खरवार को कहार जाति बना दिया, केन्द्र व राज्य से जवाब तलब
रिकॉर्ड में कहार जाति के रूप में दर्ज कर दिया गया

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खरवार समुदाय को सही पहचान देने की मांग में दाखिल याचिका पर केंद्र व राज्य सरकार को छह सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल कर अपना पक्ष स्पष्ट करने का निर्देश दिया है. यह आदेश जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र की खंडपीठ ने खरवार वेलफेयर सोसायटी की याचिका पर अधिवक्ता राकेश कुमार गुप्ता को सुनकर दिया है.
एडवोकेट राकेश गुप्ता ने कहा कि यह केवल जातिगत पहचान का मुद्दा नहीं है बल्कि इससे जुड़े संवैधानिक अधिकार, आरक्षण, शिक्षा, नौकरी और सामाजिक सम्मान भी दांव पर हैं. अगर समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया गया तो हजारों लोगों की पहचान और अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं.

याचिका में खरवार जाति को राजस्व रिकॉर्ड में कहार जाति से जोड़ने के खिलाफ आपत्ति जताई गई है. खरवार वेलफेयर सोसाइटी की याचिका में आरोप लगाया गया है कि अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्य खरवार जाति को राजस्व रिकॉर्ड में जानबूझकर कहार जाति के रूप में दर्ज कर दिया गया है, जिससे उनकी जनजातीय पहचान व संवैधानिक अधिकारों को गंभीर नुकसान हो रहा है.
याचिका में यह स्पष्ट किया गया है कि खरवार समुदाय को ओबीसी श्रेणी में गलत तरीके से सूचीबद्ध किया गया है जबकि वे लंबे समय से अनुसूचित जनजाति में शामिल हैं. यह भी आरोप लगाया गया है कि केवल खरवार ही नहीं बल्कि गोंड, बॉथम, वोट, धीमर, धुरिया, घारूक, गोरिया, जायसवार, कमकर, महार, रायकवार, रवानी, सिंगरिया और तुरैहा जैसी अन्य जातियों को भी कहार शब्द से जोड़ा जा रहा है, जिससे इन जातियों की मूल पहचान और उनके अधिकारों पर संकट खड़ा हो गया है.
याचिका में मांग की गई है कि कहार शब्द को ओबीसी सूची से हटाया जाए, ताकि जनजातीय समुदायों की पहचान सुरक्षित रह सके और उन्हें उनके संवैधानिक अधिकार समय पर और सही रूप से मिल सकें.