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पत्नी के Maintenance की वसूली के लिए पति के खिलाफ गिरफ्तारी Warrant रद

कोर्ट ने कहा, मनी डिग्री की तरह हो गुजारा भत्ते की वसूली

पत्नी के Maintenance की वसूली के लिए पति के खिलाफ गिरफ्तारी Warrant रद

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बकाया गुजारा भत्ता वसूली के लिए पति के खिलाफ जारी वसूली/गिरफ्तारी वारंट (Warrant) को अवैध मानते हुए रद कर दिया है और कहा है कि भरत पोषण की वसूली धन डिक्री की तरह सीपीसी की कानूनी प्रक्रिया अपनाकर ही की जा सकती है. कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के रजनेश केस का हवाला दिया. यह आदेश जस्टिस संजय कुमार पचौरी ने सहारनपुर निवासी परवीन कुमार उर्फ प्रवीण कुमार की याचिका पर दिया है. याचिका पर अधिवक्ता रजत ऐरन व राज कुमार सिंह ने बहस की.

पत्नी ने परिवार अदालत में धारा 125दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत भरण पोषण की अर्जी दी. परिवार अदालत मेरठ के आदेश का पालन नहीं किया गया तो आदेश के अनुपालन की अर्जी दी गई. परिवार अदालत ने वसूली वारंट (Warrant) जारी किया फिर गिरफ्तारी वारंट (Warrant) भी जारी किया. इस पर याची ने आपत्ति दी. उसने हाईकोर्ट में चुनौती दी कि परिवार अदालत को गुजारा भत्ता वसूली के लिए गिरफ्तारी वारंट (Warrant) जारी करने का अधिकार नहीं है.

याची अधिवक्ता का कहना था कि पत्नी पिछले 10 वर्षों से बच्चे समेत मेरठ में रहकर वकालत कर रही है और उसने स्वयं को ग्रहणी दर्शाकर परिवार अदालत मेरठ से 30,000 रुपए मासिक खर्चा तय करवा लिया है. याची  गंभीर बीमारियों से पीड़ित होने के कारण नौकरी नहीं कर पा रहा है जिस कारण उसपर भरण पोषण का करीब 35 लाख रुपया बकाया हो गया है. इस धनराशि की वसूली के लिए फैमिली कोर्ट मेरठ ने एसएसपी सहारनपुर एवं डीजीपी तक को याची को गिरफ्तार करने का आदेश दिया है.

बकाया भरण पोषण को वसूलने की प्रक्रिया धारा 421 सीआरपीसी में निर्धारित है एवं उसके पालन किए बिना सीधे गिरफ्तारी (Warrant) आदेश नहीं दिया जा सकता. हाईकोर्ट ने रजनेश बनाम नेहा के केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित वसूली कानून की व्याख्या के अनुसार परिवार अदालत मेरठ के गिरफ्तारी आदेश को रद्द कर दिया.

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ललितपुर में 36 सरकारी आवासों के अवैध आवंटन पर जवाब तलब

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ललितपुर में 36 आवासों के अवैध आवंटन के मामले में मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) ललितपुर को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है. साथ ही कहा कि यदि अगली सुनवाई तक हलफनामा दाखिल नहीं किया जाता है तो मुख्य विकास अधिकारी को सभी संबंधित अभिलेखों के साथ व्यक्तिगत रूप से न्यायालय में उपस्थित होना होगा. यह आदेश जस्टिस सरल श्रीवास्तव और जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की बेंच ने सुरेश श्रीवास्तव की याचिका पर सुनवाई के बाद दिया है.

सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि सीडीओ ललितपुर ने 25 फरवरी 2025 को आवासों के अवैध आवंटन मामले की जांच के लिए एक टीम का गठन किया था. इस टीम में सहायक श्रम आयुक्त रोजगार, परियोजना निदेशक, डीआरडीए और जिला विकास अधिकारी शामिल थे. कोर्ट ने सीडीओ को अगली सुनवाई पर व्यक्तिगत हलफनामा दायर कर जांच की स्थिति से अवगत कराने के लिए कहा है. कोर्ट ने कहा है कि  यदि जांच अभी तक पूरी नहीं हुई है तो इसका कारण भी बताना होगा और साथ ही जांच पूरी करने की समय-सीमा भी बतानी होगी.

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