SI Recruitment परीक्षा 2021 में अनुचित साधन उपयोग करने के आरोपी अभ्यर्थियों को परीक्षा से बाहर करने का आदेश रद्द

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सिविल पुलिस और प्लाटून कमांडेंट पीएसी भर्ती (Recruitment) परीक्षा 2020-21 में अनुचित साधन का उपयोग करने के आरोप में परीक्षा से बाहर किए गए अभ्यर्थियों को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने ऐसे सभी अभ्यर्थियों को परीक्षा से बाहर करने के आदेश को रद्द कर दिया है. साथ ही इन अभ्यर्थियों की दोबारा परीक्षा कराकर 3 माह के भीतर परिणाम जारी करने का आदेश दिया है.
कोर्ट ने बिना किसी ठोस प्रमाण के अभ्यर्थियों को अनुचित साधन का उपयोग करने के आधार पर परीक्षा से बाहर निकाले जाने के अधिकारियों के कृत्य की कठोर निंदा की है. तनु चौधरी सहित सैकड़ो अभ्यर्थियों की याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए यह आदेश जस्टिस नीरज तिवारी ने अभ्यर्थियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल तिवारी और विजय गौतम सहित अन्य अधिवक्ताओं को सुनकर दिया है.
उत्तर प्रदेश नागरिक पुलिस और प्लाटून कमांडेंट पीएसी तथा फायर स्टेशन अफसर सेकंड की भर्ती (Recruitment) वर्ष 2020-21 के लिए 24 फरवरी 2021 को विज्ञापन जारी किया गया था. कुल 9534 पदों पर भर्ती (Recruitment) होनी थी. याचीगण ने सभी अहर्ताएं पूरी करते हुए आवेदन किया तथा लिखित परीक्षा, दस्तावेजों के सत्यापन और शारीरिक मानक परीक्षा आदि में सफल घोषित किए गए अंतिम चरण की परीक्षा (Recruitment) शारीरिक दक्षता परीक्षा होनी थी.

इसमें शामिल होने से पूर्व याचीगण पर पुलिस भर्ती बोर्ड द्वारा अनुचित साधन का उपयोग करने का आरोप लगाते हुए प्राथमिक की दर्ज कर दी गई. और उनके अभ्यर्थन (Recruitment) निरस्त कर अंतिम चरण की परीक्षा में शामिल होने से वंचित कर दिया गया. याचीगण का पक्ष रख रहे वकीलों का कहना था कि सरकार को अनुचित साधन के उपयोग पर अभ्यर्थन रद्द करने का अधिकार है. मगर यह कानून में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार होना चाहिए. अभ्यर्थन निरस्त करने की कोई वैधानिक प्रक्रिया का होना आवश्यक है जिसमें अनुचित साधन को परिभाषित किया गया हो.
वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलील थी कि कोई अभ्यर्थी अनुच्छेद साधन का प्रयोग कर रहा है यह तय करने की एक निश्चित प्रक्रिया होनी चाहिए और अभ्यर्थियों को मनमाने तरीके से दंडित करने से बचाव का भी प्रावधान होना चाहिए. याचीगण के विरुद्ध वीडियो रिकॉर्डिंग के आधार पर कार्रवाई की गई है. जिसमें एक मात्र आरोप यह है कि उन्होंने तय समय से बहुत कम समय में सिर्फ 15 मिनट में प्रश्न पत्र हल कर लिए जो की असामान्य है.

याचियों के पास से किसी भी प्रकार का कोई अनुचित साधन बरामद नहीं किया गया. ना ही परीक्षा के दौरान उनके विरुद्ध कोई शिकायत हुई. यह भी दलील दी गई की भर्ती बोर्ड (Recruitment) द्वारा 15 सितंबर 2022 और 27 फरवरी 2025 को दाखिल हलफनामे में गंभीर विरोधाभास है. दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट का कहना था कि याचियों के खिलाफ अनुचित साधन के उपयोग की कोई सूचना या शिकायत प्राप्त नहीं हुई थी ना ही उनके पास से ऐसा कुछ बरामद हुआ. सिर्फ संदेह के आधार पर कार्रवाई नहीं की सकती है.
कोर्ट ने कहा कि यह स्पष्ट है कि अनुचित साधन प्रयोग को लेकर अभी तक कोई नियम नहीं बनाया गया है. अभ्यर्थन रद्द करने की प्रक्रिया के बारे में अभ्यर्थियों को कोई जानकारी नहीं दी गई. उनको यह भी नहीं बताया गया की प्रश्न पत्र कितने समय में हल करना है. वास्तव में किसी भी याची के बारे में ना तो कोई शिकायत प्राप्त हुई और ना ही कुछ बरामद हुआ.
अभ्यर्थन (Recruitment) रद्द करने से पूर्व उनको सुनवाई का अवसर भी नहीं दिया गया
अभ्यर्थन रद्द करने से पूर्व उनको सुनवाई का अवसर भी नहीं दिया गया जो की नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है. कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों का रवैया निहायत गैर जिम्मेदाराना था. कोर्ट का कहना था कि 15 सितंबर 22 के हलफनामें में कहा गया है कि अनुचित साधन का प्रयोग करने के मामले में याचियों को परीक्षा से बाहर किया गया है जबकि 27 फरवरी 2025 के अध्यक्ष भर्ती बोर्ड के हलफनामे में कहा गया है कि याचीगण ने स्वयं Recruitment परीक्षा छोड़ दी. कोर्ट ने कहा इस प्रकार का कृत्य निहायत निंदनीय है. अपेक्षा की जाती है कि सरकार इस मामले में नियमानुसार कार्रवाई करेगी .
कोर्ट ने याचियों का Recruitment अभ्यर्थन रद्द करने का आदेश निरस्त करते हुए सभी को शारीरिक दक्षता परीक्षा में शामिल करने का निर्देश दिया है साथ ही यह भी कहा है कि यदि उनकी परीक्षा का कोई अन्य भाग भी बचा हुआ है तो उसमें भी उनको आदेश के तीन माह के भीतर शामिल किया जाए. यह निर्णय इसी प्रकार के मामले के उन अभ्यर्थियों पर भी लागू होगा जो इस याचिका में शामिल नहीं है. कोर्ट ने परीक्षा कराने के बाद 3 माह के भीतर परिणाम जारी करने का निर्देश दिया है.