राष्ट्रपति और राज्यपाल के विधायी अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उप राष्ट्रपति के बयान से टकराव देगा दूरगामी परिणाम
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना होना ठीक, बयानबाजी करना उचित नहीं

प्रयागराज: सेंटर फार कांस्टीट्यूशनल एण्ड सोसल रिफार्म के राष्ट्रीय अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता अमरनाथ त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट के राष्ट्रपति व राज्यपाल के विधायी अधिकारों पर दिये फैसले और उस पर उप राष्ट्रपति के बयान को लेकर उत्पन्न टकराव को दूरगामी परिणाम वाला करार दिया और संवैधानिक पीठ के हवाले से कहा कि संविधान सर्वोपरि है न कि संवैधानिक संस्थाएं. संविधान ने चेक एण्ड बैलेंस बनाये रखने के लिए शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत को अपनाया है.सबकी लक्ष्मण रेखा तय की है. जिसका अनुसरण करना सभी संस्थाओं के लिए बाध्यकारी है.
सुप्रीम कोर्ट का आदेश अभूतपूर्व
त्रिपाठी ने कहा कि तमिलनाडु राज्यपाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश अभूतपूर्व है. विधायी अधिकारों की मतभिन्नता के कारण आलोचना की जा सकती है किंतु इसपर बयानबाजी नहीं होनी चाहिए. संविधान स्वयं ही अनुच्छेद 137 में सुप्रीम कोर्ट को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अधिकार देता है. अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को किसी कानूनी मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट को रिफरेंस भेजकर राय लेने का अधिकार देता है.
अनुच्छेद 136 व 142 बैलेंस कायम रखने का टूल
त्रिपाठी ने कहा अनुच्छेद 111में पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है. राष्ट्रपति पर है कि वह स्वीकृति दे या वापस कर दें. किंतु दुबारा आने पर उसे स्वीकृति देना बाध्यकारी बनाया गया है. त्रिपाठी ने कहा राज्यपाल या राष्ट्रपति द्वारा किसी पारित विधेयक को स्वीकृति देने की समय सीमा तय नहीं है. यह उसके विवेक पर है. इसी तरह न्यायपालिका की भी कोई समय सीमा तय नहीं है. अनुच्छेद 136 व 142 विधायी अधिकारों को बैलेंस कायम रखने का टूल है.
अनुच्छेद 142 का अपवाद स्वरूप ही इस्तेमाल
किसी केस के लंबित होने पर सुप्रीम कोर्ट को न्याय हित में अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करने का अधिकार है किन्तु इसके बारे में सुप्रीम कोर्ट ने ही कहा है कि यह अपवाद स्वरूप ही इस्तेमाल किया जाय. संविधान सभा अध्यक्ष व प्रथम राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था कि संविधान अच्छा या बुरा नहीं होता, इसे लागू करने वाले पर निर्भर करता है कि वह किस रूप में लागू करता है. पूर्व शासकीय अधिवक्ता अरूण कुमार मिश्र ने कहा कि विधायी अधिकारों के मुद्दों पर बयानबाजी के बजाय कानूनी समाधान निकालना चाहिए. हाईकोर्ट परिसर में हुई रिफार्म की बैठक में अरविंद कुमार मिश्र, ओपी शर्मा, बीरेंद्र प्रताप यादव, संतोष कुमार मिश्र, योगेन्द्र पांडेय आदि प्रमुख थे.