गवाह पक्षद्रोही, साक्ष्य के अभाव में हादसे का आरोपित acquitted

मेजा ग्राम अदालत ने करीब 17 साल पुराने सड़क हादसे के मामले में अहम फैसला सुनाते हुए अभियुक्त अर्जुन प्रसाद शुक्ला को बरी (acquitted) कर दिया है. थाना मांडा के अपराध संख्या 126/2008 में अभियुक्त अर्जुन प्रसाद शुक्ला पर आरोप था कि दिनांक 24 जून 2008 की रात करीब 9 बजे उन्होंने जीरो रोड की बस संख्या UP 70 AT 0536 को तेज रफ्तार और लापरवाही से चलाते हुए ऊँटी गांव निवासी कृष्ण जी विश्वकर्मा को टक्कर मार दी. हादसे में कृष्ण जी गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उनकी साइकिल क्षतिग्रस्त हो गई थी.
घटना को लेकर कृष्ण जी की भाभी कलावती देवी ने थाने में प्रार्थना पत्र देकर मुकदमा दर्ज कराया था. पुलिस ने जांच के बाद धारा 279, 337, 338, 427 भारतीय दंड संहिता के तहत आरोप पत्र न्यायालय में दाखिल किया. मुकदमे की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से कुल दो गवाहों को परीक्षित किया गया.
कलावती देवी ने अदालत में अपने बयान में कहा कि उनके देवर पैदल जा रहे थे और किसी अज्ञात वाहन ने टक्कर मारी थी. उन्होंने साफ कहा कि वाहन का नंबर या चालक कौन था, इसकी उन्हें जानकारी नहीं है. कृष्ण जी ने भी अदालत के समक्ष यह स्वीकार किया कि उन्हें नहीं पता कि किस वाहन ने उन्हें टक्कर मारी और न ही ड्राइवर की पहचान मालूम है.
दोनों गवाहों ने पुलिस को दिए गए अपने पहले के बयानों का समर्थन करने से इनकार कर दिया. फलस्वरूप अभियोजन पक्ष उन्हें पक्षद्रोही घोषित करने पर मजबूर हुआ, लेकिन जिरह के बावजूद वे अपने बयानों पर कायम रहे.
अदालत ने कहा कि प्रस्तुत गवाहियों से यह प्रमाणित नहीं होता कि बस चालक अभियुक्त अर्जुन प्रसाद शुक्ला ही थे और उन्होंने लापरवाहीपूर्वक वाहन चलाकर घायल को क्षति पहुँचाई. चूँकि अभियोजन आरोपों को संदेह से परे साबित करने में असफल रहा, इसलिए अभियुक्त को लाभ (acquitted) देना न्यायोचित है.
मेजा ग्राम न्यायालय को न्यायिक मजिस्ट्रेट रूपांशु आर्य ने आदेश पारित करते हुए कहा “अभियुक्त अर्जुन प्रसाद शुक्ला को अपराध संख्या 126/2008 अंतर्गत धारा 279, 337, 338, 427 भादसं के आरोपों से दोषमुक्त (acquitted) किया जाता है. अभियुक्त जमानत पर हैं. अतः उनके निजी बंधपत्र व जमानतनामे निरस्त किए जाते हैं तथा प्रतिभूगण को उनके दायित्व से मुक्त (acquitted) किया जाता है.”
लगभग 17 वर्ष पुराने इस मामले में आखिरकार अदालत ने साक्ष्यों के अभाव में अभियुक्त को दोषमुक्त (acquitted) कर दिया. यह फैसला एक बार फिर इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि आपराधिक मामलों में अभियोजन की सफलता गवाहों के स्पष्ट और विश्वसनीय बयानों पर ही निर्भर करती है.