Divorce proceeding पर रोक से पति का गुजारा भत्ता देने का दायित्व समाप्त नहीं होता
Family court के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज
Divorce की कार्यवाही पर रोक लगा दिये जाने का मतलब यह बिल्कुल नहीं होता है कि पति का पत्नी को गुजारा भत्ता देने का दायित्व समाप्त हो गया. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस मनीष कुमार निगम की बेंच ने यह महत्वपूर्ण फैसला देते हुए स्पष्ट किया है कि Divorce की प्रोसीडिंग रिजीवन या अपील स्तर पर पेंडिंग रहने के दौरान भी पति का भुगतान करने का दायित्व समाप्त नहीं होगा. सिंगल बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में जहाँ Divorce proceeding अभियोजन के अभाव में खारिज कर दी गई है और उसकी बहाली लंबित है वहां भी दायित्व बना रहता है.
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत Divorce की याचिका

सिंगल बेंच ने यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अंकित सुमन द्वारा दायर पारिवारिक न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए यह निर्णय सुनाया है. याचिकाकर्ता (पति) ने 2018 में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत Divorce की याचिका दायर की थी. मामले के लंबित रहने के दौरान पत्नी ने धारा 24 के तहत याचिका दायर कर मेंटेनेंस की मांग की. फैमिली कोर्ट ने 30 अक्टूबर, 2020 को याचिका को शुरू में खारिज कर दिया था.
पत्नी की अपील पर हाई कोर्ट ने नवंबर 2021 में आवेदन स्वीकार कर लिया और पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी और बेटी को दस-दस हजार रुपये प्रतिमाह मेंटेनेंस के रूप में भुगतान करे. कोर्ट ने पति को बकाया राशि और मुकदमेबाजी की लागत के लिए 30,000 रुपये का भी भुगतान करने का आदेश दिया था. पति ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया. सुप्रीम कोर्ट ने मेंटेनेंस की राशि में आंशिक संसोधन कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी को दस हजार और बेटी को पांच हजार रुपये प्रतिमाह भुगतान करने का आदेश दिया.
आदेश के बाद भी पति ने भुगतान नहीं किया. इस पर पत्नी ने निष्पादन मामला दायर किया. इसके बाद सितंबर 2024 में पति के खिलाफ वसूली वारंट जारी किया गया. बाद में, एडीशनल फैमिली कोर्ट पीलीभीत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ वसूली जारी कर दिया. इस आदेश को चुनौती देते हुए पति ने हाई कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि 1955 के अधिनियम की धारा 24 के अनुसार, गुजारा भत्ता केवल Divorce proceeding के लंबित रहने के दौरान ही दिया जा सकता है. पत्नी द्वारा दायर एक स्थानांतरण याचिका पर हाई कोर्ट ने सितंबर 2023 में Divorce याचिका की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी.

तर्क दिया गया कि जिस समय हाई कोर्ट ने Divorce के मामले की कार्यवाही पर रोक लगाई, पत्नी उस अवधि के लिए भरण-पोषण पाने की हकदार नहीं थी. तर्क दिया गया कि चूंकि Divorce की कार्यवाही रुकी हुई थी, इसलिए Divorce की कार्यवाही को लंबित नहीं माना जा सकता. इसलिए पत्नी वैवाहिक मामले की कार्यवाही रुकने की अवधि के दौरान भरण-पोषण राशि की हकदार नहीं है.
सिंगल बेंच ने अपने फैसले में अमृत लाल नेहरू बनाम उषा नेहरू (1982) में जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ का फैसला, विनोद कुमार केजरीवाल बनाम उषा कुमार केजरीवाल (1992) में बॉम्बे उच्च न्यायालय का आदेश और सुरेंद्र कुमार अस्थाना बनाम कमलेश अस्थाना (1974) मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले का हवाला दिया.
बेंच ने कहा कि धारा 24 के तहत दी गई दलील वैवाहिक मुकदमेबाजी के हर चरण में विचारणीय है. बेंच ने योगेश्वर प्रसाद बनाम दिल्ली उच्च न्यायालय के 1981 के फैसले का भी हवाला दिया. ज्योति रानी प्रसाद, जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया था कि धारा 25 के तहत कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान, धारा 24 के तहत आवेदन दायर किया जा सकता है और उस पर विचार किया जा सकता है.
‘इस न्यायालय द्वारा वैवाहिक मामले की कार्यवाही पर रोक लगाने मात्र से यह नहीं माना जाएगा कि वैवाहिक कार्यवाही (Divorce) समाप्त हो गई है और याचिकाकर्ता कार्यवाही पर रोक की तिथि से भरण-पोषण राशि का भुगतान करने के अपने दायित्व से मुक्त हो गया है. स्थानांतरण कार्यवाही भी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत परिकल्पित कार्यवाही मानी जाएगी और यह पत्नी को भरण-पोषण प्राप्त करने में कोई बाधा नहीं होगी.’
Case :- MATTERS UNDER ARTICLE 227 No. – 8704 of 2025