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High Court ने पकड़ ली अग्रिम जमानत कार्यवाही में न्यायिक अभिलेखों की forgery और हेराफेरी

सीआरपीसी की धारा 340 के तहत प्रारंभिक जाँच के दिये आदेश

Court ने पकड़ ली अग्रिम जमानत कार्यवाही में न्यायिक अभिलेखों की forgery और हेराफेरी

इलाहाबाद High Court एक ऐसे व्यक्ति के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 340 के तहत प्रारंभिक न्यायिक जाँच करने का निर्देश दिया है, जिसकी पत्नी ने उस पर जालसाजी (forgery), तथ्यों को छिपाने और न्यायिक अभिलेखों में हेराफेरी (forgery) करके हाईकोर्ट से आदेश प्राप्त करने का आरोप लगाया है. High Court के जस्टिस शेखर कुमार यादव की बेंच ने अंकिता प्रियदर्शिनी नामक महिला द्वारा दायर एक आवेदन पर यह आदेश दिया है.

आवेदक महिला अंकिता प्रियदर्शिनी ने दलील दी कि प्रतिवादी/पति अर्पण सक्सेना ने न्याय प्रशासन को प्रभावित करने वाले अपराध किए हैं. इसमें जालसाजी (forgery), न्यायिक अभिलेखों में हेराफेरी (forgery) और छद्मवेश धारण करना शामिल है. आरोप लगाया है कि पति ने एक प्रति-शपथपत्र को गायब कर दिया. आवेदन के प्रति-शपथपत्र में अनधिकृत पृष्ठ जोड़कर और किसी अन्य व्यक्ति को कई आवेदनों और हलफनामों पर हस्ताक्षर करने की अनुमति देकर न्यायिक अभिलेखों के साथ छेड़छाड़ की है.

यह भी दावा किया कि प्रतिवादी पति ने जानबूझकर हलफनामों में झूठे बयान दिए. अपना पासपोर्ट जारी करवाने के लिए Court के सामने तथ्यों को गलत (forgery) तरीके से प्रस्तुत किया. इसके आधार पर आवेदक प्रियदर्शिनी ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 340 के तहत दायर वाद दायर करके निम्न मांग की थी: –

  • न्याय प्रशासन को प्रभावित करने वाले अपराधों के लिए धारा 195 सीआरपीसी के साथ धारा 340 सीआरपीसी के तहत प्रतिवादी अर्पण सक्सेना के खिलाफ शिकायत दर्ज करके आपराधिक कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दें.
  • भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 419, 420, 467, 468 और 471 के तहत कथित अपराधों के लिए प्रतिवादी के खिलाफ धारा 340 सीआरपीसी के तहत जांच शुरू करें.
  • यदि प्रतिवादी दोष को हटाने का प्रयास करता है तो मूल जवाबी हलफनामे के गायब होने, दस्तावेजों के अनधिकृत सम्मिलन और 2020 के एबीएआईएल नंबर 9565 की न्यायिक फाइल में अंतिम रिपोर्ट को अवैध रूप से शामिल करने की न्यायिक जांच का निर्देश दें.
  • मामले के लंबित रहने के दौरान प्रतिवादी अर्पण सक्सेना को देश छोड़ने से रोकने के लिए एक आदेश पारित करें.

12 अगस्त को Court द्वारा दिये गये आदेश के अनुसरण में आवेदक का पति Court में उपस्थित हुआ और कहा कि वह अपनी पत्नी के साथ विवाद को सुलझाना नहीं चाहता है. Court ने प्रतिवादी के वकील द्वारा दायर संक्षिप्त प्रति-शपथपत्र पर प्रत्युत्तर हलफनामा रिकॉर्ड में ले लिया.

आवेदक ने प्रतिवादी के हस्ताक्षर और अग्रिम जमानत आवेदन, प्रत्युत्तर हलफनामों और वकालतनामे पर हस्ताक्षरों के बीच महत्वपूर्ण विसंगतियाँ दर्शाने वाली फोटो कॉपी Court में शेयर की. उसने आरोप लगाया है कि प्रतिवादी ने अपने पासपोर्ट की स्थिति के बारे में झूठे विवरण दिए और अदालत (Court) को यह विश्वास दिलाने में गुमराह किया कि उसने अपना पासपोर्ट जमा कर दिया है, जबकि उसने ऐसा नहीं किया था.

यह भी आरोप लगाया कि प्रतिवादी ने एक भ्रामक और अधूरा (forgery) प्रति-शपथपत्र (मूल 43 पृष्ठों के बजाय 21 पृष्ठ) प्रस्तुत किया, जिसमें उदयपुर डिस्ट्रिक्ट Court से अवैध रूप से प्राप्त अंतिम रिपोर्ट भी शामिल थी. यह दस्तावेज शिकायतकर्ता को नहीं दिया गया, जिससे उसके प्रति पूर्वाग्रह पैदा हुआ और उसे जवाब देने का अवसर नहीं मिला.

आवेदक के अधिवक्ता ने इकबाल सिंह मारवाह एवं अन्य बनाम मीनाक्षी मारवाह एवं अन्य, (2005) 4 एससीसी 370 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि कोई अदालत न्याय प्रशासन को प्रभावित करने वाले अपराधों के लिए शिकायत दर्ज करने के लिए सीआरपीसी की धारा 340 के तहत कार्यवाही कर सकती है, जब ऐसा करना समीचीन हो.

Court का निष्कर्ष

यह न्यायालय प्रथम दृष्टया इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि आरोप, यदि सिद्ध हो जाते हैं तो न्यायालय को गुमराह करने, न्याय की प्रक्रिया में बाधा डालने और न्यायिक कार्यवाही की सत्यनिष्ठा को हानि पहुँचाने का एक जानबूझकर और संगठित प्रयास है. ये कार्रवाइयाँ सीधे तौर पर सीआरपीसी की धारा 340 के अधिकार क्षेत्र में आती हैं जो न्यायालय को जाँच का निर्देश देने और यदि आवश्यक हो, तो सक्षम न्यायालय के समक्ष औपचारिक शिकायत दर्ज करने का अधिकार देती है.

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Court ने दिया निर्देश

यह निर्देश दिया जाता है कि इस न्यायालय के महापंजीयक, आपराधिक विविध अग्रिम जमानत आवेदन संख्या 9565/2020 के संबंध में अर्पण सक्सेना के विरुद्ध लगाए गए जालसाजी, प्रतिरूपण, भौतिक तथ्यों को छिपाने और न्यायिक अभिलेखों को गढ़ने के आरोपों की सीआरपीसी की धारा 340 के तहत तुरंत प्रारंभिक न्यायिक जाँच करेंगे.

जाँच आज से एक महीने की अवधि के भीतर पूरी हो जाएगी और यह निर्धारित किया जाएगा कि औपचारिक शिकायत दर्ज करने के लिए प्रथम दृष्टया मामला मौजूद है या नहीं. प्रतिवादी, श्री अर्पण सक्सेना को अगले आदेश तक भारत छोड़ने से रोका जाता है.

महापंजीयक, न्यायिक हिरासत में आपराधिक विविध अग्रिम जमानत आवेदन संख्या 9565/2020 और वर्तमान कार्यवाही से संबंधित सभी मूल फाइलों और दस्तावेजों का तत्काल संरक्षण सुनिश्चित करेंगे ताकि न्यायिक अभिलेखों में किसी भी प्रकार की छेड़छाड़, प्रतिस्थापन या परिवर्तन से बचा जा सके.

प्रारंभिक जाँच के निष्कर्षों की समीक्षा के बाद, मामले को उपयुक्त न्यायालय के समक्ष अगले आदेश के लिए 23.09.2025 को पुनः सूचीबद्ध किया जाएगा.

Case :- CRIMINAL MISC. APPLICATION U/S 379 BNSS No. – 7 of 2025

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