POCSO के आरोपित की जमानत मंजूर, जुर्माना 50% जमा करना होगा

सत्र परीक्षण में POCSO एक्ट एक्ट समेत अन्य धाराओं में दोषी ठहराए गए और दण्डित किए गए आरोपित को जमानत पर रिहा करने का आदेश इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अपील के लंबित रहने तक अपीलकर्ता के विरुद्ध 50% जुर्माने की वसूली स्थगित रहेगी. शेष 50% जुर्माना अपनी रिहाई के दो महीने के भीतर जमा करना होगा. कोर्ट ने जमानत प्रार्थना पत्र मंजूर करने में इस तथ्य को ज्यादा महत्व दिया कि अपील पर निकट भविष्य में निर्णय नहीं होने वाला है.
पक्षों के अधिवक्ताओं की ओर से प्रस्तुत तर्कों, विचारण न्यायालय द्वारा अपीलकर्ता को दी गई सजा को ध्यान में रखते हुए और इस मामले के गुण-दोष पर विचार किए बिना, इस न्यायालय का मत है कि अपीलकर्ता जमानत पर रिहा किए जाने का हकदार है. यह फैसला जस्टिस अनिल कुमार दशम ने सुनाया है.
जमानत के लिए आवेदन अपीलकर्ता अमित गौड़ की ओर से दाखिल किया गया है. इसमें लोअर कोर्ट से सुनायी गयी सजा को निलंबित करने और जमानत के लिए दायर किया गया है. बता दें कि याची को मुकदमा संख्या 111/2023 (उत्तर प्रदेश राज्य बनाम अमित गौड़ पुत्र सुभाष गौड़) में दोषी ठहराया गया है. 2021 में जौनपुर जिले के मड़ियाहूं थाना क्षेत्र में अपराध संख्या 267, धारा 363, 366, 376 आईपीसी और धारा 3/4 पोक्सो (POCSO ) एक्ट दर्ज किया गया था.

इस केस में अभियुक्त-अपीलकर्ता को अधिकतम सजा बीस साल और 65,000 रुपये का जुर्माना, साथ ही डिफॉल्ट क्लॉज से दंडित किया गया है. इस संबंध में दर्ज करायी गयी रिपोर्ट के अनुसार सूचक की बेटी जो कक्षा 9 की छात्रा था स्कूल से घर नहीं लौटी. उन्होंने पूछताछ की तो पता चला कि अपीलकर्ता पीड़िता को बहला-फुसलाकर अपने साथ ले गया था. इस तथ्य पर वकील ने दलील दी है कि एफआईआर पाँच दिन बाद दर्ज की गई और अभियोजन पक्ष ने इस देरी के लिए कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया है. आगे दलील दी गई कि पीड़िता को घटना के पाँच महीने बाद बरामद किया गया.
तथ्यों में बताया गया कि उसने खुद कहा है कि वह अपीलकर्ता के साथ कर्नाटक से वापी और फिर सूरत तक कई जगहों पर गई. दलील दी गई कि यह बेहद असंभव है कि अपहृत व्यक्ति ट्रेन या किसी सार्वजनिक परिवहन में यात्रा करते समय शोर न मचाए. यह भी संभव नहीं है कि विभिन्न स्थानों की यात्रा कर रहा अपहृत व्यक्ति आम जनता की नजरों से ओझल रहे.
पीड़िता ने दलील दी है कि वह एक महीने तक अपीलकर्ता के साथ रही और उसके बाद अपीलकर्ता ने उसे छोड़ दिया और वह अपने एक रिश्तेदार बबलू के घर आ गई, जहाँ वह बाकी पाँच महीने रही. पीड़िता ने इन पाँच महीनों में कोई शिकायत नहीं की.
दलील दी गई कि पूरा मामला अप्राकृतिक है और यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि जब पीड़िता उसके किसी रिश्तेदार के साथ रह रही थी, तब न तो उसने और न ही उसके परिवार के सदस्यों ने कोई एफआईआर दर्ज कराई.
अधिवक्ता मुक्तेश कुमार सिंह ने जमानत याचिका का विरोध किया और कहा कि पीड़िता की आयु उसके शैक्षणिक प्रमाण पत्र के आधार पर 14 वर्ष पाई गई. उसने अपने बयान में कहा कि अपीलकर्ता ने सूरत और कर्नाटक में रहने के दौरान कई बार उसका यौन उत्पीड़न किया. अपीलकर्ता की अधिवक्ता रोशनी द्विवेदी, सूचक के अधिवक्ता मुक्तेश कुमार सिंह और राज्य के एजीए आचार्य राजेश ने पक्ष रखा.
परेशान करना Sucide के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति को खुदकुशी (Sucide) के लिए उकसाने की आरोपी विंध्याचल, मिर्जापुर की साधना देवी की सशर्त जमानत मंजूर कर ली है.वह 18 मई 25 से जेल में बंद हैं. यह आदेश जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव ने याची अधिवक्ता दिव्यांशु तिवारी व शैलेश कुमार उपाध्याय को सुनकर दिया है.
तर्क था कि सुसाइड (Sucide ) नोट में याची पर कोई आरोप नहीं लगाया गया है वल्कि कहा गया है कि मेरी पत्नी को कोई आरोप न लगायें. खुदकुशी (Sucide) के लिए उकसाने का कोई साक्ष्य नहीं है. परेशान करना खुदकुशी के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता.
यह भी तर्क दिया गया कि याची को झूठा फंसाया गया है. एफआईआर भी घटना के दस दिन बाद लिखी गई है. सुसाइड (Sucide) नोट मृतक की पैंट की जेब से बरामद किया गया है. याची के खिलाफ अन्य कोई आपराधिक केस नहीं है. कोर्ट ने व्यक्तिगत मुचलके व दो प्रतिभूति लेकर संतुष्ट होने पर रिहाई का निर्देश दिया है.