DA अपनी गलती के लिए Developer को नहीं कर सकता दंडित
कोर्ट ने काइनेटिक बिल्डटेक का आवंटन निरस्त करने के अपर मुख्य सचिव व सीईओ नोएडा का आदेश किया रद

विकास प्राधिकरण निर्माण शुरू की अनुमति देने में देरी करता है तो यह उसकी गलती है, इसके लिए वह Developer को दोषी नहीं ठहरा सकता. यह कमेंट इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस प्रकाश पाडिया की बेंच ने मेसर्स काइनेटिक बिल्डटेक प्राइवेट लिमिटेड को राहत देते हुए किया. कोर्ट ने कहा कि ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के द्वारा ले आउट प्लान में बदलाव किया गया और निर्माण की अनुमति को लंबित रखा गया, इसलिए Developer लीज डीड में निर्धारित अवधि के भीतर फ्लैटों का निर्माण नहीं करने के लिए दोषी नहीं है.
कोर्ट ने याची का आवंटन निरस्त करने वाले प्राधिकरण के सीईओ व अपर मुख्य सचिव के आदेशों को रद कर दिया है. याची Developer को ग्रेटर नोएडा के सेक्टर-10 में ग्रुप हाउसिंग प्लॉट नंबर जीएच-03 आवंटित किया गया था. इसका क्षेत्रफल 64 हजार वर्ग मीटर है. इसके बाद लीज डीड निष्पादित की गई. याची के वकील ने कहा कि प्राधिकरण ने Developer को कब्जा हस्तांतरित किया जाना दिखाया था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया था. पहली बार याची Developer ने सुनवाई के दौरान कब्जा प्रमाण पत्र देखा. यह भी तर्क दिया गया कि जीएनआईडीए ने साइटग प्लान में एकतरफा बदलाव किए हैं और सुधार/पूरक विलेख निष्पादित नहीं किया है.
जीएनआईडीए सुधार विलेख निष्पादित करने के लिए Developer को बाध्य किया था, जिसके परिणामस्वरूप प्रीमियम और अन्य बकाया राशि के भुगतान में भी बदलाव होगा. प्राधिकरण निर्माण न होने के आधार पर पट्टा रद नहीं कर सकता क्योंकि निर्माण के लिए मंजूरी देने और मानचित्र की मंजूरी के लिए आवेदन प्राधिकरण के पास लंबित है.

कोर्ट ने पाया कि न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कब्जे के पत्र में आवंटी के हस्ताक्षर नहीं थे. कोर्ट ने कहा, चूंकि संशोधित साइट योजना के अनुसार भूखंड का भौतिक कब्जा नहीं सौंपा गया है और पार्टियों के बीच निष्पादित सुधार/समर्पण विलेख नहीं है, ऐसे में याचिकाकर्ता पर प्रीमियम का भुगतान करने का दायित्व बनाना लीज डीड की शर्तों के विपरीत है और यह आवंटन रद करने का आधार नहीं हो सकता है.
निर्माण के लिए अनुमति देने के आवेदन पर निर्णय लेने में प्राधिकरण की ओर से निष्क्रियता के कारण याची निर्माण योजना नहीं बना सका और विकास प्राधिकरण को भुगतान करने के लिए बाजार से धन एकत्र नहीं कर सका.”
अप्रैल 2015 में याची के लिए देय कुल प्रीमियम की गणना 53. 24 करोड़ रुपये की गई थी. आवंटन पत्र की शर्तों के अनुसार उपरोक्त राशि का 20 प्रतिशत देना था. याची ने 10.64 करोड़ रुपये की राशि जमा कराई थी. आवंटन निरस्तीकरण के पश्चात यह राशि मनमाने ढंग से जब्त कर ली गई.
“चूंकि संशोधित साइट योजना के अनुसार भूखंड का भौतिक कब्जा नहीं सौंपा गया है और पार्टियों के बीच निष्पादित सुधार/समर्पण विलेख के अभाव में याचिकाकर्ता पर प्रीमियम का भुगतान करने का दायित्व बनाना लीज डीड की शर्तों के विपरीत है और इस प्रकार, आवंटन को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता है”