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Marriage Certificate के अभाव में विवाह अवैध नहीं!

HC ने पारिवारिक न्यायालय आजमगढ़ के आदेश को रद किया

Marriage Certificate के अभाव में विवाह अवैध नहीं!

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानूनों और नियम, 1956 के नियम 3 के उप-नियम (क) के मद्देनजर पारिवारिक न्यायालय द्वारा विवाह (Marriage) प्रमाणपत्र दाखिल करने पर जोर देना पूरी तरह से अनुचित है. इसके साथ ही जस्टिस मनीष कुमार निगम की बेंच ने प्रधान न्यायाधीश पारिवारिक न्यायालय आजमगढ़ का आदेश रद कर दिया है. कोर्ट ने अपर प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय आजमगढ़ को निर्देश दिया है कि वे हिंदू विवाह (Marriage) अधिनियम की धारा 21-बी के वैधानिक अधिदेश को ध्यान में रखते हुए, संबंधित पक्षों को सुनवाई का अवसर देने के साथ-साथ उनके मामले के समर्थन में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर देने के बाद और दोनों पक्षों में से किसी को भी अनावश्यक स्थगन दिए बिना, कानून के अनुसार, लंबित कार्यवाही पर विचार करें और निर्णय लें.

यह याचिका सुनील दुबे की तरफ से वाद संख्या 1138/2024 (सुनील दुबे बनाम मीनाक्षी) में 31.07.2025 के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई है, जिसके तहत याचिकाकर्ता द्वारा न्यायालय के समक्ष विवाह (Marriage) पंजीकरण प्रमाणपत्र दाखिल करने से छूट के लिए दायर आवेदन पत्र संख्या 13-का को निचली अदालत ने खारिज कर दिया था.

मामले के संक्षिप्त तथ्य के अनुसार पति-याचिकाकर्ता और प्रतिवादी-पत्नी ने 23.10.2024 को आपसी सहमति से तलाक के लिए हिंदू विवाह (Marriage) अधिनियम, 1955 की धारा 13 (बी) के तहत एक आवेदन दायर किया. जिसे केस नंबर 1338/2024 के रूप में पंजीकृत किया गया. याचिका के लंबित रहने के दौरान पारिवारिक न्यायालय के न्यायाधीश ने 04.07.2025 के आदेश द्वारा विवाह (Marriage) प्रमाण पत्र दाखिल करने के लिए 29.07.2025 की तिथि तय की.

Marriage Certificate के अभाव में विवाह अवैध नहीं!

याचिकाकर्ता ने प्रार्थना के साथ आवेदन पत्र दायर किया कि पंजीकरण प्रमाण पत्र पक्षकारों के पास उपलब्ध नहीं है और हिंदू विवाह (Marriage) अधिनियम, 1955 (इसके बाद “अधिनियम, 1955” के रूप में संदर्भित) के तहत विवाह (Marriage) को पंजीकृत कराने की कोई अनिवार्य आवश्यकता नहीं है.

निचली अदालत ने अपने आदेश दिनांक 31.07.2025 द्वारा याचिकाकर्ता द्वारा दायर आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि हिंदू विवाह (Marriage) और तलाक नियम, 1956 के नियम 3(ए) दिनांक 18.09.1956 (जिसे आगे “नियम, 1956” कहा जाएगा) के अनुसार, हिंदू विवाह (Marriage) अधिनियम, 1955 के तहत प्रत्येक कार्यवाही में विवाह प्रमाणपत्र को कार्यवाही के साथ संलग्न करना अनिवार्य है.

इसलिए, भले ही दूसरे पक्ष द्वारा कोई आपत्ति न हो, क्योंकि नियम, 1956 के नियम 3(ए) के अनुसार विवाह (Marriage) प्रमाणपत्र दाखिल करना अनिवार्य है, इसलिए इससे छूट नहीं दी जा सकती और याचिकाकर्ता का आवेदन खारिज कर दिया गया. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि हिंदू विवाह (Marriage) अधिनियम, 1955 की धारा 8 में विवाह के पंजीकरण का प्रावधान है, लेकिन विवाह पंजीकरण के अभाव में विवाह अवैध नहीं है.

चूंकि याचिकाकर्ता का विवाह (Marriage) 27.06.2010 को संपन्न हुआ था, इसलिए उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियमावली, 2017 (जिसे आगे “नियमावली, 2017” कहा जाएगा) के प्रावधान नियमावली के प्रारंभ होने से पहले संपन्न विवाह पर लागू नहीं होंगे और अन्यथा भी, नियमावली, 2017 के नियम 6 के अनुसार, पंजीकरण के अभाव में विवाह अवैध नहीं होगा.

हाई कोर्ट  ने कहा कि दायर आवेदन पर दूसरे पक्ष द्वारा कोई आपत्ति दर्ज नहीं करायी गयी है और याचिका हिंदू विवाह (Marriage) अधिनियम, 1955 की धारा 13 (बी) के तहत कार्यवाही से उत्पन्न हुई है, इसलिए इस याचिका को विपक्षी को नोटिस जारी किए बिना प्रवेश स्तर पर ही निपटाया जा रहा है क्योंकि याचिका में कोई तथ्यात्मक विवाद नहीं है.

Marriage Certificate के अभाव में विवाह अवैध नहीं!

याचिका में यह तथ्य भी रखा गया कि हिंदू विवाह (Marriage) अधिनियम, 1955 के प्रारंभ होने से पहले हिंदू विवाह (Marriage)  के पंजीकरण की कोई आवश्यकता नहीं थी. आमतौर पर, हिंदू दत्तक ग्रहण, संपत्ति के हस्तांतरण और विभाजन के विपरीत अपने विवाह को पंजीकृत नहीं कराते हैं. हिंदू विवाह (Marriage) अधिनियम, 1955 में पंजीकरण के नियम नहीं हैं और राज्य सरकार को नियम बनाने के लिए अधिकृत किया गया है.

राज्य सरकार ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 162 के साथ पठित अनुच्छेद 154 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए उत्तर प्रदेश विवाह (Marriage) पंजीकरण नियम, 2017 प्रख्यापित किया है. नियमावली, 2017 के नियम 6(1) में प्रावधान है कि नियमावली के लागू होने के बाद, ऐसे विवाह (Marriage) का पंजीकरण अनिवार्य होगा जहाँ पक्षकारों में से एक उत्तर प्रदेश राज्य का स्थायी निवासी हो या जहाँ विवाह उत्तर प्रदेश राज्य की सीमा के भीतर संपन्न हुआ हो.

नियम 6 के उपनियम (2) में प्रावधान है कि जिन विवाहों (Marriage) का पंजीकरण नहीं हो रहा है, उन्हें नियमावली, 2017 के नियम 7 द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार इस नियमावली के लागू होने के बाद पंजीकृत किया जा सकता है. इसमें यह भी प्रावधान है कि इस नियमावली के लागू होने से पहले या इसके बाद संपन्न कोई भी विवाह पंजीकरण के अभाव में अवैध नहीं होगा.

हमारी स्टोरी की वीडियो देखें…

उत्तर प्रदेश विवाह (Marriage) पंजीकरण नियमावली, 2017 के नियम 6 की महत्वपूर्ण बातें

(1) इस नियमावली के प्रारम्भ होने के पश्चात, सम्पन्न प्रत्येक विवाह या पुनर्विवाह, जहाँ विवाह के पक्षकारों में से कोई एक उत्तर प्रदेश राज्य का स्थायी निवासी हो अथवा विवाह उत्तर प्रदेश राज्य की सीमा के अन्दर सम्पन्न हुआ हो का पंजीकरण कराया जाना अनिवार्य होगा.

परन्तु यह कि ऐसे विवाह जिनका पंजीकरण भारत के किसी राज्य में प्रवृत्त विवाह पंजीकरण अधिनियम /नियमावली के अधीन किया गया है इस नियमावली के लागू होने के पश्चात इस नियमावली के अन्तर्गत पंजीकृत माने जायेंगे.

(2) ऐसे विवाह जिनका पंजीकरण अभी तक नहीं कराया गया है, इस नियमावली के लागू होने के पश्चात नियम 7 में विहित रीति से कराया जा सकता है. इस नियमावली के लागू होने के पूर्व अथवा पश्चात सम्पन्न विवाह मात्र इस कारण से अविधिमान्य नहीं होगा कि ऐसा विवाह इस नियमावली के अन्तर्गत पंजीकृत नहीं कराया गया है.

Marriage Certificate के अभाव में विवाह अवैध नहीं!

तथ्यों के अनुसार जब हिंदू विवाह (Marriage) अधिनियम, 1955 के प्रावधानों के अनुसार हिंदू विवाह (Marriage) संपन्न होता है, तो अधिनियम, 1955 की धारा 8(1) द्वारा ऐसे विवाह के प्रमाण को सुगम बनाने के लिए, राज्य सरकारों को ऐसे विवाह के पंजीकरण के लिए नियम बनाने का अधिकार है.

ऐसे नियमों में हिंदू विवाह रजिस्टर रखने का प्रावधान हो सकता है, जिसमें पक्षकार अपने विवाह के विवरण ऐसी रीति से और ऐसी शर्तों के अधीन दर्ज कर सकते हैं, जो निर्धारित की जा सकती हैं. पंजीकरण का उद्देश्य केवल विवाह का सुविधाजनक साक्ष्य प्रस्तुत करना है.

अधिनियम, 1955 की धारा 8 की उप-धारा (4) में प्रावधान है कि हिंदू विवाह रजिस्टर को साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाएगा. अधिनियम, 1955 की धारा 8 की उप-धारा (2) में प्रावधान है कि यदि राज्य सरकार इसे उचित समझे, तो वह पंजीकरण को अनिवार्य बना सकती है.

हमारी स्टोरी की वीडियो देखें…

अधिनियम, 1955 की धारा 8 की उप-धारा (5) द्वारा यह प्रावधान किया गया है कि इस धारा के प्रावधानों के अनुसरण में प्रविष्टि करने में चूक, हालांकि, विवाह (Marriage) की वैधता को प्रभावित नहीं करती है.

कहा गया कि अधिनियम, 1955 की धारा 8 की उप-धारा (1) से (4) के प्रावधानों के अनुसरण में बनाए गए किसी भी नियम के बावजूद और रजिस्टर में विवाह (Marriage) की प्रविष्टि करने में विफलता के कारण, विवाह की वैधता प्रभावित नहीं होती है.

इस धारा के मद्देनजर, यहां तक कि जहां राज्य सरकार विवाह के अनिवार्य पंजीकरण के लिए नियम बनाती है, वहां पंजीकरण के अभाव में विवाह को अवैध घोषित करने वाला नियम नहीं हो सकता है. यहां तक कि नियम, 2017 के नियम 6 का उप-नियम (2) यह प्रावधान करता है कि विवाह का पंजीकरण न होने पर विवाह अवैध नहीं होगा.

डॉली रानी बनाम मनीष कुमार चंचल के मामले में, जिसकी रिपोर्ट 2024 के मुकदमा (SC) 387 में दी गई है, सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद संख्या 19 में निम्नलिखित निर्णय दिया है:-

“19. अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत, अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत विवाहित दो हिंदुओं के लिए अपने विवाह का पंजीकरण कराना स्वतंत्र है, बशर्ते वे अपेक्षित समारोहों के निष्पादन के संबंध में उसमें निर्धारित शर्तों को पूरा करते हों. केवल तभी जब विवाह धारा 7 के अनुसार संपन्न होता है, धारा 8 के अंतर्गत विवाह का पंजीकरण हो सकता है. राज्य सरकारों को अपेक्षित समारोहों के माध्यम से संपन्न दो हिंदुओं के बीच विवाह के पंजीकरण से संबंधित नियम बनाने का अधिकार है. पंजीकरण का लाभ यह है कि इससे विवादित मामले में विवाह के तथ्य को प्रमाणित करने में सुविधा होती है.”

कोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले के तथ्यों के अनुसार हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(बी) के तहत आपसी सहमति से तलाक की मांग करते हुए तलाक की याचिका दायर की गई है. विवाह के तथ्य के संबंध में पक्षों के बीच कोई विवाद नहीं है, बल्कि उसे स्वीकार किया जाता है. हिंदू विवाह विच्छेद नियम, 1956 के दिनांक 18.09.1956 के उप-नियम 3(ए) पर भरोसा करते हुए पंजीकरण प्रमाण पत्र दाखिल करने के लिए निचली अदालत का आग्रह अनुचित है.

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