+91-9839333301

legalbulletin@legalbulletin.in

|

पाकिस्तान के समर्थन की social media post धारा 152 के तहत अपराध नहीं

HC ने कहा पोस्ट करना देश के विरूद्ध अपराध नहीं, आरोपित को जमानत

पाकिस्तान के समर्थन की social media post धारा 152 के तहत अपराध नहीं

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाकिस्तान का समर्थन करने की social media post डालने वाले छात्र की जमानत मंजूर कर ली है और कहा कि यदि कोई व्यक्ति भारत या किसी विशिष्ट घटना का उल्लेख किए बिना केवल पाकिस्तान का समर्थन करता है, तो प्रथम दृष्टया यह भारतीय न्याय संहिता  की धारा 152 के तहत अपराध नहीं बनता है. यह धारा उन कृत्यों को दंडित करती है जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालते हैं.

जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल ने यह टिप्पणी social media post डालने वाले छात्र मई 25 से जेल में बंद 18 वर्षीय रियाज को जमानत देते हुए की. याची ने social media post पर लिखा, “चाहे जो हो जाय सपोर्ट तो बस…..पाकिस्तान का करेंगे. कोर्ट ने कहा पुलिस चार्जशीट दाखिल हो चुकी है. पूछताछ के लिए अभिरक्षा में लेने की आवश्यकता नहीं है. ऐसे में वह जमानत पाने का हकदार हैं.

दलील दी गई कि इस social media post से देश की गरिमा या संप्रभुता को कोई ठेस नहीं पहुंची है, क्योंकि इसमें न तो भारतीय ध्वज, न ही देश का नाम या कोई ऐसी तस्वीर थी, जिससे भारत का अनादर होता हो. कहा  कि केवल किसी देश का समर्थन करने से, भले ही वह भारत का शत्रु ही क्यों न हो, बीएनएस की धारा 152 के प्रावधानों के अंतर्गत अपराध नहीं माना जा सकता. सरकार की ओर से विरोध करते हुए कहा गया कि इंस्टाग्राम आईडी के माध्यम से आवेदक द्वारा की गई ऐसी social media post अलगाववाद को बढ़ावा देती हैं.

इमरान प्रतापगढ़ी के केस का हवाला
अदालत ने इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का भी हवाला दिया और कहा कि वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे संविधान के मूलभूत आदर्शों में से एक है. हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि  धारा 152 में कठोर दंड का प्रावधान है, इसलिए इसे सावधानी से लागू किया जाना चाहिए.

“धारा 152 को लागू करने से पहले उचित सावधानी और उचित मानकों को अपनाया जाना चाहिए, क्योंकि सोशल मीडिया पर बोले गए शब्द या social media post भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आते हैं, जिसकी संकीर्ण व्याख्या नहीं की जानी चाहिए, जब तक कि वह ऐसी प्रकृति का न हो जो किसी देश की संप्रभुता और अखंडता को प्रभावित करता हो या अलगाववाद को बढ़ावा देता हो.”
इलाहाबाद हाईकोर्ट

पाकिस्तान के समर्थन की social media post धारा 152 के तहत अपराध नहीं

अदालत ने कहा इस प्रावधान को लागू करने के लिए मौखिक या लिखित शब्दों, संकेतों, दृश्य चित्रणों, इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से अलगाववाद, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों को बढ़ावा देना या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को बढ़ावा देना या भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालना आवश्यक है.

कोर्ट ने यह भी कहा कि भले ही कथित पोस्ट संभावित रूप से धारा 196 (शत्रुता को बढ़ावा देना) के दायरे में आ सकती हो, लेकिन उस अपराध के लिए भी एफआईआर दर्ज करने से पहले बीएनएसएस की धारा 173 (3) के तहत प्रारंभिक जांच आवश्यक है, जो इस मामले में नहीं की गई थी.

रियाज की आयु, आपराधिक इतिहास की अनुपस्थिति और आरोप पत्र दाखिल होने के तथ्य को ध्यान में रखते हुए अदालत ने उसे सशर्त जमानत दे दी. हालांकि, रियाज को सोशल मीडिया पर ऐसी कोई भी सामग्री पोस्ट न करने का निर्देश दिया गया जिससे भारत के नागरिकों के बीच वैमनस्य पैदा हो.

सरकार पर सवाल उठाने वाली social media post पर दी अग्रिम जमानत
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जम्मू और कश्मीर में हाल ही में पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद सरकार पर सवाल उठाते हुए social media post पर कथित तौर पर आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी थी. आरोपी पर धारा 353 (3) और 152 बीएनएस के तहत मामला दर्ज किया गया था.

जमानत याचिका मंजूर करते हुए जस्टिस विक्रम डी. चौहान की पीठ ने कहा कि अपर शासकीय अधिवक्ता यह साबित करने में सक्षम नहीं थे कि आवेदक को राहत देने से बड़े पैमाने पर समाज पर असर पड़ेगा, या यदि उसे जमानत दी जाती है, तो स्वतंत्र, निष्पक्ष और पूर्ण जांच पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

पाकिस्तान के समर्थन की social media post धारा 152 के तहत अपराध नहीं

आवेदक अजाज अहमद के खिलाफ एफआईआर पुलिस सब-इंस्पेक्टर द्वारा थाना इज्जतनगर, बरेली में दर्ज की गई थी. जिसने दावा किया था कि जब शहर में आतंकवादी हमले में मारे गए निर्दोष नागरिकों की मौत पर शोक का माहौल था, तब एक social media post वायरल हो गई थी.

पोस्ट में कथित तौर पर कहा गया है: “नाम पूछकर गोली मारी,चूरन बेचना बंद करें, असली मुद्दे पर आएं कि हमले के लिए जिम्मेदार कौन था”. आवेदक की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने तर्क दिया था कि यह मामला धारा 353 बीएनएस के अंतर्गत आता है, जिसके लिए सात साल से कम कारावास की सजा हो सकती है. उन्होंने आगे तर्क दिया कि सरकार के काम की आलोचना करना देश के खिलाफ़ काम नहीं माना जा सकता.

उन्होंने दलील दी कि आवेदक निर्दोष है, उसका कोई आपराधिक इरादा नहीं है तथा उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता. हालांकि, यह देखते हुए कि ऐसा कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे पता चले कि इस कृत्य से समाज को व्यापक रूप से नुकसान पहुंचा है, या अग्रिम जमानत देने से जांच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा या साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ को बढ़ावा मिलेगा, अदालत ने आरोप पत्र दाखिल होने तक याची को जमानत दे दी.

इसे भी पढ़ें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *