Appeal या प्रत्यावेदन बेसिक शिक्षा नियमावली में दंड की प्रकृति पर निर्भर, 1 माह में निर्णय लें
शिक्षिका के अभ्यावेदन पर एक महीने में निर्णय लेने का आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी आदेश के खिलाफ Appeal होगी या प्रत्यावेदन यह दंड की प्रकृति के आधार पर तय किया जायेगा. कहा कि उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा कर्मचारी नियमावली में अधिरोपित दंड की प्रकृति के अनुसार Appeal या शिकायत किस प्राधिकारी को संबोधित की जाए स्पष्ट है.
जस्टिस डा. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की एकलपीठ ने भदोही की शिक्षिका अर्चना साहू की याचिका की सुनवाई करते हुए जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) के आदेश को रद कर दिया है और निर्देश दिया है कि याची शिक्षिका के अभ्यावेदन (Appeal) पर एक महीने में नए सिरे से निर्णय लिया जाए. बीएसए भदोही ने नौ अप्रैल 2025 के आदेश से याची की एक वेतन वृद्धि संचयी प्रभाव से रोक दी है साथ ही प्राथमिक विद्यालय, भावपुर, ब्लॉक डीघ से भी स्थानांतरित कर दिया है,जहां उसकी नियुक्ति हुई थी.
याची ने उपरोक्त आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन (Appeal) प्रस्तुत किया था, लेकिन कोई सकारात्मक निर्णय नहीं होने की दशा में हाई कोर्ट की शरण ली. आग्रह किया कि प्रतिवादी को उसके अभ्यावेदन (Appeal) पर निर्णय लेने का निर्देश दिया जाए. कोर्ट ने पाया कि याची की सेवाएं उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा कर्मचारी नियमावली, 1973 से शासित हैं. इसमें कहा गया है कि नियुक्ति प्राधिकारी उचित और पर्याप्त कारणों से कर्मी की निंदा करने के साथ ही वेतन वृद्धि रोक सकता है.
पदावनति, लापरवाही या अन्य आदेशों के उल्लंघन के कारण बोर्ड को हुई किसी भी आर्थिक हानि की पूरी या आंशिक राशि वेतन से वसूल करना; सेवा से हटाना जो उसे भविष्य में रोजगार के लिए अयोग्य नहीं ठहराता अथवा

सेवा से बर्खास्तगी जो उसे सामान्यतः भविष्य में रोजगार के लिए अयोग्य ठहराती है. कोर्ट ने नियमों से संलग्न अनुसूची के स्तंभ एक में उल्लिखित पदों के संबंध में नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध अपील (Appeal) के लिए तय व्यवस्था पर विचार किया.
कोर्ट ने कहा कि नियम पांच के उप-नियम एक के अंतर्गत उक्त दंड के अधिरोपण के विरुद्ध कोई अपील (Appeal) नहीं की जा सकेगी, लेकिन उप-नियम (2) के अनुसार, उपरोक्त दंड आदेश के विरुद्ध, याची को सक्षम अधिकारी के समक्ष अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का अधिकार है. इसलिए यदि अभ्यावेदन (Appeal) प्रस्तुत किया जाता है तो निर्दिष्ट प्राधिकारी उस पर विचार चार सप्ताह की अवधि के भीतर तर्कसंगत आदेश पारित करे. इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया है.
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