मेडिकल बोर्ड तय करेगा rape victim का Unwanted pregnancy समाप्त करने की अनुमति दें या नहीं, सुनवाई 26 को

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव से Unwanted pregnancy के समापन की अनुमति देने में देरी के बजाय त्वरित कार्रवाई की गाइडलाइंस के साथ हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है और सुझाव मांगा है कि Unwanted pregnancy गिराने पर मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर अनुमति देने देने हो रही देरी कैसे कम हो.
कोर्ट ने कहा कि समझ से परे है कि दो मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पक्ष में होने के बावजूद अधीनस्थ अदालत ने Unwanted pregnancy (गर्भ) गिराने की अनुमति अर्जी निरस्त कर दी जबकि Unwanted pregnancy (अनचाहा गर्भ) का हर दिन कीमती है, तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए. लटकाए रखना पीड़िता के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा हो सकता है. कोर्ट ने कहा अधीनस्थ अदालत ने संवेदनहीनता का परिचय दिया और कानून समझने में गलती की.

कोर्ट ने बागपत की दुराचार पीड़िता के Unwanted pregnancy (अनचाहा गर्भ) की समाप्ति की अनुमति के लिए सीएमओ मेरठ को विशेषज्ञ चार डाक्टरों का मेडिकल बोर्ड गठित करने तथा हर पहलू पर विस्तृत जांच कर 24 घंटे में मेडिकल रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज मेरठ के प्राचार्य को इस जांच में पूरा सहयोग देने तथा जिलाधिकारी मेरठ को पीड़िता के परिवार के मेरठ आने व ठहरने का खर्च उठाने का निर्देश दिया है. याचिका की अगली सुनवाई 26 अगस्त को होगी.
कोर्ट ने पीड़िता याची को ही एमओ के साथ मेडिकल बोर्ड के समक्ष जांच के लिए उपस्थित होने का आदेश दिया है. यह आदेश जस्टिस एमके गुप्ता और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र की बेंच ने पीड़िता की तरफ से मां द्वारा दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए दिया. जिसमें एडीजे/विशेष जज पाक्सो एक्ट बागपत द्वारा Unwanted pregnancy (अनचाहा गर्भ) गिराने की अनुमति देने से इंकार करने को चुनौती दी गई है.
बता दें कि बागपत जिले के सिंघावली अहीर थाना क्षेत्र में नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता याची की मां ने घटना की एफआईआर दर्ज कराई है. 17 साल की पीड़िता ने Unwanted pregnancy (अनचाहा गर्भ) गिराने की अनुमति के लिए अदालत में अर्जी दाखिल की. सीएमओ रिपोर्ट में गर्भ बीस सप्ताह से कम बताया गया और कहा गया कि डाक्टर के द्वारा एमटीपी एक्ट के तहत गर्भ समापन हो सकता है.
कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड से दुबारा जांच रिपोर्ट मांगी. वह भी पक्ष में रही. इसके बावजूद पीड़िता की अर्जी निरस्त कर दी गयी. इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल करके गर्भ गिराने की अनुमति देने की मांग की गयी है.