Mob lynching पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दाखिल की PIL
सरकार ने याचिका की ग्राह्यता पर दर्ज करायी आपत्ति

प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से दायर उस आपराधिक जनहित याचिका (PIL) की पोषणीयता पर आपत्ति किया है, जिसमें तहसीन एस. पूनावाला बनाम भारत संघ (2018) मामले में मॉब लिंचिंग (Mob lynching) रोकने और ऐसे मामलों में कार्रवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का अनुपालन करने का अनुरोध किया गया है. हाल ही में जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस अवनीश सक्सेना की बेंच को अतिरिक्त महाधिवक्ता ने सूचित किया कि वह इस मामले में सरकार का पक्ष रखना चाहते हैं.
प्रकरण की सुनवाई 15 जुलाई को होगी. अधिवक्ता सैयद अली मुर्तजा, सीमाब कय्यूम और रजा अब्बास के माध्यम से यह जनहित याचिका (PIL) दायर की गई है. Mob lynching की कुछ घटनाओं का भी उल्लेख है और इनमें अलीगढ़ में मई 2025 में हुई घटना भी शामिल है.
याचिका में हाई कोर्ट से यह आग्रह किया गया है कि वह राज्य सरकार मॉब लिंचिंग (Mob lynching) के मामलों से निपटने के लिए प्रत्येक जिले में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति से संबंधित अधिसूचना और परिपत्र जारी किए जाने और ऐसे मामलों में स्टेट्स रिपोर्ट बताए. डीजीपी को निर्देश दिया जाए कि वह पिछले पांच वर्षों में मॉब लिंचिंग (Mob lynching) की घटनाओं की आपराधिक जांच की स्थिति रिपोर्ट दाखिल करें.
भीड़-हिंसा (Mob lynching) के मामलों के लिए विशेष या फास्ट-ट्रैक अदालतों के गठन और मुकदमों की वर्तमान स्थिति बताई जाए. नोडल अधिकारियों और पुलिस खुफिया प्रमुखों के साथ पिछले पांच वर्षों में आयोजित तिमाही समीक्षा बैठकों के परिपत्र और कार्यवृत्त प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाए. राज्य को निर्देश दिया जाए कि वह सीआरपीसी की धारा 357ए के तहत मुआवजा योजना और पीड़ितों को दिए गए मुआवजे का विवरण करे. साथ ही अलीगढ़ घटना के पीड़ितों को मुआवजे के रूप में 15 लाख रुपये प्रदान करने का निर्देश दिया जाए.
मूल केस में बरी तो उसके बेंस पर गैंगस्टर एक्ट केस चलाने का औचित्य नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मूल आपराधिक केस में बरी आरोपी के खिलाफ उसी केस के आधार पर दर्ज गैंगस्टर एक्ट के तहत केस कार्रवाई भी समाप्त हो जायेगी. कोर्ट ने कहा जब गैंगस्टर एक्ट लगाने का आधार ही खत्म हो गया तो उसकी कार्यवाही जारी रखने का औचित्य नहीं है. कोर्ट ने संभल के जौहर अली और छः अन्य गैंगस्टर एक्ट के आरोपियों बड़ी को राहत दी है, इनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई रद्द कर दी है.

संभल के नखास थाने में आरोपियों के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई सिर्फ एक आपराधिक मामले (क्राइम नंबर 391/2019, आईपीसी के तहत) को आधार बनाकर शुरू की गई थी. आधार मामले (क्राइम नंबर 391/2019) में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, संभल ने आरोपियों को बरी कर दिया.
ऐसे में आरोपियों ने गैंगस्टर एक्ट के मुकदमे से मुक्ति के लिए विशेष अदालत गैंगस्टर में आवेदन दिया, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया. उसका कहना था कि बरी होने का सबूत केस रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं है, इसलिए उसे देखा नहीं जा सकता. आरोपियों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी.
जस्टिस राजीव मिश्रा ने याचिका स्वीकार करते हुए विशेष अदालत के आदेश को रद्द कर दिया. हाईकोर्ट ने कहा गैंगस्टर एक्ट की कार्रवाई का एकमात्र आधार (मामला नंबर 391/2019) अब खत्म हो गया है क्योंकि आरोपी उसमें बरी हो चुके हैं. ऐसे में गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमा चलाना न्यायसंगत नहीं है.
विशेष अदालत को बरी होने के सबूतों पर विचार करना चाहिए था, क्योंकि वे विश्वसनीय थे. हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट और अपने पुराने फैसलों (प्रीतम सिंह बनाम पंजाब राज्य, सरताज बनाम यूपी राज्य) का हवाला दिया, जिनमें यही सिद्धांत बताया गया है. हाईकोर्ट ने संभल की विशेष अदालत में चल रहा गैंगस्टर एक्ट का मुकदमा (स्पेशल सेशन ट्रायल नंबर 254/2021) पूरी तरह से रद्द कर दिया है. इससे सातों आरोपी इस कानून के तहत चल रही कार्रवाई से मुक्त हो गए हैं. अदालत ने कहा कि आधार खत्म होने के बाद मुकदमा चलाना सिर्फ समय और पैसे की बर्बादी होगी.
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