+91-9839333301

legalbulletin@legalbulletin.in

| Register

अब्बास अंसारी की याचिका मंजूर, 2 साल की sentence पर रोक

MP-MLA कोर्ट ने सुनायी थी सजा, चली गयी थी अब्बास की विधायकी

अब्बास अंसारी की याचिका मंजूर, 2 साल की sentence पर रोक

एमपी एमएलए कोर्ट द्वारा मऊ सदर के तत्कालीन विधायक अब्बास अंसारी को सुनायी गयी दो साल की सजा (sentence) पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है. जस्टिस समीर जैन की सिंगल बेंच ने उनकी पुनरीक्षण याचिका स्वीकार करते हुए बुधवार 20 अगस्त को यह फैसला सुनाया. बता दें कि इस फैसले (sentence) के चलते दिवंगत हो चुके माफिया मुख्तार अंसारी के पुत्र अब्बास अंसारी की विधायकी चली गयी थी. इस सीट को रिक्त घोषित कर दिया गया था और नया चुनाव कराने की कवायद शुरू हो गयी थी. हाई कोर्ट का फैसला आने के बाद उन्हें यहां भी राहत मिलने की संभावना बन गयी है उनकी विधायकी बहाल हो जाएगी.

अब्बास अंसारी को दो साल की सजा (sentence) 2022 विधानसभा चुनाव के दौरान भड़काऊ भाषण के मामले में एमपी एमएलए कोर्ट मऊ ने 31 मई 2025 को सुनायी थी. कोर्ट ने उन्हें दो साल की सजा (sentence) सुनायी थी और 3000 रुपये जुर्माना भी लगाया था. इस फैसले के आधार पर 1 जून 2025 को अब्बास अंसारी की विधायकी चली गई थी. इस सीट को रिक्त घोषित कर दिया गया था.

अब्बास अंसारी ने एमपीएमएलए कोर्ट के फैसले (sentence) को जिला जज मऊ की अदालत में चुनौती दी और फैसला (sentence) रद करने की मांग की. जिला जज की कोर्ट ने 5 जुलाई को अपील खारिज कर दी थी. इसके बाद अब्बास अंसारी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर जिला जज मऊ के आदेश (sentence) को चुनौती दी थी. अब्बास अंसारी की ओर से अधिवक्ता उपेंद्र उपाध्याय ने पक्ष रखा था. उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्रा और अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी ने पक्ष रखा.

अब्बास अंसारी की याचिका मंजूर, 2 साल की sentence पर रोक

उन्होंने एमपी एमएलए स्पेशल कोर्ट मऊ के फैसले पर रोक लगाने का विरोध किया. उन्होंने कोर्ट में तर्क दिया कि जनप्रतिनिधि के लिए आईपीसी की धारा 171एफ और 153ए के तहत अपराध करना एक गंभीर मामला है और इसलिए किसी सांसद/विधायक को अयोग्य ठहराने के लिए उसे दी गई सजा (sentence)  के बावजूद आईपीसी की धारा 171एफ और 153ए के तहत महज दोषसिद्धि ही पर्याप्त है और इसलिए, यदि किसी जनप्रतिनिधि को आईपीसी की धारा 171एफ और 153ए के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया है तो उसकी दोषसिद्धि के आदेश पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए.

ट्रायल कोर्ट ने आईपीसी की धारा 189 के तहत अपराध के लिए पुनरीक्षणकर्ता को अधिकतम दो साल की सजा (sentence) सुनाई है. ट्रायल कोर्ट के 31 मई के दोषसिद्धि आदेश के साथ दिये गये फैसले के पैरा-59 में ट्रायल कोर्ट ने विधिवत विचार किया कि पुनरीक्षणकर्ता को ऐसी सजा क्यों दी जा रही है.

उन्होंने दलील दी कि पुनरीक्षणकर्ता के वकील ने राहुल गांधी (सुप्रा) मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय और आदेश पर भरोसा किया, लेकिन वर्तमान मामले और राहुल गांधी (सुप्रा) मामले के तथ्य बिल्कुल अलग-अलग हैं. उन्होंने दलील दी कि राहुल गांधी को भारतीय दंड संहिता की धारा 171 एफ, 153 ए और 189 के तहत अपराधों के लिए दोषी नहीं ठहराया गया है और उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत, यानी ‘मानहानि के मामले’ में दोषी ठहराया गया था, इसलिए, उस मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी, वर्तमान मामले के तथ्यों और उनके लंबे आपराधिक इतिहास को देखते हुए, पुनरीक्षणकर्ता के लिए लाभदायक नहीं हो सकती.

अब्बास अंसारी की याचिका मंजूर, 2 साल की sentence पर रोक

उन्होंने कहा कि पुनरीक्षणकर्ता के पास भारतीय दंड संहिता की धारा 171 एफ, 171 एच, 188, 189 के तहत अपराधों के मामलों सहित 11 मामलों का आपराधिक इतिहास है और नौ मामलों की सुनवाई अभी भी लंबित है. उसके लंबे आपराधिक इतिहास को देखते हुए भी उसके दोषसिद्धि आदेश (sentence) पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए.

अब्बास अंसारी विधान सभा के वर्तमान सदस्य थे और निचली अदालत द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 171एफ, 153ए और 189 के तहत अपराधों के लिए उनकी दोषसिद्धि के आधार पर, उन्हें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 के तहत विधायक पद से अयोग्य घोषित किया गया है. दोषसिद्धि आदेश पर स्थगन देने की अपीलीय न्यायालय की शक्ति धारा 430 बीएनएसएस (धारा 389 सीआरपीसी) में निहित है और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की श्रृंखला से यह तय हो गया है कि इस शक्ति का प्रयोग नियमित रूप से नहीं किया जाना चाहिए. इसका प्रयोग असाधारण मामलों में किया जाना चाहिए, जहाँ उनकी दोषसिद्धि (sentence) के कारण अपीलकर्ता को अपरिवर्तनीय क्षति हुई हो.

सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने लोकप्रहरी के मामले में अपने महासचिव एसएन शुक्ला बनाम भारत निर्वाचन आयोग एवं अन्य 2018 (18) एससीसी 114 मामले में सर्वोच्च न्यायालय के कई पूर्व निर्णयों पर विचार करने के बाद, अनुच्छेद-16 में टिप्पणी की है कि:-

“रामा नारंग बनाम रमेश नारंग, (1995) 2 एससीसी 513 के निर्णय के बाद से, यह सर्वविदित है कि अपीलीय न्यायालय के पास, किसी उपयुक्त मामले में, धारा 389 के तहत सजा को निलंबित करने के अलावा, दोषसिद्धि पर रोक लगाने का भी अधिकार है. दोषसिद्धि पर रोक लगाने का अधिकार एक अपवाद के रूप में है. इसका प्रयोग करने से पहले, अपीलीय न्यायालय को उन परिणामों से अवगत कराया जाना चाहिए जो दोषसिद्धि पर रोक न लगाने पर होंगे.”

हमारी स्टोरी की वीडियो देखें….

मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार के बाद दिये गये फैसले में कोर्ट ने कहा कि अपीलीय न्यायालय द्वारा 5 जुलाई का आक्षेपित आदेश (sentence) अवैध है और उस सीमा तक रद्द किए जाने योग्य है, जहां तक पुनरीक्षणकर्ता द्वारा उसके विरुद्ध पारित दोषसिद्धि (sentence) आदेश को निलंबित/स्थगित करने की प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया गया है और उस सीमा तक, तदनुसार, रद्द किया जाता है. कोर्ट ने कहा कि पुनरीक्षणकर्ता के विरुद्ध निचली अदालत द्वारा पारित दोषसिद्धि आदेश अपीलीय न्यायालय में उसकी अपील के लंबित रहने तक निलंबित रहेगा. 

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उसके द्वारा तत्काल पुनरीक्षण में की गई टिप्पणी केवल इस उद्देश्य के लिए थी कि पुनरीक्षणकर्ता के विरुद्ध पारित दोषसिद्धि आदेश उसकी अपील के लंबित रहने के दौरान रोका जा सकता है या नहीं. अपीलीय न्यायालय इस आदेश में की गई किसी भी टिप्पणी से प्रभावित नहीं होगा और पुनरीक्षणकर्ता की अपील पर कानून के अनुसार स्वतंत्र रूप से निर्णय करेगा.

Case :- CRIMINAL REVISION No. – 3698 of 2025 (Abbas Ansari V/s State of U.P. and Another)

इसे भी पढ़ें….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *