सदस्यों की पिटाई कर दी. उसी दिन यानी 29.07.2007 को दोपहर 22.45 बजे एक प्राथमिकी दर्ज की गई, हालाँकि, मरीज को छुट्टी नहीं दी गई. जब सूचक ने बार एसोसिएशन, देवरिया के संज्ञान में यह बात लाई और जब वे पुलिस अधीक्षक से मिले, तब मरीज (Patient) को छुट्टी दी गई. सूचक को डिस्चार्ज सारांश नहीं दिया गया और केवल दबाव डालने पर, पुलिस अधिकारियों के सामने, कुछ मनगढ़ंत दस्तावेज दिए गए और कोई विस्तृत केस सारांश नहीं दिया गया क्योंकि उसे कंप्यूटर से हटा दिया गया था.
विरोध याचिका में के बाद केस डायरी और रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद, संबंधित मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि प्रथम दृष्टया आवेदक के खिलाफ मामला बनता है क्योंकि प्रथम दृष्टया यह चिकित्सीय लापरवाही का मामला प्रतीत होता है जिसके कारण भ्रूण की मृत्यु हुई. मजिस्ट्रेट ने अंतिम रिपोर्ट को खारिज कर दिया और विरोध याचिका को स्वीकार करते हुए, आवेदक के खिलाफ समन जारी किया गया. समन आदेश के साथ-साथ उपरोक्त मामले की पूरी कार्यवाही को आवेदक डॉक्टर ने कोर्ट में चुनौती दी है.
“आजकल यह आम बात हो गई है कि निजी नर्सिंग होम/अस्पताल, डॉक्टर या बुनियादी ढाँचा न होने के बावजूद, मरीज (Patient) को इलाज के लिए लुभाते हैं. जब मरीज (Patient) किसी निजी अस्पताल में भर्ती होता है, तो वे मरीज (Patient) का इलाज करने के लिए डॉक्टर को बुलाने लगते हैं. यह सर्वविदित है कि निजी अस्पताल/नर्सिंग होम मरीज़ों को गिनीपिग/एटीएम मशीन की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं, ताकि उनसे पैसे ऐंठ सकें.”
अदालत ने कहा
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान आगे कहा कि किसी भी चिकित्सा पेशेवर, जो पूरी लगन और सावधानी के साथ अपना काम करता है, की रक्षा की जानी चाहिए, लेकिन उन लोगों की बिल्कुल भी रक्षा नहीं की जानी चाहिए जिन्होंने बिना उचित सुविधाओं, डॉक्टरों और बुनियादी ढाँचे के नर्सिंग होम खोल रखे हैं और सिर्फ पैसे ऐंठने के लिए मरीजों (Patient) को लुभाते हैं.

कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया कि परिवार के सदस्यों ने सही समय पर सर्जरी के लिए सहमति नहीं दी थी. कोर्ट ने कहा कि यह पूरी तरह से एक दुर्घटना का मामला है जहाँ डॉक्टर ने मरीज (Patient) को भर्ती किया और मरीज (Patient) के परिवार के सदस्यों से ऑपरेशन की अनुमति लेने के बाद, समय पर ऑपरेशन नहीं किया क्योंकि उसके पास सर्जरी करने के लिए आवश्यक डॉक्टर नहीं था.
कोर्ट ने इस मामले में मेडिकल बोर्ड की राय पर भरोसा करने से इनकार कर दिया और कहा कि उसके समक्ष सभी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए गए. बोर्ड ने इस मामले में डॉक्टर का पक्ष लिया था. कार्यवाही को रद्द करने से इनकार करते हुए न्यायालय ने कहा, यह ऐसा मामला है जिसमें आवेदक के खिलाफ प्रथम दृष्टया अपराध बनता है और आरोपित कार्यवाही में किसी भी हस्तक्षेप के लिए अंतर्निहित शक्तियों का उपयोग करने का कोई औचित्य नहीं है. कोर्ट ने इस मामले में लंबित उपभोक्ता मामले के निपटारे में देरी पर सवाल उठाया.
“आश्चर्यजनक रूप से, पीड़ित परिवार द्वारा दर्ज कराई गई उपभोक्ता शिकायत पर अभी तक विचार-विमर्श नहीं किया गया है और यह पिछले 16 वर्षों से उपभोक्ता न्यायालय में पड़ी हुई है. चूँकि उक्त कार्यवाही को इस आवेदन में चुनौती नहीं दी गई है, इसलिए मैं इस पर कोई टिप्पणी करने से बचता हूँ.”