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बनी रहेगी विधायक प्रेम पाल सिंह धनगर की सदस्यता

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्वाचन याचिका खारिज की

बनी रहेगी विधायक प्रेम पाल सिंह धनगर की सदस्यता

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में टूंडला निर्वाचन क्षेत्र संख्या 95 (अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित) से विधायक प्रेम पाल सिंह धनगर के निर्वाचन को चुनौती देने वाली चुनाव याचिका को खारिज कर दिया. न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता प्रेम पाल सिंह द्वारा दायर संशोधन आवेदन को अस्वीकार करते हुए प्रतिवादी नंबर 1 (प्रेम पाल सिंह धनगर) द्वारा दायर आदेश VII नियम 11 सीपीसी के तहत चुनाव याचिका को खारिज करने के आवेदन को स्वीकार कर लिया.

याचिकाकर्ता प्रेम पाल सिंह ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 80/81 के तहत यह चुनाव याचिका दायर की थी, जिसमें प्रतिवादी नंबर 1 के निर्वाचन को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि वह अनुसूचित जाति समुदाय से नहीं हैं, बल्कि गड़ेरिया/पाल/बघेल समुदाय से हैं, जिसे उत्तर प्रदेश राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के रूप में मान्यता प्राप्त है.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजे 10 मार्च, 2022 को घोषित किए गए थे, जिसमें प्रेम पाल सिंह धनगर टूंडला निर्वाचन क्षेत्र संख्या 95 से 47631 मतों के अंतर से निर्वाचित हुए थे. याचिकाकर्ता ने दावा किया कि यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी, लेकिन प्रेम पाल सिंह धनगर ओबीसी वर्ग से संबंधित हैं, इसलिए उनका निर्वाचन अमान्य है.

न्यायालय ने “भौतिक तथ्यों” और “भौतिक विवरणों” के बीच महत्वपूर्ण अंतर पर जोर दिया. न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 83(1)(ए) के अनुसार, चुनाव याचिका में उन भौतिक तथ्यों का संक्षिप्त विवरण होना चाहिए जिन पर याचिकाकर्ता निर्भर करता है. यदि इन भौतिक तथ्यों का खुलासा नहीं किया जाता है, तो चुनाव याचिका को सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश VII नियम 11(ए) के तहत खारिज किया जा सकता है, क्योंकि यह “कार्यवाही के कारण का खुलासा नहीं करती”.

याचिकाकर्ता ने चुनाव याचिका के लंबित रहने के दौरान दो संशोधन आवेदन दायर किए थे. पहला संशोधन आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि इसमें याचिका में किए जाने वाले संशोधन का खुलासा नहीं किया गया था.

दूसरे संशोधन आवेदन में, याचिकाकर्ता ने दावा किया कि प्रतिवादी नंबर 1 ने स्वीकार किया है कि वह गड़ेरिया जाति से है, जो ओबीसी है, और विभिन्न सरकारी अधिसूचनाओं और आरटीआई जवाबों का हवाला दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया था कि ‘धनगर’ (धंगड़) और ‘धनगर’ (धनगर) के बीच अंतर है और प्रतिवादी की जाति ओबीसी श्रेणी में आती है.

न्यायालय ने यह माना कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत नवीनतम संशोधन आवेदन एक “पूरी तरह से नया मामला” पेश कर रहा था, जिसमें “महत्वपूर्ण तथ्यों” को शामिल करने का प्रयास किया गया था जो मूल याचिका में अनुपस्थित थे. न्यायालय ने स्पष्ट किया कि महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा न करना एक ऐसा दोष है जिसे ठीक नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह मामले की जड़ तक जाता है और चुनाव याचिका की स्थिरता को प्रभावित करता है.

इसके विपरीत, भौतिक विवरणों की कमी को बाद में सुधारा जा सकता है. जस्टिस अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला दिया, जिसमें उद्धव सिंह बनाम माधव राव सिंधिया, एलआर शिवरामगौड़ा बनाम टीएम चंद्रशेखर, एच.डी. रेवन्ना बनाम जी. पुट्टस्वामी गौड़ा, वीरेंद्र नाथ गौतम बनाम सतपाल सिंह, जीतू पटनायक बनाम सनातन मोहकुद, और कनिमोझी करुणानिधि बनाम ए संथाना कुमार जैसे मामले शामिल हैं.

इन सभी फैसलों ने “भौतिक तथ्यों” के महत्व और उनकी कमी के घातक परिणाम पर जोर दिया है. कोर्ट ने पाया कि चुनाव याचिका दाखिल करते समय 1951 के अधिनियम की धारा 83(1)(ए) के तहत आवश्यक भौतिक तथ्यों का खुलासा नहीं किया गया था. परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता द्वारा संशोधन आवेदन को खारिज कर दिया गया और प्रतिवादी नंबर 1 द्वारा दायर आदेश VII नियम 11(ए) सीपीसी के तहत चुनाव याचिका को खारिज करने का आवेदन स्वीकार कर लिया गया.

इस निर्णय के साथ, विधायक प्रेम पाल सिंह धनगर का निर्वाचन वैध बना रहेगा. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारत के चुनाव आयोग और उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष को इस निर्णय के सार और प्रमाणित प्रति को तत्काल सूचित करने का निर्देश दिया है.

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