‘Hindu Marriage Act के तहत अपील चरण में भी लंबित भरण-पोषण की कार्यवाही स्वीकार्य’

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि Hindu Marriage Act, 1955 की धारा 24 के तहत लंबित भरण-पोषण और व्यय की कार्यवाही स्वीकार्य है. भले ही Hindu Marriage Act के तहत मामला पुनर्विचार या अपील चरण में हो या यदि अधिनियम के तहत ऐसी किसी कार्यवाही में बहाली का आवेदन लंबित हो, जिसे डिफ़ॉल्ट रूप से खारिज कर दिया गया हो.
यह याचिका अपर प्रधान न्यायाधीश, परिवार न्यायालय, पीलीभीत द्वारा निष्पादित मामला संख्या 9/2022 (श्रीमती नीरज सैनी बनाम अंकित सुमन) में 06.05.2025 को पारित आदेश को रद्द करने की मांग में दाखिल की गयी थी. मामले के संक्षिप्त तथ्य के अनुसार याचिकाकर्ता पति ने 20.07.2018 को अपनी पत्नी से तलाक की मांग करते हुए एक याचिका हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act), 1955 की धारा 13 के तहत न्यायाधीश, परिवार न्यायालय के समक्ष दालिख की. मामले को 286/2018 के रूप में क्रमांकित किया गया था.
सुनवाई के दौरान प्रतिवादी पत्नी उपस्थित हुई और याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों का खंडन करते हुए एक लिखित बयान दायर किया. इस याचिका के लंबित रहने के दौरान पत्नी ने 26 मार्च 2019 को हिंदू विवाह अधिनियम(Hindu Marriage Act), 1955 की धारा 24 के तहत एक आवेदन दायर किया गया था, जिस पर याचिकाकर्ता ने 01 अक्टूबर 2019 को आपत्तियां दर्ज कीं.
हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) की धारा 24 के तहत उक्त आवेदन पर 30.10.2020 के आदेश द्वारा निर्णय लिया गया, जिसमें पत्नी द्वारा दायर आवेदन को खारिज कर दिया गया. 30 अक्टूबर 2020 के आदेश को पत्नी द्वारा इस न्यायालय के समक्ष प्रथम अपील संख्या 722/2021 दायर करके चुनौती दी गई थी.
“हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act), 1955 की धारा 24 के तहत कार्यवाही हिंदू विवाह अधिनियम(Hindu Marriage Act), 1955 के तहत विचाराधीन कार्यवाही के दौरान स्वीकार्य है और राशि का भुगतान करने का दायित्व केवल इसलिए समाप्त नहीं होगा क्योंकि कार्यवाही पुनर्विचार चरण, अपील चरण या यहां तक कि उन मामलों में भी लंबित है जहां कार्यवाही अभियोजन के अभाव में खारिज कर दी गई है और उसकी बहाली लंबित है.”
जस्टिस मनीष कुमार निगम

अपील में, उच्च न्यायालय ने आवेदन को स्वीकार कर लिया और पत्नी को प्रति माह 10,000 रुपये और नाबालिग बेटी को 10,000 रुपये की राशि देने का आदेश दिया, मुकदमे की लागत के रूप में पत्नी को 30,000 रुपये की एकमुश्त राशि देने का आदेश दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग बेटी को दी जाने वाली राशि को घटाकर 5000 रुपये कर दिया.
इसके बाद, पत्नी ने 2,50,000 रुपये की वसूली की मांग करते हुए एक निष्पादन मामला दायर किया, जो उसे पति-याचिकाकर्ता द्वारा भुगतान नहीं किया गया था. अतिरिक्त पारिवारिक न्यायालय, पीलीभीत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ वसूली जारी करने का आदेश पारित किया.
कोर्ट ने कहा कि अधिनियम (Hindu Marriage Act) की धारा 24 का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमज़ोर पक्ष को अपना पक्ष रखने का अवसर प्रदान करना है, न कि वित्तीय अभाव के कारण वंचित रहना. न्यायालय ने कहा कि इस प्रावधान का उद्देश्य उस पक्ष को तत्काल वित्तीय सहायता प्रदान करना है जिसके पास अधिनियम के तहत कार्यवाही जारी रखने के लिए आय का कोई/अपर्याप्त स्रोत नहीं है.
“कानून द्वारा किसी अमीर पक्ष को केवल अपनी जेब की ताकत के आधार पर बढ़त हासिल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. धन किसी मामले की योग्यता का निर्धारक नहीं हो सकता. न केवल वह पक्ष जिसके विरुद्ध अदालत में याचिका दायर की गई है, वह मुकदमे के दौरान भरण-पोषण और मुकदमे के खर्च का दावा कर सकता है, बल्कि वह पक्ष जिसने मुकदमा दायर किया है, वह भी मुकदमे के खर्च और भरण-पोषण का दावा कर सकता है, यदि उसके पास मुकदमे के दौरान अपने भरण-पोषण (भरण-पोषण) और कार्यवाही के खर्च के लिए पर्याप्त स्वतंत्र आय नहीं है.”

कोर्ट ने माना कि Hindu Marriage Act धारा 24 में प्रयुक्त शब्द “कार्यवाही के दौरान” अधिनियम के अंतर्गत कम से कम आवेदन की तिथि से लेकर किसी भी न्यायालय में कार्यवाही के अंत तक की सभी कार्यवाहियों पर लागू होते हैं. अन्य बातों के अलावा, कोर्ट ने सुरेंद्र कुमार अस्थाना बनाम कमलेश अस्थाना मामले पर भरोसा किया, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माना था कि हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) की धारा 24 में उल्लिखित “इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी कार्यवाही” में ऐसी कोई भी कार्यवाही शामिल करने के लिए पर्याप्त व्यापकता है जिसमें अधिनियम के तहत पारित आदेशों को चुनौती दी जा रही हो, जिसमें सीपीसी की धारा 115 के अंतर्गत सिविल पुनरीक्षण भी शामिल है.
उपर्युक्त के आधार पर, न्यायालय ने माना कि अधिनियम की धारा 24 के अंतर्गत दायित्व निर्धारित करने वाला आदेश अंतिम था. इसने आगे कहा कि केवल इसलिए कि उच्च न्यायालय द्वारा वैवाहिक कार्यवाही पर रोक लगा दी गई थी, यह अधिनियम के तहत कार्यवाही की समाप्ति नहीं है.
“इस न्यायालय द्वारा वैवाहिक मामले की कार्यवाही पर रोक लगाने मात्र से यह नहीं माना जाएगा कि वैवाहिक कार्यवाही समाप्त हो गई है, जिससे याचिकाकर्ता कार्यवाही पर रोक की तारीख से भरण-पोषण राशि का भुगतान करने के अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है.”
यह मानते हुए कि वैवाहिक मामले के लिए स्थानांतरण कार्यवाही जारी रहने के दौरान पत्नी भरण-पोषण पाने की हकदार है, न्यायालय ने पति की याचिका खारिज कर दी.
Neutral Citation No. – 2025:AHC:133601
Case :- MATTERS UNDER ARTICLE 227 No. – 8704 of 2025
Case title – Sultan Choudhary vs. State Of U.P. And 2 Others 2025