आजम खान के खिलाफ केस में final order पर 28 तक रोक
राज्य सरकार ने निर्देश प्राप्त करने के लिए मांगा था समय

उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और सांसद मोहम्मद आजम खान और अन्य से जुड़े 2016 के जबरन बेदखली मामले की समेकित सुनवाई में final order पारित करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 28 जुलाई रोक बढ़ा दी है. जस्टिस समीर जैन की बेंच ने यह रोक इसलिए बढ़ाई क्योंकि राज्य सरकार ने निर्देश प्राप्त करने और संबंधित संकलन प्रस्तुत करने के लिए अतिरिक्त समय मांगा था. कोर्ट ने अतिरिक्त समय दिये जाने की मांग को स्वीकार करते हुए final order पर रोक की अवधि बढ़ा देने का फैसला सुनाया.
बेंच ने आवेदकों को अपनी याचिकाओं में ‘पूरी कार्यवाही’ (final order) को रद्द करने के अनुरोध को हटाने के लिए एक संशोधन आवेदन (final order) दायर करने का भी निर्देश दिया. कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि आजम खान और अन्य की शिकायतें निचली अदालत द्वारा उनके रिकॉल आवेदनों को खारिज करने के इर्द-गिर्द केंद्रित हैं, जिसमें प्रमुख गवाहों, विशेष रूप से सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ज़फर अहमद फारूकी, से दोबारा पूछताछ और महत्वपूर्ण वीडियो फुटेज में final order शामिल करने की मांग की गई थी जो घटनास्थल से उनकी अनुपस्थिति को साबित कर सके.
बेंच ने कहा कि इन आवेदनों को खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश की योग्यता पर प्रभावी सुनवाई को सक्षम करने के लिए ‘पूरी कार्यवाही’ को रद्द करने की प्रार्थना को हटा दिया जाना चाहिए. इससे पहले, मामले में खान के सह-अभियुक्तों द्वारा दायर याचिका पर final order पारित करने पर 15 जुलाई तक रोक लगा दी गई थी, जिन्होंने दावा किया था कि ट्रायल कोर्ट जून में ही मुकदमे को समाप्त करने के लिए ‘अडिग’ है. वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी, अधिवक्ता सैयद अहमद फैजान के साथ, मोहम्मद इस्लाम और अन्य (सह-अभियुक्त व्यक्ति) के लिए पेश हुए.

वरिष्ठ अधिवक्ता एनआई जाफरी, अधिवक्ता शाश्वत आनंद और शशांक तिवारी के साथ, पूर्व सांसद आजम खान और उनके सहयोगी वीरेंद्र गोयल के लिए पेश हुए. वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष गोयल, अधिवक्ता जेके उपाध्याय के साथ राज्य सरकार की ओर से पेश हुए. यह मामला 15 अक्टूबर, 2016 की एक कथित घटना से संबंधित है, जिसमें रामपुर स्थित यतीम खाना, वक्फ संख्या 157 नामक वक्फ संपत्ति पर अनधिकृत संरचनाओं को गिराने का मामला शामिल है.
2019 और 2020 के बीच दर्ज कुल 12 एफआईआर को पिछले साल अगस्त में रामपुर के विशेष न्यायाधीश (एमपी/एमएलए) ने एक ही मुकदमे में शामिल कर दिया था. आरोपों में आईपीसी के तहत डकैती, घर में जबरन प्रवेश और आपराधिक साजिश शामिल है. 25 जून को एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, जस्टिस समित गोपाल की सिंगल बेंच ने निर्देश दिया था कि खान और उनके सहयोगी वीरेंद्र गोयल द्वारा इसी मामले से संबंधित एक नई याचिका को सह-अभियुक्तों द्वारा दायर की गई पिछली याचिका (जिसमें final order पर रोक पहले ही दी जा चुकी थी) के साथ संलग्न किया जाए.

याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि फारूकी द्वारा स्वीकार किया गया यह फुटेज, घटनास्थल से उनकी अनुपस्थिति को साबित कर सकता है, जिससे समेकित मुकदमे (विशेष मामला संख्या 45, 2020) में अभियोजन पक्ष के दावे ध्वस्त हो जाते हैं. उनकी याचिका में पूरे मुकदमे को रद्द करने की भी मांग की गई है, जिसमें दावा किया गया है कि यह अनुच्छेद 14, 19, 20 और 21 के तहत उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, और कार्यवाही को दुर्भावनापूर्ण बताया गया है.
आजम खान और मोहम्मद इस्लाम उर्फ इस्लाम ठेकेदार की याचिकाओं में मांग की गई है कि मुख्य गवाहों, विशेष रूप से सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन जफर अहमद फारूकी की दोबारा गवाही कराई जाए और महत्वपूर्ण वीडियो फुटेज को रिकॉर्ड में लाया जाए, जो उनकी घटनास्थल पर अनुपस्थिति साबित कर सकती है.
यतीमखाना प्रकरण को लेकर आजम खान व अन्य के खिलाफ रामपुर कोतवाली 12 एफआईआर दर्ज हुई थीं. इनमें आजम खान और अन्य पर डकैती, गृह में अनधिकृत प्रवेश और आपराधिक षड्यंत्र जैसे गंभीर आरोप हैं. याचिकाओं में कहा गया है कि मुकदमा राजनीतिक द्वेष से प्रेरित है और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
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