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‘History sheet खोलने का पुलिस के पास निरंकुश अधिकार नहीं है’

इलाहाबाद HC ने कहा, उचित संदेह के लिए ठोस सामग्री आवश्यक

'History sheet खोलने का पुलिस के पास निरंकुश अधिकार नहीं है'

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पुलिस किसी व्यक्ति की पसंद या नापसंद के आधार पर उसके खिलाफ हिस्ट्रीशीट (History sheet) खोलने में ‘अनियंत्रित’ और ‘अनैच्छिक’ शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकती है. कोर्ट ने कहा कि उचित संदेह के लिए ठोस और विश्वसनीय सामग्री आवश्यक है.  कोर्ट ने कहा कि पुलिस के पास निगरानी रजिस्टर में किसी भी व्यक्ति का नाम दर्ज करने का लाइसेंस नहीं है जिसे वह पसंद या नापसंद करता है.

कोर्ट ने विशेष रूप से कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस विनियमावली के नियम 228 और 240 पुलिस को इसका इस तरह से उपयोग करने का कोई अधिकार नहीं देते हैं जिससे नागरिक की मौलिक स्वतंत्रता का हनन हो. इसके आधार पर जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस संतोष राय की बेंच ने सिद्धार्थनगर के पुलिस अधीक्षक के जून 2025 के आदेश को रद्द कर दिया है. एसपी सिद्धार्थनगर ने याचिकाकर्ता मोहम्मद वजीर की हिस्ट्रीशीट (History sheet) बंद करने की याचिका खारिज कर दी थी.

आठ साल पुराने एक केस पर खोल दी History sheet

याचिकाकर्ता वजीर के खिलाफ 2016 में उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम के तहत केवल एक मामला दर्ज था. इसके बाद से उस पर आरोप लगाए गए लेकिन उसके खिलाफ कोई अन्य प्राथमिकी, एनसीआर या शिकायत दर्ज नहीं की गई है. इसी केस के आधार पर उसके खिलाफ हिस्ट्रीशीट (History sheet) खोल दी गई थी. इसकी जानकारी होने पर उसने संबंधित पुलिस अधीक्षक से इसे (History sheet) बंद करने का आग्रह किया. उसके इस आग्रह को पुलिस नियम 228 और 240 का हवाला देते हुए 23 जून, 2025 को ठुकरा दिया गया.

इसके बाद उसने हाई कोर्ट का रुख किया और याचिका दाखिल करके एसपी सिद्धार्थनगर के आदेश को चुनौती दी. उसके वकील ने तर्क दिया कि हिस्ट्रीशीट (History sheet) खोलना गलत था क्योंकि यह बिना किसी ठोस और विश्वसनीय सामग्री के ऐसा किया गया था. ऐसा करना उत्तर प्रदेश पुलिस विनियमावली के पैरा 228, 229, 231, 233 और अन्य प्रासंगिक नियमों का उल्लंघन था.

अधिवक्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि पुलिस प्राधिकारी ने केवल एक घटना के आधार पर हिस्ट्रीशीट (History sheet) खोली. इसकी रिपोर्ट भी 8 साल पहले दर्ज की गई थी.

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'History sheet खोलने का पुलिस के पास निरंकुश अधिकार नहीं है'

सुनवाई के बाद बेंच ने कहा कि आमतौर पर केवल पिछले आपराधिक रिकॉर्ड वाले व्यक्तियों के नाम ही निगरानी रजिस्टर में दर्ज किए जाते हैं. ऐसे व्यक्ति घोषित अपराधी, पूर्व में दोषी ठहराए गए व्यक्ति या अच्छे आचरण के लिए पहले से ही सुरक्षा में रखे गए व्यक्ति होने चाहिए. कोर्ट ने कहा कि जिन व्यक्तियों के बारे में उचित रूप से माना जाता है कि वे आदतन अपराधी या चोरी की संपत्ति प्राप्त करने वाले हैं, चाहे उन्हें दोषी ठहराया गया हो या नहीं, उन्हें पुलिस विनियमावली के तहत निगरानी रजिस्टर में वर्गीकृत और दर्ज किया जा सकता है.

इस पृष्ठभूमि में, बेंच ने पाया कि एसपी ने बिना किसी सहायक सामग्री के बेहद लापरवाही से आवेदक के अभ्यावेदन (History sheet बंद करने का आग्रह) को खारिज कर दिया. यूपी पुलिस के पास यह साबित करने के लिए कुछ भी नहीं था कि याचिकाकर्ता विनियम 228 (ए) द्वारा परिकल्पित अपराध की प्रकृति में शामिल है. बेंच ने कहा कि गोवध निवारण अधिनियम के तहत आठ साल पुराना एक मामला याचिकाकर्ता को आदतन अपराधी नहीं बनाता.

कोर्ट ने अपने आदेश में गोविंद बनाम मध्य प्रदेश राज्य, 1975 और मलक सिंह आदि बनाम पंजाब एवं हरियाणा राज्य एवं अन्य, 1980 के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते दोहराया कि पुलिस विनियमों में कानूनी बल तो है, लेकिन उनका दुरुपयोग नागरिकों पर मनमाने ढंग से निगरानी रखने के लिए नहीं किया जा सकता. बेंच ने उपर्युक्त निष्कर्ष के आधार पर पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थनगर के आदेश को रद्द करते हुए रिट याचिका स्वीकार कर ली.

Case:- Mohammad Wajir vs. State of U.P. and 3 others 2025 LiveLaw (AB) 323

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