Plot का पता नहीं आवंटित कर लाखों जमा कराये, 23 साल बाद कहा 6 फीसदी ब्याज सहित वापस ले जमा राशि
HC ने 15 फीसदी ब्याज सहित राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण को चार हफ्ते में पूरी जमा राशि वापस करने का दिया निर्देश

उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण द्वारा उद्योग लगाने के लिए Plot आवंटित किया गया. Plot बुकिंग एमाउंट के रूप में लाखों रुपये जमा करा लिये गये. जबकि मौके पर Plot का अस्तित्व ही नहीं था. इसके बाद भी Plot किराया, विकास शुल्क आदि के नाम पर लाखों रूपए जमा करा लिए. बाद में पता चला कि कथित Plot खेती की जमीन है. यह अजीबो गरीब मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गया है.
कोर्ट में दाखिल की गयी याचिका के अनुसार Plot के आसपास कोई सड़क व विकास कार्य नहीं किया गया जिससे उद्योग लग सकता. आवंटन प्राप्त करने वाले जमीन के लिए भटकते और राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण के समक्ष गुहार लगाते रहे. राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने 23 साल बाद पैसा वापस लेने या दो साल में अन्य Plot लेने का विकल्प दिया किन्तु कोई कार्रवाई नहीं की. इसके बाद औद्योगिक इकाई की स्थापन के लिए Plot का आवंटन प्राप्त करने वाली फर्म ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
हाईकोर्ट ने कहा अधिकारियों की लापरवाही, मनमानी व धोखाधड़ी का इससे बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता. कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण को 15 फीसदी ब्याज सहित याची से जमा कराई गई पूरी राशि का 4 हफ्ते में वापस करने का निर्देश दिया है और गैर-जिम्मेदाराना हरकत से याची को परेशान करने के लिए दो हफ्ते में दस लाख रुपए बतौर मुआवजा देने का आदेश दिया है.
यह आदेश जस्टिस एमके गुप्ता और जस्टिस अनीस कुमार गुप्ता की बेंच ने मेसर्स शांति लाल अरूण कुमार साझीदार फर्म की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है. याचिका पर अधिवक्ता आशीष कुमार सिंह ने बहस की.

बता दें कि प्राधिकरण ने 16 जनवरी 2001 को मोहम्मद शकीबुद्दीन को 742.5 वर्गमीटर का Plot आवंटित किया. जिसे याची फर्म ने प्राधिकरण की अनुमति से 250 रूपये लेबी शुल्क जमाकर 7 जनवरी 2009 को खरीदा. शर्त के अनुसार 60 दिन में कब्जा लेना था. 50 महीने तक कब्जा नहीं लेने पर प्राधिकरण के रिजनल प्रबंधक ने फर्म को नोटिस दी कि 13034 रूपये जमा करें अन्यथा Plot निरस्त कर दिया जाएगा.
याची ने जवाब में नोटिस दी कि अप्रोच रोड नहीं बनी है इसलिए Plot तक पहुंच पाना कठिन, उद्योग नहीं लग पा रहा. पहले सड़क का निर्माण करावें ताकि वहां तक पहुंचने का रास्ता बने. फर्म की तरफ से जवाब दिये जाने के बाद जूनियर इंजीनियर को सड़क बनाने को कहा गया. जूनियर इंजीनियर ने कागजात चेक किये तो पता चला मौके पर कोई Plot ही नहीं है. सड़क बनाने के लिए कोई जमीन उपलब्ध नहीं है.
प्राधिकरण ने राजमार्ग 27 पर Plot का जिक्र किया था. यह पता चलने के बाद फर्म की तरफ से राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण से सम्पर्क करके स्थिति बतायी गयी और जूनियर इंजीनियर की तरफ से पेश की गयी रिपोर्ट के बारे में बताया गया. यह तथ्य संज्ञान में आने के बाद राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने याची को दूसरा प्लाट लेने अथवा जमा की गयी राशि 6 फीसदी ब्याज के साथ वापस लेने का विकल्प दिया. सुनवाई के दौरान पूरे तथ्य सामने आने पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वह याची के जमा पैसे पर 15 फीसदी की दर से ब्याज प्रदान करे.
कोर्ट ने पूछा अतिक्रमण है तो हटाने के क्या कदम उठाए

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फिरोजपुर गांव की खलिहान के नाम दर्ज जमीन के अतिक्रमण मामले में जिलाधिकारी मऊ व तहसीलदार सदर मऊनाथभंजन से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है और पूछा है कि क्या प्लाट संख्या 193 रकबा 0.0520 हेक्टेयर खलिहान के नाम से राजस्व अभिलेखों में दर्ज जमीन गांव सभा की है और किसी ने अतिक्रमण किया है. यदि हां तो हटाने के क्या कदम उठाए गए हैं. कोर्ट ने विपक्षी संख्या छः को नोटिस जारी की है और डी एम व तहसीलदार से दो हफ्ते में जवाब मांगा है.याचिका की अगली सुनवाई 11अगस्त को होगी.
यह आदेश जस्टिस जेजे मुनीर ने अंजनी कुमार सिंह की जनहित याचिका पर दिया है. याचिका पर अधिवक्ता चंद्र कांत त्रिपाठी ने बहस की. इनका कहना है कि गांव सभा की खलिहान की जमीन पर विपक्षी संख्या छः ने अतिक्रमण कर लिया है. शिकायत के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. कोर्ट ने आदेश की प्रति जिलाधिकारी मऊ व तहसीलदार सदर मऊनाथभंजन को सी जे एम के मार्फत भेजने का निर्देश दिया है.