+91-9839333301

legalbulletin@legalbulletin.in

| Register

Domestic Violence अधिनियम की धारा 31 के तहत आपराधिक दायित्व तभी जब धारा 12 से 23 के तहत संरक्षण आदेश का उल्लंघन हो

Domestic Violence अधिनियम की धारा 31 के तहत आपराधिक दायित्व तभी जब धारा 12 से 23 के तहत संरक्षण आदेश का उल्लंघन हो

Domestic Violence से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 31 के तहत आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के आवेदन पर विचार करते हुए, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि अधिनियम (Domestic Violence) का उल्लंघन होके तहत आपराधिक कार्यवाही तभी शुरू की जा सकती है जब अधिनियम की धारा 12 से 23 के तहत दीवानी कार्यवाही में पारित आदेश की किसी भी शर्त का उल्लंघन हो.

आवेदकों ने Domestic Violence अधिनियम की धारा 31 के तहत दर्ज एफआईआर के खिलाफ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, इस आधार पर कि यह अनुचित था और पक्षों के बीच पहले ही समझौता हो चुका था. तत्कालीन एसीजेएम, रामपुर से पूछा कि मामले का संज्ञान लेने का आधार क्या था. जवाब में, यह कहा गया कि पुलिस रिपोर्ट को संज्ञान लेने के लिए धारा 2 (डी) सीआरपीसी के तहत एक शिकायत माना गया था.

यह देखते हुए कि 2005 का अधिनियम एक विशेष कानून है, अदालत ने कहा कि इसमें आईपीसी के विपरीत एफआईआर के पंजीकरण का प्रावधान नहीं है, जहां हमला, क्रूरता, आपराधिक धमकी या दहेज से संबंधित उत्पीड़न (Domestic Violence) जैसे अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज की जा सकती है. इसने माना कि एकमात्र संज्ञेय अपराध डीवी अधिनियम के तहत दिए गए संरक्षण आदेश का उल्लंघन था.

“मजिस्ट्रेट द्वारा विधिवत पारित पूर्व संरक्षण आदेश के अभाव में, पुलिस को अधिनियम की धारा 31 के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का अधिकार नहीं है. अधिनियम के प्रक्रियात्मक अधिदेश के अनुसार, यह प्रक्रिया अधिनियम की धारा 12 से 23 के तहत परिकल्पित दीवानी तंत्र के माध्यम से शुरू की जानी चाहिए, और केवल ऐसे आदेश के उल्लंघन पर ही अधिनियम, 2005 की धारा 31 के तहत आपराधिक दायित्व उत्पन्न होता है.”
जस्टिस विनोद दिवाकर

Domestic Violence अधिनियम की धारा 31 के तहत आपराधिक दायित्व तभी जब धारा 12 से 23 के तहत संरक्षण आदेश का उल्लंघन हो

कोर्ट ने माना कि धारा 31 का उद्देश्य प्रतिवादी को डीवी अधिनियम के तहत पारित संरक्षण आदेश का पालन नहीं करने से रोकना था “महत्वपूर्ण बात यह है कि धारा 31 के अंतर्गत कोई अपराध केवल मजिस्ट्रेट द्वारा जारी “सुरक्षा आदेश” या “अंतरिम सुरक्षा” आदेश के उल्लंघन पर ही उत्पन्न होता है. केवल ऐसे उल्लंघन को ही अधिनियम के अंतर्गत संज्ञेय अपराध माना जाता है. ऐसे आदेश के अभाव में, धारा 31 के अंतर्गत कोई संज्ञेय अपराध अस्तित्व में नहीं माना जा सकता.”

कोर्ट ने माना कि पुलिस रिपोर्ट, घरेलू हिंसा (Domestic Violence) अधिनियम के अंतर्गत धारा 31 के अंतर्गत संज्ञान लेने हेतु शिकायत नहीं है. वर्तमान अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, गाजियाबाद द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण को त्रुटिपूर्ण मानते हुए, कोर्ट ने उन्हें भविष्य के न्यायिक निर्णयों में सावधानी और विवेक का प्रयोग करने की चेतावनी दी. तदनुसार, घरेलू हिंसा (Domestic Violence) अधिनियम की धारा 31 के अंतर्गत संपूर्ण कार्यवाही रद्द कर दी गई.

कोर्ट ने तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, आरोप पत्र संख्या 47/2014 दिनांक 14.2.2014, संज्ञान आदेश दिनांक 26.7.2016, साथ ही मुकदमा संख्या 1660/2016, राज्य बनाम सत्तार अहमद एवं अन्य की संपूर्ण कार्यवाही, जो घरेलू हिंसा (Domestic Violence) अधिनियम, 2005 की धारा 31 के तहत मुकदमा अपराध संख्या 494/2013 से उत्पन्न हुआ के तहत रामपुर के कोर्ट में लंबित याचिका को निरस्त करने का आदेश दिया और आवेदन स्वीकार कर लिया.

हमारी स्टोरीज की वीडियो देखें….

Domestic Violence अधिनियम की धारा 31 के तहत आपराधिक दायित्व तभी जब धारा 12 से 23 के तहत संरक्षण आदेश का उल्लंघन हो

कोर्ट जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 2(घ) के अंतर्गत संज्ञान लेने के लिए दिए गए गलत औचित्य के कारण एक विस्तृत आदेश जारी करना आवश्यक समझता है, क्योंकि कानूनन इस मामले की सुनवाई तभी शिकायत के रूप में की जा सकती है जब “पीड़ित व्यक्ति” घरेलू हिंसा (Domestic Violence) अधिनियम, 2005 की धारा 12 के अंतर्गत आवेदन दायर करे—यह विद्वान मजिस्ट्रेटों द्वारा किया जाने वाला एक बुनियादी और नियमित न्यायिक कार्य है.

यद्यपि यह न्यायालय मजिस्ट्रेट न्यायालयों के कार्यभार की अधिकता को स्वीकार करता है, किन्तु यदि विद्वान अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश का स्पष्टीकरण किसी साधारण तथ्यात्मक भूल या चूक पर आधारित होता, तो यह न्यायालय विस्तृत आदेश जारी करने से बचता. तथापि, जिला न्यायपालिका के एक वरिष्ठ सदस्य द्वारा दिए गए गलत स्पष्टीकरण की गहन समीक्षा आवश्यक है, जिससे इस न्यायालय को यह विस्तृत आदेश पारित करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.

Case Title: Sattar Ahmad & 4 Ors v. State of U.P. and Another
APPLICATION U/S 482 No. – 35994 of 2024
इसे भी पढ़ें…

2 thoughts on “Domestic Violence अधिनियम की धारा 31 के तहत आपराधिक दायित्व तभी जब धारा 12 से 23 के तहत संरक्षण आदेश का उल्लंघन हो

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *