जहां Complent का उपबंध वह Police दर्ज कर रही FIR, मजिस्ट्रेट mechanically दे रहे आदेश
HC ने कहा चिंताजनक स्थिति, मुख्य सचिव सहित अधिकारियों को विशेष कानूनों की सूची सहित दिशा-निर्देश जारी करने का निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि परक्राम्य विलेख अधिनियम की धारा 138 के तहत FIR नहीं दर्ज की जा सकती. सक्षम अधिकारी की शिकायत पर ही मजिस्ट्रेट कार्यवाही करेंगे. कहा कि इस मामले में पुलिस ने FIR दर्ज कर चार्जशीट दाखिल कर पुलिस आपराधिक न्याय शास्त्र के मूल सिद्धांतों का पालन करने में विफल रही है. कोर्ट ने कहा मजिस्ट्रेट का प्रथम कर्तव्य है कि पुलिस की रिपोर्ट (FIR) की अवैधता या अनियमितता पर ध्यान दें और विवेचना अधिकारी को तलब कर सूचित करें.
कोर्ट ने अनियमित पुलिस रिपोर्ट पर मजिस्ट्रेट द्वारा नियमित mechanically आदेश पारित करने को चिंताजनक माना और कहा क्षेत्राधिकार के लापरवाही से प्रयोग से न्यायिक जांच का मूल उद्देश्य विफल हो रहा है. मजिस्ट्रेट का कर्तव्य है कि अपराध की जांच कानून के मुताबिक हो.
कोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव गृह, अपर महानिदेशक अभियोजन सहित सभी आला अधिकारियों को दिशा निर्देश जारी करने का निर्देश दिया है और सभी जिला जजों को न्यायिक अधिकारियों को जागरूक करने का कार्यक्रम करने का आदेश दिया है ताकि गलत कार्यवाही से किसी को परेशानी न उठानी पड़े.
कोर्ट ने कहा विशेष कानून FIR निषेध करते हैं. इसके बावजूद FIR दर्ज करना न्याय शास्त्र पर गंभीर प्रतिघात है. पुलिस इससे बचे. कानून के अनुरूप कार्यवाही की जाय. कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के आदेश रद कर दिया और आरोप निर्मित करने पर सुनवाई कर कानून के तहत कार्यवाही करने का निर्देश दिया है.

यह आदेश जस्टिस विनोद दिवाकर ने बुलंदशहर के सुधीर कुमार गोयल की याचिका पर दिया है. जिसमें धारा 138 के चेक अनादर मामले में FIR दर्ज कर चार्जशीट दायर करने की वैधता को चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने कहा कि 38 ऐसे विशेष कानून है जिनमें पुलिस को FIR दर्ज करने का अधिकार नहीं है, केवल सक्षम अधिकारी ही कोर्ट में कंप्लेंट दाखिल कर सकता है. विशेष अधिनियमों में पुलिस की दर्ज एफआईआर अवैध है.
बुलंदशहर के कोतवाली देहात थाना क्षेत्र निवासी सुधीर कुमार गोयल के साथ शिकायतकर्ता ने दो भूखंड बुक किए और 30 लाख रुपये से अधिक का भुगतान किया. आरोप है कि आवेदक ने उन भूखंडों को तीसरे पक्ष को बेच दिया और शिकायतकर्ता को चार रिफंड चेक जारी किए जिनका अनादर हो गया. इसके बाद, पुलिस ने उसके खिलाफ एक FIR दर्ज की.
तर्क दिया गया कि चेक बाउंस मामले में FIR दर्ज करना और उसके बाद की कानूनी कार्यवाही अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है. कोर्ट ने कहा कि धारा 138 के तहत अपराध के लिए एक लिखित शिकायत अनिवार्य है और पुलिस रिपोर्ट पर्याप्त नहीं है.
अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस और अभियोजन निदेशालय के सहयोग से एक सूची तैयार करने का आदेश दिया है. इस सूची में ऐसे 38 विशेष अधिनियम शामिल किए गए हैं जिनमे पुलिस को FIR दर्ज करने का अधिकार नहीं. इनमें मुख्य हैं घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, खान और खनिज अधिनियम, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम और विभिन्न पर्यावरण और खाद्य सुरक्षा अधिनियम शामिल हैं.
वे अधिनियम जहां पुलिस FIR दर्ज कर सकती है
नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक एक्ट, शस्त्र अधिनियम, यौन अपराधोंग से बच्चों का संरक्षण अधिनियम और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार है.
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यंत्रवत आदेश पारित न करें मजिस्ट्रेट, जिला जजों को जारी किया निर्देश

हाईकोर्ट ने चिंता व्यक्त की कि अवैध तरीके से दर्ज मुकदमों पर मजिस्ट्रेट नियमित यंत्रवत बिना विचार किए आदेश पारित कर रहे हैं. इससे हाईकोर्ट पर अनावश्यक मुकदमों का बोझ बढ़ रहा है. कोर्ट ने जिला न्यायाधीशों को विशिष्ट निर्देश जारी किए हैं कि वे सभी न्यायिक अधिकारियों को संवेदनशील बनाएं और उन्हें विशेष अधिनियमों के उल्लंघन में दायर पुलिस रिपोर्ट का संज्ञान न लेने का निर्देश दें.
आदेश की एक प्रति उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव, अतिरिक्त महानिदेशक (अभियोजन) और डॉ. भीमराव अंबेडकर पुलिस अकादमी के अतिरिक्त महानिदेशक को भेजने का निर्देश दिया.
कोर्ट ने जिला जजो को आदेश दिया है कि जजों को संवेदनशील बनाये ताकि वे कानून के खिलाफ पुलिस रिपोर्ट (FIR) पर संज्ञान न ले और कानून के दायरे में ही शिकायत की सुनवाई करे. कोर्ट ने कहा FIR की सूचना मजिस्ट्रेट को 24 घंटे में देना अनिवार्य है ताकि वे झूठे आरोप की जांच कर सके.